Ram Katha Interesting Facts: कौन थे निषादराज गुह्वा? प्रभु श्रीराम से क्या था रिश्ता, पढ़ें रोचक किस्सा
राम कथा
Ram Katha Interesting Facts: राम सिया राम... की कड़ी में हम हर दिन श्रीराम जी के नए-नए किस्से और कहानियां रामचरित मानस के अनुसार आप लोगों तक साझा कर रहे हैं। आज श्रीराम जी का कुछ ऐसे ही एक किस्सा के बारे में आपको बताने वाले हैं, जिसे शायद ही कोई जानता होगा। आज श्रीराम के परम मित्र निषादराज गुह्य के बारे में हम आपको बताएंगे, साथ ही किस तरह केवट श्रीराम जी को वनवास के दौरान गंगा पार कराया था इसके बारे में भी जानेंगे।
रामचरित मानस के अनुसार, रामायण में बहुत सारे ऐसे पात्र थे, जिसने प्रभु श्रीराम के वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण की मदद की थी। उनमें से एक है निषादराज गुह्य, जो प्रभु श्रीराम के परम मित्र थे। निषादराज ने ही वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण को केवट से कहकर नाव से गंगा पार कराया था।
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कौन थे निषादराज
रामायण के अयोध्या कांड में भगवान श्रीराम के मित्र निषादराज गुह्य के साथ ही केवट के चारित्र का बडुा ही रोचक वर्णन किया गया है। निषादराज गुह्य श्रृंगवेरपुर के राजा थे। निषादराज का मतलब कोल, भील, मल्लाह, मझवार, कश्यप, बाथम, गोडिया, रैकवार, केवट, आदिवासी, मूलनिवासी के उपराजा का नाम है। निषादराज का पूरा नाम गुह्य राज था। रामचरित मानस के अनुसार, प्रभु श्रीराम को गंगा के उस पार केवट ने पार कराया था।
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गंगा पार कराने से क्यों मना किए थे निषादराज
रामचरित मानस के जब श्रीराम 14 वर्ष के लिए वनवास जा रहे थे तो मार्ग में गंगा नदी पड़ती थी। गंगा नदी के पास जैसे ही प्रभु श्रीराम पहुंचे तो वहां उनके मित्र निषादों के राजा गुह्य आ पहुंचे। श्रीराम जी ने केवट से कहा कि हे केवट मुझे गंगा पार जाना है।
मागी नाव न केवटु आना।
कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥
चरन कमल रज कहुं सबु कहई।
मानुष करनि मूरि कछु अहई॥
भगवान श्रीराम के नाव मांगने पर केवट नाव नहीं लाता है। केवट कहता है कि प्रभु मैंने आपका मर्म (भेद, रहस्य) जान लिया है। जब तक आपके कोमल चरण धुल नहीं जाते, तब तक नाव पर नहीं चढ़ाऊंगा। उसके बाद फिर केवट कहता है कि आपके चरणों की धूल में कठोर और पत्थर से मनुष्य बना देने वाली जड़ी लगी हुई है। केवट कहता है कि पहले आप पांव धुलवाओ, उसके बाद नाव पर चढ़ो।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, निषादराज और केवट दोनों ही प्रभु श्रीराम का अनन्य भक्त थे। वे चाहते थे कि वो अयोध्या के राजकुमार के पैर छुए। पैर छूकर प्रभु श्रीराम का सान्निध्य (निकटता) प्राप्त करें। निषादराज का मानना था कि प्रभु श्रीराम के साथ नाव पर बैठकर अपना खोया हुआ सामाजिक अधिकार प्राप्त हो सके। साथ ही संपूर्ण जीवन का फल मिल जाए।
निषादराज के अनन्य भक्ति और अटूट प्यार को देखकर श्रीराम वह सब करते हैं, जो निषादराज चाहते हैं। केवट के श्रम का पूरा मान-सम्मान देते हैं। साथ ही निषादराज और केवट राम राज्य का नागरिक बन जाता है।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धर्मग्रंथों पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है।News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।
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