उत्तर प्रदेश के रहने वाले अमित चौधरी 18 साल के थे जब उन पर हत्या करने का आरोप लगा था। साल 2011 में उन्हें मेरठ में दो कांस्टेबलों की हत्या के मामले में फंसाया गया था और गैंग्स्टर होने का गलत आरोप लगाया गया था। इसके बाद उनका पूरा जीवन अचानक से अस्त-व्यस्त हो गया था।
तब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री हुआ करती थीं। उन्होंने कांस्टेबलों की हत्या के मामले में दोषी की तुरंत गिरफ्तारी का आदेश दिया था। जिसके बाद अमित को मामले में 17 आरोपियों में से एक बना दिया गया था। जबकि घटना के समय वह अपनी बहन के साथ शामली जिले में थे।
ऐसी आपदा को भी अवसर में बदल दिया
अमित पर कुख्यात कैल गैंग का सदस्य होने का आरोप लगाया गया था जिसने हत्या की साजिश रची थी। चौधरी दो साल तक सलाखों के पीछे रहे थे और ऐसे आरोपों का सामना कर रहे थे जो उनके भविष्य को बर्बाद करने की चुनौती दे रहे थे। लेकिन अमित ने इस आपदा को अवसर में बदल दिया।
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अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अमित ने कानून की पढ़ाई करना शुरू किया। बागपत के किरथल गांवके एक किसान के बेटे अमित कहते हैं कि मुजफ्फरनगर जेल में अनिल दुजाना और विक्की त्यागी जैसे दुर्दांत गैंग्स्टरों ने मुझे अपने-अपने गैंग में शामिल करने की कोशिश की थी।
जमानत पर बाहर आकर शुरू की पढ़ाई
अमित के अनुसार जेलर का स्वभाव अच्छा था। उन्होंने अमित को ऐसी बैरक में रहने की अनुमति दी थी जिसमें गैंग्स्टर नहीं थे। 2013 में जमानत पर बाहर आए अमित ने अपनी बेगुनाही सिद्ध करने का सफर शुरू किया था ताकि उका परिवार समाज में सिर उठा कर चल सके।
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ऐसा करने के लिए उन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू की। अमित ने बीए एलएलबी और एलएलएम करने के साथ-साथ बार काउंसिल की परीक्षा भी पास कर ली। कानूनी जानकारियों से वाकिफ होने के बाद अमित ने अपना केस अपने ही हाथ में लेने का फैसला किया।
अमित बताते हैं कि केस कछुए की रफ्तार से आगे बढ़ रहा था और कोई बयान दर्ज नहीं हुआ था। तब तक मैंने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी और एक वकील के तौर पर बार से जुड़ने की औपचारिकताएं भी पूरी कर ली थीं।
गवाही देने वाला ही नहीं पहचान पाया
वह कहते हैं कि वकील के तौर पर अपना केस खुद पेश करते हुए मैं उस अधिकारी के सामने खड़ा था जो विटनेस बॉक्स में खड़ा था। लेकिन फिर भी वह मुझे पहचान नहीं पाया। इससे जज को हैरानी हुई और उन्हें भी यकीन हुआ कि मुझे गलत तरीके से फंसाया गया है।
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इस मामले में अदालत का फैसला हाल ही में आया है जिसमें अमित चौधरी समेत 13 लोगों को बरी किया गया है। फैसले में कहा गया है कि अभियोजन कांस्टेबल कृष्णपाल और अमित कुमार की हत्या की साजिश को साबित करने में नाकाम रहा है।
क्रिमिनल जस्टिस में PhD करने की इच्छा
पहले अमित चौधरी सेना में भर्ती होना चाहते थे लेकिन इस मामले ने उनका यह सपना तो चकनाचूर कर दिया। लेकिन अब उनकी इच्छा क्रिमिनल जस्टिस में पीएचडी करने की है।