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बिहार की 5 सीटों पर मतदान आज, चिराग पासवान समेत कई नेताओं की किस्मत दांव पर

Bihar 5th Phase Voting 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के पांचवे चरण का मतदान कल होगा। इसी कड़ी में बिहार की पांच सीटों पर भी वोटिंग होगी। तो आइए समझते हैं सारण, सीतामढ़ी, मुजफ्परपुर, हाजीपुर और मधुबनी का सियासी रूझान किस तरफ हैं।

Edited By : Sakshi Pandey | Updated: May 20, 2024 06:30
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Bihar Lok Sabha Election
बिहार लोकसभा चुनाव 2024

Bihar 5th Phase Voting Lok Sabha Election 2024: (अमिताभ ओझा, पटना) बिहार में 5वे चरण में आज 20 मई को 5 सीटों पर मतदान होगा है। इन 5 सीटों पर 80 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला 95.11 लाख मतदाता करेंगे। इनमे से 1,26,154 वो मतदाता है जो पहली बार अपने मत का इस्तेमाल करेंगे। इस चरण में बिहार के सारण, मुजफ्फरपुर, हाजीपुर, मधुबनी और सीतामढ़ी में मतदान हैं।

अगर दिग्गज चेहरों की बात करें तो इस चुनाव में लोजपा आर के चिराग पासवान, अजय निषाद, राजीव प्रताप रुढ़ी, लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य, विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। सबसे खास बात कि इस चुनाव में हर सीट पर लड़ाई आमने सामने की है। वर्तमान में जहां इन पांचो सीटों पर एनडीए का कब्जा है वहीं इण्डिया गठबंधन इस बार पूरा जोर लगा रही है। अब आपको बताते हैं कि इन पांच सीटों पर कैसा है मुकाबला?

सारण

पांचवे चरण में सारण की सीट सबसे हॉट सीट है। इस सीट पर एक तरफ बीजेपी के उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी हैं, जो पिछले दो चुनाव से जीतते आ रहे है। उन्हें हैट्रिक लगाने की चाहत है तो दूसरी तरफ है आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य हैं। रोहिणी आचार्य पहली बार चुनावी मैदान में हैं। रोहिणी आचार्य को लेकर पूरा लालू परिवार सारण में प्रचार कर रहा था। खुद लालू प्रसाद छपरा में कैम्प कर अपने लोगों से संवाद कर रहे थे। लालू प्रसाद ने भावनात्मक अपील करते हुए कहा कि उनकी जान बचाने के लिए इस बेटी ने अपनी किडनी डोनेट की थी, बेटी हो तो रोहिणी जैसी। इसके अलावा तेजश्वी यादव, तेजप्रताप यादव और राबड़ी देवी ने भी रोहिणी के लिए प्रचार किया।

बता दें कि सारण लोकसभा के अंतर्गत छः विधानसभा क्षेत्र आते है सोनपुर, परसा, गरखा, अमनौर, छपरा और मधौरा। इनमे चार पर आरजेडी का कब्जा है जबकि अमनौर और छपरा पर बीजेपी का। यादव और राजपूत बहुल इस सीट पर दो बार के सांसद राजीव प्रताप रूडी एनडीए के उम्मीदवार हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी रूडी के समर्थन में जनसभा की है। इस चुनाव में राजीव प्रताप रुढ़ी लालू परिवार पर हमलावर रहे। रोहिणी आचार्य की नागरिकता को लेकर स्थानीय और बाहरी उम्मीदवार का भी मुद्दा खूब उछाला गया। उन्होंने परिवारवाद पर भी लालू यादव को घेरा।

राजीव प्रताप रूडी 2014 में राबड़ी देवी से करीब 38 हजार वोटो से जीते थे तो 2019 में चन्द्रिका राय से करीब सवा लाख वोट से। लेकिन इस बार जीत हार का अंतर और कम हो सकता है। एक परेशानी मुस्लिम वोटों को लेकर भी है। सीवान में शहाबुद्दीन परिवार की नाराजगी का खामियाजा यहां भी भुगतना पड़ सकता है। इस बात का अंदेशा लालू प्रसाद को भी था इसलिए हिना शाहाब को मनाने की पूरी कोशिश की गई थी। हालांकि चुनाव नजदीक आने के साथ-साथ सारे मुद्दे मोदी बनाम अन्य में उलझ गया है।

मुजफ्फरपुर

मुजफ्फरपुर की लड़ाई बड़ी दिलचस्प है। यहां उम्मीदवार वही है जो 2019 में थे लेकिन दोनों का दल बदल गया है। 2019 में यहां मुकाबला वीआईपी के उम्मीदवार राजभूषण निषाद और बिजेपी के अजय निषाद में बीच था। अजय निषाद जीते थे लेकिन इस बार अजय निषाद का टिकट काटकर राजभूषण निषाद को बीजेपी ने टिकट दिया है। जब कि अजय निषाद बीजेपी छोड़कर कोंग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस का टिकट लेकर मैदान में हैं। हालांकि देखा जाए तो अजय निषाद को लेकर स्थानीय लोगो में बहुत नाराजगी थी। उनपर मुजफ्फरपुर में विकास ना करने का आरोप लगा था। मुजफ्फरपुर में मल्लाह (निषाद ) का बड़ा वोट बैंक है। ऐसे में मल्लाहों का एक बड़ा तबका महागठबंधन की तरफ रहेगा इसमें कोई शक नहीं है लेकिन पिछड़ा अति पिछड़ा को मिलाकर बना वोट बैंक जिसे स्थानीय भाषा में पंचफोड़ना कहते हैं वो एनडीए के साथ है। इसके अलावा स्वर्ण वैश्य भी एनडीए के साथ हैं। ऐसे में लड़ाई बिल्कुल आमने-सामने की है।

