Akhilesh Yadav and Azam Khan Meeting: अखिलेश यादव रामपुर की यात्रा पर हैं, जहां वह कद्दावर मुस्लिम नेता और वरिष्ठ सपा नेता आजम खान से मुलाकात करेंगे. दोनों दिग्गज नेताओं की मुलाकात को कार्यकर्ता सपा में नई ऊर्जा का संकेत मान रहे हैं. हालांकि खान पर लगे मुकदमें, उनकी बढ़ती उम्र, गिरती साख और राजनीतिक जमीन या जेल में रहने के कारण मुसलमानों में उनके प्रति क्रेज को अखिलेश आगामी 2027 चुनाव में कैसे इस्तेमाल करते हैं ये देखने वाली बात होगी.
दरअसल, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का आज रामपुर दौरा है. जहां वे पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक आजम खान से मुलाकात कर सकते हैं. यह मुलाकात आजम की हालिया जेल रिहाई के बाद उनकी पहली बड़ी राजनीतिक गतिविधि है जो उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल पैदा कर रही है. उधर, अखिलेश का यह दौरा न केवल पार्टी के पुराने साथियों को एकजुट करने का प्रयास है बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति का भी हिस्सा है.
मुलाकात पार्टी के आंतरिक कलह को समाप्त करने और कोर ग्रुप को फिर से सक्रिय करने का संकेत
आजम खान जो 23 महीने की जेल यात्रा के बाद सितंबर के अंत में सितापुर जेल से बाहर आए अब रामपुर में अपने निवास पर हैं. उनकी रिहाई के तुरंत बाद ही अखिलेश का यह दौरा तय होना संयोग नहीं है. सूत्रों के अनुसार यह मुलाकात पार्टी के आंतरिक कलह को समाप्त करने और कोर ग्रुप को फिर से सक्रिय करने का संकेत देती है. आजम ने हाल ही में एक साक्षात्कार में स्पष्ट शर्त रखी थी कि वे केवल अखिलेश से ही मिलेंगे जो इस यात्रा को और भी खास बनाती है.
यूपी में आज की राजनीति में आजम खान का क्या महत्व है?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में आजम खान का नाम हमेशा से ही प्रभावशाली रहा है. एक दशक से अधिक समय तक सपा सरकार में मंत्री रह चुके आजम रामपुर-मुरादाबाद क्षेत्र के एक प्रमुख चेहरे हैं. उनकी जेल यात्रा के बावजूद वे सपा के लिए मुस्लिम समुदाय के एक मजबूत स्तंभ बने हुए हैं. यूपी में मुस्लिम आबादी करीब 19 प्रतिशत है और आजम का प्रभाव खासकर रोहिलखंड इलाके में गहरा है. उनकी रिहाई से सपा को उम्मीद है कि मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण फिर से मजबूत होगा जो 2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ था.
आजम की वापसी से सपा का PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला होगा प्रभावी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आजम की वापसी से सपा का PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला और प्रभावी हो सकता है. हालांकि भाजपा ने इसे ‘नाटक’ करार देते हुए कहा है कि आजम पर दर्ज 40 से अधिक मुकदमों का असर अभी बरकरार है और मुस्लिम समुदाय को इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए. फिर भी आजम का राजनीतिक कद इतना बड़ा है कि उनकी एक आवाज पूरे क्षेत्र की सियासत हिला सकती है. वे न केवल सपा के संस्थापक सदस्यों में शुमार हैं बल्कि सामाजिक कार्यों के जरिए मुस्लिम युवाओं को पार्टी से जोड़ने में भी माहिर रहे हैं.
अखिलेश यादव और आजम खान की इस मुलाकात के क्या मायने हैं?
अखिलेश यादव और आजम खान की यह मुलाकात सपा के लिए कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है. पहला यह पार्टी के आंतरिक एकता को मजबूत करेगी. जेल से बाहर आने के बाद आजम ने साफ कहा था कि उनकी प्राथमिकता अखिलेश ही हैं जो सपा के युवा चेहरे को पुराने नेताओं का समर्थन देगी. दूसरा आगामी 2027 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए, यह मुस्लिम समुदाय में सपा की साख बहाल करने का प्रयास है. रामपुर जैसे संवेदनशील सीटों पर आजम का प्रभाव अखिलेश के लिए ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकता है. वहीं, विपक्षी दलों के लिए यह चिंता का विषय है. भाजपा ने इसे ‘पुरानी फिल्म का रीमेक’ बताते हुए कहा कि आजम की छवि पर सवाल अभी भी बने हुए हैं. लेकिन सपा समर्थकों में उत्साह साफ दिख रहा है.
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