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राजस्थान

बीजेपी का जवाब- कोई छेड़छाड़ नहीं, आस्था और विरासत पूरी तरह सुरक्षित

राजस्थान की अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को लेकर सियासी विवाद तेज, कांग्रेस ने बीजेपी पर ऐतिहासिक किलों और मंदिरों को खतरे में डालने का आरोप लगाया.

Author Written By: kj.srivatsan Updated: Dec 23, 2025 17:57

राजस्थान की पहचान सिर्फ रेगिस्तान नहीं, बल्कि अरावली पर्वतमाला भी है. यही अरावली सदियों से यहां की जलवायु, संस्कृति, इतिहास और आस्था की रीढ़ रही है. लेकिन अब यही अरावली सियासत के केंद्र में है. एक तरफ पर्यावरण और विरासत बचाने की चिंता है, दूसरी तरफ राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और आंदोलन तेज होते जा रहे हैं. इसी बीच कांग्रेस के एक बड़े आरोप ने सत्तारूढ़ बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. कांग्रेस का दावा है कि सनातन और विरासत की बात करने वाली बीजेपी, अरावली की नई परिभाषा के जरिए ऐतिहासिक किलों, महलों और प्राचीन मंदिरों को नष्ट करने का “फुलप्रूफ प्लान” बना चुकी है.
अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, विरासत की रीढ़ प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक पहचान के लिए मशहूर राजस्थान में अरावली पर्वतमाला सिर्फ पहाड़ों की श्रृंखला नहीं है. अरावली की पहाड़ियों पर ही राज्य के कई ऐतिहासिक किले, महल और प्राचीन मंदिर बसे हुए हैं. लेकिन सरकार द्वारा 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को ही अरावली मानने के मानक ने इन धरोहरों पर संकट के बादल खड़े कर दिए हैं. आरोप है कि इससे खनन माफियाओं की नजर उन पहाड़ियों और उनकी तलहटी पर बने किलों और मंदिरों पर टिक गई है. इसी मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी को सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया है.

कांग्रेस का हमला: ‘सनातन की बात, लेकिन आस्था पर चोट’

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने आरोप लगाया कि बीजेपी सनातन की बात सिर्फ राजनीति के लिए करती है, जबकि अरावली क्षेत्र में खनन की अनुमति देकर ऐतिहासिक देवस्थानों, महलों और किलों के अस्तित्व को खतरे में डाल रही है. डोटासरा ने पाली के परशुराम महादेव, सीकर के हर्षनाथ भैरव, अलवर-सरिस्का के नीलकंठ महादेव और पांडुपोल हनुमान, जयपुर के गलता पीठ और खोले के हनुमान, मेवाड़ के एकलिंगजी, उदयपुर के ऋषभदेवजी, दिलवाड़ा, अचलगढ़, कुम्भलगढ़ और आमेर जैसे स्थलों का जिक्र करते हुए कहा कि इन सबका “भूगोल मिटाने की कोशिश” हो रही है. कांग्रेस का आरोप है कि पैसा कमाने और सत्ता साधने के लिए आस्था और विरासत को दांव पर लगाया जा रहा है.

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इतिहास के आईने में अरावली

कांग्रेस अपने आरोपों के समर्थन में इतिहास का तर्क भी दे रही है. अरावली की ऊंची-नीची पहाड़ियां कभी राजपूत शासकों के लिए प्राकृतिक सुरक्षा कवच थीं. इन्हीं पहाड़ियों के कारण दुश्मनों के लिए किलों तक पहुंचना मुश्किल होता था. यही वजह है कि अरावली पर कुम्भलगढ़, आमेर, जयगढ़, नाहरगढ़, चित्तौड़गढ़, मेहरानगढ़ और अचलगढ़ जैसे किले बने, जो आज राजस्थान की पहचान और पर्यटन की जान हैं. इन्हीं पहाड़ियों पर दिलवाड़ा जैन मंदिर, गुरु शिखर पर दत्तात्रेय मंदिर, मालेश्वर धाम, गालव पीठ, रणकपुर जैन मंदिर और हरनी महादेव जैसे आस्था के केंद्र भी स्थित हैं.

बीजेपी का पलटवार: ‘कोई खतरा नहीं’

वहीं बीजेपी ने कांग्रेस के आरोपों को सिरे से खारिज किया है. पार्टी प्रवक्ता रामलाल शर्मा ने कहा कि अरावली को लेकर जो परिभाषा लागू है, वह नई नहीं है. उन्होंने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि 2018 से 2023 तक कांग्रेस की सरकार थी और उसी दौरान रामनवमी के जुलूस पर रोक लगी थी और सालासर मंदिर के गेट को तोड़ा गया था. बीजेपी का दावा है कि उसके शासनकाल में किसी भी मंदिर या महल के आसपास खनन नहीं होगा और आने वाले समय में खनन गतिविधियां पहले से कम ही नजर आएंगी. असल मुद्दा क्या है? हकीकत यह है कि 2010 से पहले ही 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची पहाड़ियों को अरावली मानने की परिभाषा तय हो चुकी थी. इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, जो राजस्थान के साथ-साथ दिल्ली, हरियाणा और गुजरात पर भी लागू होता है. इस परिभाषा के लिए रिचर्ड मर्फी (1968) के लैंडफॉर्म क्लासिफिकेशन को बेंचमार्क माना गया.

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पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसी वजह से अरावली आज अवैध खनन, पानी की कमी, रेगिस्तान के फैलाव और प्रदूषण से जूझ रही है. अब आरोप यह भी है कि पहाड़ियों के कटाव से ऐतिहासिक इमारतों की नींव कमजोर हो रही है, जिससे ये धरोहरें भविष्य में अस्थिर हो सकती हैं.

सवाल बरकरार

क्या अरावली की नई परिभाषा विकास का रास्ता है या विनाश की पटकथा? फैसला सरकार को करना है, लेकिन दांव पर है राजस्थान की प्रकृति, इतिहास और पहचान.

First published on: Dec 23, 2025 05:56 PM

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