Maha kumbh 2025: संगम नगरी प्रयागराज में महाकुंभ 2025 (Maha kumbh 2025) का पर्व मनाया जा रहा है, जिसमें देश विदेश से श्रद्धालु डुबकी लगाने आ रहे हैं। साधु- संतों और अघोरी बाबाओं के अलावा आम जनता का भी महाकुंभ में जमघट लगा हुआ है। मौनी अमावस्या वाले दिन एक बहुत बड़ा हादसा हो गया जिसमें कई श्रद्धालुओं की जान चली गई और सैकड़ों घायल हो गए। इतने बड़े हादसे के बाद भी श्रद्धालुओं का जाना कम नहीं हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लोगों के अंदर कोई डर नहीं है। इसी बीच हाल ही में पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती (Shankaracharya of Puri Swami Nischalanand Saraswati) ने बताया है कि क्यों खतरे के बाद भी महाकुंभ आते हैं लोग?
धर्म को लेकर क्या कहा
दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान पुरी के शंकराचार्य जी ने सबसे पहले उन दलित लोगों के बारे में बात की जिन्होंने अपना धर्म बदल क्रिश्चियन धर्म अपना लिया। शंकराचार्य जी ने कहा वो क्रिश्चियन बन गए लेकिन उनका नाम क्या रखा गया दलित क्रिश्चियन। हमने कहा धर्म भी बदल लिया लेकिन फिर भी दलित के दलित ही रह गए।
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धर्मनिरपेक्षता पर दी अपनी राय
पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी ने धर्मनिरपेक्ष के मुद्दे पर भी बात की। उन्होंने कहा खरगोश के सींग नहीं होते इसी प्रकार धर्मनिरपेक्ष केवल एक शब्द है। कोई वस्तु बताओ या कोई व्यक्ति बताओ जो धर्मनिरपेक्ष हो। उन्होंने इस मुद्दे को समझाते हुए शरीर के अंगों का उदाहरण दिया जिसमें उन्होंने बताया कि हमारे शरीर के अंग धर्मनिरपेक्ष हो जाएं तो क्या होगा। इसलिए कोई अंग ऊंचा है तो कोई नीचा।
महाकुंभ में हुई भगदड़ में मृतकों की संख्या पर शॉकिंग खुलासा
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी ने मौनी अमावस्या के दौरान महाकुंभ में हुई भगदड़ में मृतकों की संख्या के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा शासन का गणित अलग होता है। 100 मरेंगे तो 10 बताया जाएगा, 10 का अर्थ है 100 तो 100 का अर्थ होगा 10 गुना ज्यादा। शासन तंत्र के अपने निर्णय होते हैं।
करोड़ों की भीड़ में खतरे के बाद भी महाकुंभ क्यों आते लोग?
शंकराचार्य स्वामी ने बताया कि आस्था अडिग होती है। वहीं धर्म का अर्थ उस धारा से है जिस पर किसी वस्तु का अस्तित्व और उपयोगिता निर्भर करती है। ऐसे में अगर आस्था की बात हो तो क्या भीड़ और क्या खतरा बस मन में सिर्फ श्रद्धा होती है जो किसी की परवाह नहीं करती।
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