---विज्ञापन---

महाभारत में पर्वों के नाम कौरव सेनापतियों के नाम पर ही क्यों हैं, पांडव महारथियों के नाम पर क्यों नहीं?

Mahabharat Stories: महाभारत पढ़ने वाले लोग अक्सर एक प्रश्न पूछते हैं, ‘महाभारत में पर्वों के नाम कौरव सेना के महारथियों के नाम पर क्यों रखे गए थे, जबकि महाभारत पांडवों की कहानी है?’ यह वास्तव में एक तथ्य है और एक रोचक प्रश्न भी है। हालांकि यदि आप महाभारत ग्रंथ की संरचना को समझने का […]

Edited By : Sunil Sharma | Updated: May 29, 2023 14:53
Share :
Mahabharat, Mahabharat Stories, Mahabharati knowledge

Mahabharat Stories: महाभारत पढ़ने वाले लोग अक्सर एक प्रश्न पूछते हैं, ‘महाभारत में पर्वों के नाम कौरव सेना के महारथियों के नाम पर क्यों रखे गए थे, जबकि महाभारत पांडवों की कहानी है?’ यह वास्तव में एक तथ्य है और एक रोचक प्रश्न भी है। हालांकि यदि आप महाभारत ग्रंथ की संरचना को समझने का प्रयास करें तो इस प्रश्न का उत्तर भी आपको आसानी से मिल जाएगा।

यह भी पढ़ें: इन 4 मजबूरियों के कारण द्रौपदी ने नहीं किया था कर्ण से विवाह, जानिए पूरी कहानी, देखें वीडियो

---विज्ञापन---

व्याकरण शास्त्र में पर्व का अर्थ अध्याय होता है। एक ऐसा अध्याय जिसका आदि और अंत दोनों हो, जो अपने आप में पूर्ण हों तथा किसी दूसरे पर पूरी तरह निर्भर न हो, उसे पर्व कहा जाता है। यही कारण है कि पूरी महाभारत को छोटे-छोटे अनेकों पर्वों में बांटा गया है। इस तथ्य को समझने के लिए हम महाभारत के भीष्म, द्रोण, कर्ण एवं शल्य पर्वों को लेते हैं। ये सभी पर्व महाभारत युद्ध की गाथा बताते हैं और जिन महारथियों के नाम पर इन पर्वों के नाम रखे गए हैं, वे सभी कौरव सेना के ही महारथी थे।

महाभारत की अध्याय संरचना के अनुसार ये पर्व किसी विशेष सेनापति के नेतृत्व में लड़े गए युद्ध का वर्णन करते हैं। उदाहरण के लिए भीष्म पर्व का आरंभ भीष्म पितामह द्वारा कौरव सेना का सेनापति बनने से होता है और जब अर्जुन युद्ध में उन्हें बाणों की शैय्या पर सुला देता है, तब समाप्त होता है। इसी प्रकार द्रोण पर्व का आरंभ आचार्य द्रोण के सेनापति बनने पर होता है और द्रोण के वध पर समाप्त होता है। ठीक यही कहानी कर्ण पर्व और शल्य पर्व की भी है।

---विज्ञापन---

यह भी पढ़ें: करें बरगद के पत्ते का यह उपाय, जो चाहेंगे वो मिलेगा, हनुमानजी भी होंगे प्रसन्न

यदि पांडव पक्ष को देखें तो महाभारत के पूरे युद्ध के दौरान उनका एक ही सेनापति धृष्टद्युम था जो युद्ध के अंतिम दिन तक जीवित रहा। इसी प्रकार उसके नाम पर पर्व नहीं मिलता। यदि उपपर्वों को देखें तो उनमें भी इसी प्रकार की संरचना निश्चित की गई है।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

HISTORY

Edited By

Sunil Sharma

First published on: May 29, 2023 02:43 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें