Loksabha election 2024 (परवेज अहमद): लोकसभा चुनाव का समय चक्र राजनीतिक दलों की ड्योढ़ी के करीब पहुंच गया है। राजनीतिक दल अपना साजो-सामान तैयार करने में जुटे हैं। इस दौर में उत्तर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी में वैचारिक द्वंद छिड़ गया है। सत्तारूढ़ दल श्रीराम की आस्था, लाभार्थी वर्ग के साजो-सामान से लैस होकर चुनावी समय में कूदने को तैयार है, तब समाजवादी पार्टी का अंतरविरोध यह है कि वह पिछड़ा, दलित, अगड़ा ( पीडीए) की राजनीति कर रही है या पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक की राजनीति कर रही है।
बीजेपी का ठोस वैचारिक धरातल चुनौती दे रहा हो
इसी सवाल के चलते उनके योद्धा चुनावी समर में कूदने को तैयार नहीं हो पा रहे हैं। राजनीतिक विशलेषकों का कहना है कि जिस दल के सामने भारतीय जनता पार्टी जैसी सशक्त और ठोस वैचारिक धरातल चुनौती दे रहा हो, उसके सामने मुख्य विपक्ष के वैचारिक हथियार विहीन खड़ा है-पिछले कुछ दिनों के अंदर दल के अंदर उठे सवालों पर सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव कहते हैं “बातचीत भी हो जाएगी, समाधान भी निकल आयेगा।” सपा के कार्यकर्ता इस जवाब से ही मुत्मईन नहीं है।
आज विधान सभा में नामांकन के दौरान। pic.twitter.com/aRqCZmzLZ7
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) February 13, 2024
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राजनीतिक शक्ति के पीछे मुलायम सिंह यादव
4 अक्टूबर 1992 को गठन के बाद सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अपनी राजनीति को डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों पर चलाने का ऐलान किया। जनाधार हासिल करने के लिये गांवों का रुख किया। उनके सिपहसालारों ने कुछ अरसे में ही पूर्वाचल से लेकर सुदूर बुंदेलखंड और पूर्वाचल में गहरी पकड़ हासिल कर ली, इस राजनीतिक शक्ति के पीछे मुलायम सिंह यादव की संगठन और निर्णय लेने की क्षमता को महत्वपूर्ण माना गया है।
2012 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी
हालांकि मुलायम सिंह यादव भी राजनीतिक गठजोड़ों के सहारे आगे बढे। कभी चन्द्रशेखर का साथ लिया, कभी कम्युनिष्टों को साथी बनाया। श्रीराम मंदिर आंदोलन के एक दौर में उन्होंने कांशीराम को साथ लेने से भी गुरेज नहीं किया। नतीजे में मुलायम सिंह यादव ने 4 दिसंबर 1993 को दूसरी बार समाजवादी पार्टी के अगुवा के रूप में मुख्यमंत्री बन गये। 29 अगस्त 2003 को तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और 2012 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री का पद सौंप दिया था। इस दौरान सपा की नीति बिलकुल स्पष्ट की थी, चाहे कांशीराम से हाथ मिलाने की बात हो या फिर भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को साथ रखकर राजनीति करने की बात रही हो। कल्याण सिंह से गठजोड़ के चलते मुसलमानों के दूर होने का संदेह हुआ तो मुलायम सिंह यादव ने सार्वजनिक रूप से मुसलमानों से माफी मांगी थी।
"तीनों काले कानून जिस सरकार ने बनाए हो, 800 से ज्यादा किसानों ने जान दे दी हो। किसान एमएसपी चाहते हैं, कम से कम कानूनी अधिकार किसानों को मिले। अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन तक तब पहुंचेगी जब किसान हमारा खुशहाल होगा।"
– माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव जी pic.twitter.com/O2yonhQm3h
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) February 14, 2024
पल्लवी पटेल ने उठाए सवाल
स्पष्ट नीतियों के चलते मुलायम सिंह यादव के अध्यक्ष रहते दल के अंदर के वैचारिक मतभेद सामने नहीं आये थे। किसी भी नेता ने विचारों को लेकर सवाल नहीं खड़ा किया था। मगर अब समाजवादी पार्टी के अंदर से ही वैचारिक सवाल उठ रहे हैं। पीडीए की आक्रामक राजनीति करने वाले सपा महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने संगठन के पद से इस्तीफा दिया तो पार्टी के घटक दल अपना दल (कमेरावादी) की विधायक पल्लवी पटेल ने सपा की वैचारिक नीति पर न सिर्फ सवाल उठा दिया बल्कि बगावत के संकेत भी दे दिये। इस पर डैमेज कन्ट्रोल होता इससे पहले ही समाजवादी पार्टी के गठन के समय से मुलायम सिंह यादव के कंधे से कंधा मिलाकर राजनीति करने वाले व 2017 से 2022 तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे राम गोविंद चौधरी ने दल में वैचारिक असमंजस का सवाल उठा दिया। यहां तक कह दिया कि स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा के जहर को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं, वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भाजपा के निशाने पर हैं। ऐसे में उनका इस्तीफा देना उचित नहीं है। संभवतः दल में संवादरिक्तता को महसूस करते हुये उन्होंने यह भी कह दिया कि अगर कोई निर्णय नहीं लेते तो इसे मेरा व्यक्तिगत पत्र मानकर भूल जाया जाए।
राम गोविंद चौधरी ने लिखा पत्र
आठ बार विधायक और नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा करने में कसर नहीं रखने वाले राम गोविंद चौधरी के पत्र के बाद सपा के नेताओं में खासी बेचैनी है। वह सवाल खड़े कर रहे हैं जब उन्हें शक्तिशाली भाजपा से राजनीतिक लड़ाई के लिए समर में जाना है, ऐसे मौके पर वैचारिक ऊहापोह संकट में डालने वाला है। यह इत्तिफाक भी है कि छोटे-छोटे मुददों पर पार्टी लाइन लेने वाले सपा के प्रमुख महासचिव प्रो.राम गोपाल यादव ने भी खामोशी ओढ़ ली है। सपा की राजनीति को समझने वाले राजेन्द्र गौतम कहते हैं कि पार्टी अभी यही नहीं समझ पायी है कि इससे उसका कितना नुकसान हो गया है। वह कहते हैं कि डैमेज कन्ट्रोल का प्रयास न करना आश्चर्यजनक है। हालांकि अखिलेश यादव ने आज कहा कि बातचीत हो जाएगी-सामाधान भी निकल आयेगा , जो सपाईयों की बेचैनी को खत्म नहीं कर पा र ही है। सपा के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी का कहना है कि सपा में लोकतंत्र है, सब कुछ ठीक है। कार्यकर्ताओं और नेताओं को पता है कि पीडीए क्या है और उसी लाइन पर हम भाजपा को हरायेंगे।