पंजाब में अवैध खनन लंबे समय से एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है। आम आदमी पार्टी की सरकार के आने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि खनन माफियाओं पर नकेल कसी जाएगी, लेकिन अब सरकार खुद सवालों के घेरे में है। हाल ही में एक नई उच्चस्तरीय समिति का गठन करके सरकार ने संकेत दिया है कि मौजूदा खनन विभाग और उसकी कार्यशैली पर उसे भरोसा नहीं रहा।
क्या है नई समिति का गठन?
9 जून को खान एवं भूविज्ञान विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के तहत पंजाब सरकार ने एक अंतर विभागीय समिति का गठन किया है, जिसका नेतृत्व पंजाब के मुख्य सचिव करेंगे। इस समिति में डीजीपी पंजाब, खनन विभाग, राजस्व विभाग, जल संसाधन, वन विभाग, पर्यावरण विभाग, और गृह विभाग के सचिवों को शामिल किया गया है। सरकार का दावा है कि यह समिति राज्य में अवैध खनन को रोकने, खनन क्षेत्र में पारदर्शिता लाने, और राजस्व में बढ़ोतरी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाई गई है।
इस समिति को चार प्रमुख जिम्मेदारियां दी गई हैं
1. अवैध खनन पर रोक और सख्त कार्रवाई – राज्य के विभिन्न जिलों में अवैध रेत-बजरी खनन लगातार सामने आ रहा है। पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे चल रहे इन कामों पर अब यह समिति निगरानी करेगी और तुरंत कार्रवाई करेगी।
2. इंटर-डिपार्टमेंटल तालमेल – खनन से जुड़े विषय अक्सर राजस्व, वन, पर्यावरण और गृह विभाग के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। समिति इन विभागों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करेगी ताकि किसी मसले पर देरी न हो।
3. आमदनी में इजाफा – सरकार चाहती है कि खनन क्षेत्र से अधिक राजस्व अर्जित किया जाए। इसके लिए इस समिति को जिम्मेदारी दी गई है कि वह नई योजनाएं और नीतियां सुझाए जिससे सरकारी खजाने को फायदा हो।
4. रेत-बजरी की पर्याप्त आपूर्ति – राज्य में निर्माण कार्यों के लिए रेत और बजरी की भारी मांग रहती है। समिति यह सुनिश्चित करेगी कि इनकी आपूर्ति निर्बाध रूप से हो और कीमतें नियंत्रित रहें।
सरकार की इस पहल को लेकर आलोचकों का कहना है कि यह ‘पॉलिटिकल डैमेज कंट्रोल’ का हिस्सा है
पुलिस की भूमिका को किया गया औपचारिक
इस समिति में डीजीपी को शामिल किया जाना खास मायने रखता है। पुलिस पहले भी अवैध खनन के खिलाफ कार्रवाई करती रही है, लेकिन अब औपचारिक रूप से उसे इस जिम्मेदारी में भागीदार बनाया गया है। यह माना जा रहा है कि जिलों में पुलिस की निष्क्रियता के कारण खनन माफिया बेखौफ होकर काम करते हैं। समिति में डीजीपी की मौजूदगी से अब पुलिस की जवाबदेही तय हो सकेगी। नई समिति की भूमिका तय होने के बाद खनन विभाग की स्थिति काफी कमजोर हो गई है। जिन फैसलों का अधिकार पहले विभाग के मंत्री और सचिव के पास था, वे अब समिति के अधीन होंगे। इससे विभागीय संतुलन बिगड़ने की आशंका जताई जा रही है।
राजनीतिक संकेत क्या हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार की छवि को बचाने का प्रयास है। आम आदमी पार्टी ने 2022 में सत्ता में आने से पहले वादा किया था कि वह पंजाब से माफियागिरी खत्म करेगी। लेकिन दो साल के भीतर ही खनन को लेकर सरकार पर गंभीर आरोप लगने लगे। ऐसे में एक समिति बनाकर सरकार यह संदेश देना चाहती है कि वह कार्रवाई के लिए गंभीर है।
क्या बदलेगा कुछ?
यह बड़ा सवाल है कि इस समिति के गठन से वास्तव में अवैध खनन पर लगाम लगेगी या नहीं। पंजाब में ऐसे कई प्रयास पहले भी हुए हैं, लेकिन स्थिति में खास सुधार नहीं आया। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या यह समिति सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहेगी या वास्तव में कोई प्रभावशाली बदलाव लेकर आएगी।
कमाई का नहीं बल्कि कानून व्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण और शासन की पारदर्शिता से जुड़ा है मुद्दा
नई अंतर विभागीय समिति का गठन एक निर्णायक कदम हो सकता है, बशर्ते इसे पूरी शक्ति और राजनीतिक समर्थन मिले। लेकिन साथ ही यह सरकार की असमर्थता का भी प्रतीक बन सकता है, अगर यह समिति भी उन दर्जनों घोषणाओं की तरह साबित हुई जो कभी जमीन पर नहीं उतर पाईं। पंजाब में खनन से जुड़ा मामला सिर्फ अवैध कमाई का नहीं बल्कि कानून व्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण और शासन की पारदर्शिता से जुड़ा है। यदि इस समिति को राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रखकर निष्पक्ष तरीके से काम करने दिया गया, तो शायद पंजाब को अवैध खनन से कुछ राहत मिल सकती है। अन्यथा, यह समिति भी बस एक और “फाइलिंग एक्सरसाइज” बनकर रह जाएगी।