Lakshagriha Baghpat Controversy Verdict: बागपत के लाक्षागृह पर हिंदुओं के पक्ष में फैसला आ गया है। अदालत ने मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज करते हुए 5000 साल पुरानी सभ्यता समेटे महाभारतकालीन लाक्षागृह पर फैसला हिंदुओं के पक्ष में सुनाया है। इस फैसले के बाद लाक्षागृह सुर्खियों में आ गया है, क्योंकि कौरव और पांडवों का इतिहास फिर जिंदा हो गया है....अदालत का यह फैसला 53 साल 8 महीने और 875 तारीखों के बाद आया है।
1970 में मुस्लिम पक्ष ने दायर किया वाद
दरअसल, साल 1970 में बरनावा लाक्षागृह को मुकीम खां ने बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान होने का दावा करते हुए मेरठ की कोर्ट में वाद दायर किया था और कृष्णदत्त को प्रतिवादी बनाया था। बाद में, 1997 में ये केस बागपत ट्रांसफर कर दिया गया... 875 तारीख लगी, 53 साल 8 महीने का वक्त लगा और आखिरकार तमाम दलील सुनने के बाद सिविल जज जूनियर डिविजन ने लाक्षागृह पर दरगाह और कब्रिस्तान के मुस्लिम पक्ष के दावे को खारिज कर दिया। एएसआई की रिपोर्ट और दस्तावेजों के आधार पर कोर्ट ने ये फैसला सुनाया।
मुस्लिम पक्ष ने कहा- उच्च अदालत में करेंगे अपील
इस फैसले के बाद हिंदू पक्ष बेहद खुश है। उनका कहना है कि मुस्लिम पक्षका बेवजह का दावा था। ये महाभारतकाल का लाक्षागृह है और अदालत ने भी यही माना। हालांकि, मुस्लिम पक्ष लाक्षागृह पर अपने दावे से पीछे हटने को तैयार नहीं है। मुस्लिम पक्षकार इरशाद का कहना है कि कागज हमारे पास हैं, फैसला गलत है और हमारा दावा मजबूत है। जो सुरंग पांडवो की बता रहें हैं, वो हमारे आदमी ने खोदी थी। हम अब उच्च अदालत में अपील करेंगे, लेकिन दावा नहीं छोड़ेंगे। दरअसल, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यहां बदरुद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान था, जबकि हिंदू पक्ष का कहना है कि यहां यज्ञशाला थी। तमाम प्रमाण और चारों तरफ की नक्काशी खुद कहानी बयां कर रही हैं।
गुरुकुल की तर्ज पर धनुर्धर तैयार करने की तैयारी
लाक्षागृह पर मुस्लिम पक्ष का दावा खत्म होने के बाद यहां के प्राचार्य ने गुरुकुल की तर्ज पर धनुर्धर तैयार करने की तैयारी कर ली है...अर्जुन, अश्वत्थामा और कर्ण जैसे योद्धा यहां तैयार करने का हर प्रयास किया जाएगा...अपने पक्ष में फैसला आने पर मार्च में होने वाला कार्यक्रम अब और बड़ा करने की तैयारी कर ली है। हर तरफ लाक्षागृह की चर्चा है...हिंदू पक्ष खुश है। मुस्लिम पक्ष इस फैसले को सही नहीं ठहरा रहा है।
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यहां एक सुरंग है, जिसे हजारों साल पहले बनाया गया था...पांडवो की इसी सुरंग की वजह से जान बची थी..युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव और माता कुंती इसी सुरंग से जिंदा बचकर निकले थे। विदुर ने दुर्योधन और मामा शकुनि के षड्यंत्र को असफल कर दिया था.... ये एक ऐसी साजिश थी, जिसके प्रमाण आज भी यहां मौजूद हैं....बड़े बड़े अभिलेख यहां लगाए गए हैं, जिसपर लाक्षागृह और कौरवों-पांडवों को लेकर लेख लिखे गए हैं।
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