Shastry Viruddh Shastry Review: (इशिका जैन, नई दिली) ओटीटी पर आपके पास काफी ऑप्शंस हैं। हर तरह का कंटेंट वहां दर्शकों के लिए मौजूद है। लेकिन हम आपसे गुजारिश करेंगे कि एक दिन अपने कीमती समय से 2 घंटे 20 मिनट निकालकर नेटफ्लिक्स पर मजूद ‘शास्त्री विरुद्ध शास्त्री’ जरूर देखें। फिल्म को इस वक्त काफी पसंद किया जा रहा है। इसकी कहानी कुछ ऐसी है कि आपके सिर से रणबीर कपूर (Ranbir Kapoor) की ‘एनिमल‘ (Animal) का बुखार भी उतर जाएगा। इस फिल्म में बाप-बेटे की लड़ाई देखने को मिलने वाला है।
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पिता ने बेटे के खिलाफ किया केस
इनके रिश्ते इतने खराब हो जाते हैं कि पिता अपने बेटे के ही खिलाफ कोर्ट में मुकदमा दर्ज करवा देता है। जिसके बाद शुरू होती है जंग जहां पिता और बेटा आमने-सामने आते हैं। अपनी जिद मनवाने के लिए दोनों वकीलों का सहारा लेते हैं। जिद किस बात की है ये भी जान लेते हैं। दरअसल, फिल्म में परेश रावल अपने पोते की कस्टडी की लड़ाई लड़ते हैं वो भी अपने बेटे के खिलाफ। उनका दावा है कि उनके बेटे और बहु उनके पोते यमन की जिम्मेदारी नहीं उठा सकते। क्योंकि एक तो न उनके पास स्थिर नौकरी है और ऊपर से शराब की लत ने उन्हें गैर ज़िम्मेदार बना रखा है। एक इंसान जो खुद निकम्मा है वो क्या खाक 7 साल के मासूम को संभालेगा।
पिता और बेटा आए आमने- सामने
दूसरी तरफ उनका बेटा यानी नन्हें यमन के पिता का दावा है कि वो उनके बायोलॉजिकल फादर हैं। ऐसे में उनका अपने बेटे पर पूरा हक बनता है। वो कोर्ट में ये भी साबित कर देते हैं कि उनके पिता खुद कभी भी दुनिया को छोड़कर जा सकते हैं ऐसे में वो क्या इस बच्चे की जिम्मेदारी संभालेंगे। दोनों में इतने मन-मुटाव हो जाते हैं कि ये दोनों बिना किसी की परवाह किए बस कस्टडी के लालच में अतीत को सभी के सामने कुरेद देते हैं। एक बेटा अपने पिता पर ये आरोप साबित कर देता है कि उसके भाई की आत्महत्या उन्हीं के उम्मीदों के बोझ तले दबने की वजह से हो गई। एक पिता अपने ही बेटे की खुदखुशी का कारण साबित होकर टूट जाता है।
किसे मिलेगी कस्टडी?
इतना ही नहीं उन दादा-दादी को लालची और खुदगर्ज साबित कर दिया जाता है जिन्होंने 6 महीने के नन्हें बच्चे को पाल-पोसकर 7 साल तक अपने सीने से लगाकर रखा है। उसकी परवरिश में अपनी पूरी जान लगाने के बाद भी उन्हें ये सिला मिलता है। ऐसे में फिल्म में आपको इमोशंस देखने को मिलेंगे। एक तरफ मां-बाप हैं जो अपने बच्चे के लिए तरस रहे हैं, लेकिन अपने काम के चलते उसके साथ समय नहीं बिता पा रहे। दूसरी तरफ उसके दादा-दादी हैं जो उससे बिछड़ने के ख्याल से ही बौखलाए हुए हैं। वहीं, एक 7 साल का मासूम बच्चा है जो अपने पूरे परिवार के साथ रहना चाहता है लेकिन वो मुमकिन नहीं है।
कौन सही कौन गलत?
या तो उसे उसकी वाट्सऐप मम्मी मिलेगी या फिर उसके दादा-दादी। ऐसे में ये फिल्म सभी के सामने ये सवाल उठाती है कि इस बच्चे की परिवरिश का जिम्मा किसे मिलना चाहिए? उस दादा- दादी को जो अब तक उस बच्चे को फूल की तरह पालते हुए आए हैं या फिर उन मां-बाप को जिन्होंने इस बच्चे को जन्म दिया है और उसे USA के बड़े स्कूल में पढ़ा सकते हैं। इस बात का दावा है कि ये फिल्म आपकी भी आंखों में आंसू ले आएगी और आपको भी उलझन में डाल देगी।