Baisakhi 2023: इस माह 14 अप्रैल 2023 (शुक्रवार) को सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेगा। इस घटना को वैदिक ज्योतिष में मेष संक्रांति भी कहा जाता है। इस दिन को सिख धर्मावलंबी बैसाखी के रूप में भी मनाते हैं। कुछ जगहों पर इसे ‘बसोरा’ भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में भी इसे बंगाली नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है बैसाखी
सिख समुदाय के लिए यह पर्व अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन ही गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने सभी जातियों के बीच प्रचलित भेदभाव समाप्त कर सभी मनुष्यों को समान घोषित किया था। इसी के साथ सिख धर्म की भी स्थापना की गई थी।
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इस तरह मनाई जाती है बैसाखी (Baisakhi 2023)
इस दिन सभी भक्त और श्रद्धालु सुबह जल्दी उठ कर स्नान करते हैं और रंग-बिरंगे नए वस्त्र पहनते हैं। इसके बाद वे गुरुद्वारों में पूजा करने जाते हैं। गुरुद्वारे में ग्रंथ साहिब की पूजा कर कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है जिसे वहां मौजूद सभी भक्तों में बांट दिया जाता है। वहां पर लंगर का भी आयोजन किया जाता है। लंगर में सभी लोग बिना किसी भेदभाव और ऊंच-नीच के समान रूप से भाग लेते हैं।
भक्त और श्रद्धालु इस दिन कारसेवा करते हैं। दिनभर गुरु गोविन्द सिंह और पंच प्यारों के सम्मान में शबद् और कीर्तन गाए जाते हैं। एक-दूसरे को बधाई दी जाती है और उत्सव मनाया जाता है। सिख समुदाय के लोग इस दिन अपने घरों में भी पकवान बनाते हैं और एक-दूसरे का स्वागत करते हैं।
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पारंपरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है यह पर्व
प्राचीन काल से ही बैसाखी को कृषि से जुड़ा त्यौहार भी माना जाता रहा है। इस दिन को रबी की फसल पकने के त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर शाम को आग जलाकर नए अनाज का भोग लगाया जाता है। बाद में इसी को प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।