Gurugram News: हरियाणा के गुरुग्राम में एक अस्पताल ने मरीज को दो प्रकार के बिल थमा दिए। इस पेशेंट को 3 दिन के बाद डिस्चार्ज किया गया था। पेशेंट ने बीमा मंजूरी का इंतजार करने के बजाय खुद ही बिल का भुगतान करने का फैसला किया था। इस दौरान पता लगा कि उसका बिल अस्पताल ने 27 फीसदी तक बढ़ा दिया है। अस्पताल की ओर से पूछने पर बताया गया कि अगर कोई मरीज डायरेक्ट भुगतान करता है, तो ज्यादा बिल देना होगा। पीड़ित ने बहस करने के बजाय अधिक राशि का भुगतान किया। 53 साल के पीड़ित को 14 अप्रैल को फोर्टिस अस्पताल में बुखार, दस्त और फूड प्वॉइजनिंग के लक्षण दिखने के बाद भर्ती करवाया गया था।
मरीज को शेयरिंग में जुडवां कमरा दिया गया था। जिसके लिए 8400 रुपये के हिसाब से प्रतिदिन का किराया तय किया गया। जो गुरुग्राम में किसी शानदार होटल के कमरे समान है। दूसरी सुविधाओं के लिए अलग से भुगतान का प्रावधान तय किया गया था। पेशेंट के अनुसार अस्पताल ने बीमा कंपनी को जानकारी देरी से दी। जबकि उनकी ओर से पॉलिसी नंबर और आधार कार्ड जैसे दस्तावेज समय पर उपलब्ध करवा दिए गए थे। चिकित्सक ने उनको 16 अप्रैल की शाम को सूचित किया था कि अगले दिन डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। उसी रात लगभग 8 बजे उनको मैसेज मिला कि बीमा कंपनी को दावा मिल गया है।
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मरीज ने सवाल किया कि अस्पताल ने बीमा कंपनी को देरी से क्यों सूचित किया? उनको ये सब करने में दो दिन क्यों लगे? इससे अगले दिन 17 अप्रैल को उन्होंने शाम साढ़े 7 बजे तक बीमा मंजूरी के लिए इंतजार किया। थक हारकर जब खुद भुगतान करने की पेशकश की, तो उनको बिल 27 प्रतिशत अधिक राशि का थमा दिया गया। उनके दावे पर बीमा कंपनी ने 27 अप्रैल तक कोई कार्रवाई नहीं की। अस्पतालों के लिए बीमा कंपनी के लिए छूट और खुद पे करने वालों के लिए ज्यादा राशि लेना वाकई गजब काम है।
कई अस्पताल लेते हैं 10 फीसदी अधिक बिल
उन्होंने आरोप लगाया कि इस बाबत न तो मरीजों को सूचना दी जाती है, न ही कोई बोर्ड लोगों को बताने के लिए अस्पतालों की ओर से लगाया जाता है। कई अस्पतालों में ऐसे मामलों में 10 फीसदी अधिक भुगतान लिया जाता है। एक मरीज से 27 फीसदी राशि ज्यादा लेना लूट से कम नहीं है। जो मरीज सीधे भुगतान करते हैं, उन लोगों को तो छूट मिलनी चाहिए। कई छोटे अस्पताल ऐसे मामलों में मरीजों को राहत देते हैं। बीमा कंपनियां बिलों को स्पष्टीकरण आदि के नाम पर कई दिनों तक रोक कर रखती हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि बीमा कंपनियां अस्पतालों के साथ समझौता करती हैं। वे अस्पतालों के लिए ग्राहक ले जाने का ही काम करती हैं। व्यक्ति ने कहा कि उनको मरीज नहीं, अस्पताल ग्राहक के तौर पर देखते हैं। बीमा कंपनी के बारे में आरबीआई या आईआरडीएआई को भी शिकायत की जा सकती है।