हाजीपुर

खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान कहने वाले लोजपा आर के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने शुरू से ही हाजीपुर की सीट को अपनी प्रतिष्ठा की सीट बनाई हुई थी। इसके लिए उन्होंने अपने चाचा से भी पंगा ले लिया। दरअसल हाजीपुर सीट की पहचान ही रामविलास पासवान से रही है। 1977 से लेकर 2019 तक रामविलास पासवान ही इस सीट से जीते हैं। यह सुरक्षित सीट भी है। हालांकि बीच में सिर्फ दो बार 1984 और 2009 में परिणाम कुछ अलग थे। 2019 में रामविलास पासवान ने यह सीट अपने भाई पशुपति पारस के लिए छोड़ी थी और वो चुनाव जीते थे। लेकिन परिवार में टूट होने के बाद इस सीट पर चिराग पासवान ने दावा कर दिया। चाचा और भतीजे में खूब जुबानी जंग हुई और आखिरकार भतीजे ने चाचा से यह सीट एनडीए गठबंधन के तहत ले ली।

चिराग पासवान का इस इलाके के युवाओं में गजब का क्रेज है। प्रचार समाप्त होने के पहले चिराग पासवान के रोड शो में भारी भीड़ जुटी थी। महागठबंधन की तरफ से हाजीपुर में आरजेडी के उम्मीदवार शिवचंद्र राम है। शिवचंद राम को तेजश्वी यादव का करीबी माना जाता है। पूर्व मंत्री रहे शिवचंद राम के लिए तेजश्वी यादव और महागठबंधन के सभी नेता ने खूब पसीना बहाया है। महागठबंधन की नजर यहां कुशवाहा वोटरों को गोलबंद करने को लेकर हैं। इसके लिए आलोक मेहता जो खुद उजियारपुर से उम्मीदवार थे उन्होंने भी काफी पसीना बहाया है। शिवचंद्र राम को पशुपति पारस के साथ रहे राजपूत जाति के कुछ बड़े चेहरों का साथ भी मिल रहा है जो चिराग पासवान से नाराज हैं। कुशवाहा और कुर्मी जाति के मतदाताओं को गोलबंद करने के लिए उपेंद्र कुशवाहा और जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा के अलावा खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई सभाएं की हैं। वही राजपूत जाति के मतदाताओं को गोलबंद करने में रामा सिंह और संजय सिंह लगे है। यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा भी हुई। मोदी ने भरे मंच से कहा कि चिराग जमीन से जुड़ा हुआ इंसान है इसलिए लोग उसे पसंद करते हैं।

सीतामढ़ी

माता जानकी की जन्मभूमि सीतामढ़ी में इस बार जीत और हार का कारण वैश्य मतदाता बनने वाले हैं, जिनकी आबादी करीब पांच लाख है। इसका कारण है कि पिछले दो बार से सीतामढ़ी में वैश्य समाज के सुनील कुमार पिंटू जीतते आये थे लेकिन इस बार उनका टिकट काटकर बिहार विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर को जेडीयू ने उम्मीदवार बनाया है। देवेश चंद्र ठाकुर ब्राह्मण जाति से आते हैं। वैश्य समाज की नाराजगी का एक कारण शिवहर लोकसभा सीट पर रमा देवी का टिकट कटना भी है। दोनों सीट से वैश्य उम्मीदवार का नहीं होना इस समाज के मतदाताओं को नाराज कर रहा है। हालांकि इसको लेकर गृह मंत्री अमित शाह भी सीतामढ़ी में जनसभा कर चुके हैं। बीजेपी और जेडीयू के वैश्य समाज के नेता भी लगातार कैम्प करते रहे हैं। हालांकि लोग सुनील पिंटू से नाराज भी बहुत थे, क्षेत्र में उन्होंने कोई विकास का काम नहीं किया। यहां महागठबंधन के उम्मीदवार हैं 2009 में जेडीयू से सांसद बने अर्जुन राय, जो इस बार आरजेडी के प्रत्याशी हैं। जातीय समीकरण की बात करें तो यहां ब्राह्मणों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है। शहरी वोटर्स बीजेपी के हैं लेकिन वो अभी तक साइलेंट हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में महागठबंधन की अच्छी पकड़ होती दिख रही है। हालांकि एनडीए उम्मीदवार को यहां मोदी के नाम का सहारा है। माता जानकी का अयोध्या की तर्ज पर विशाल मंदिर का निर्माण और शहर के विकास के नाम पर मतदाताओं को गोलबंद करने की कोशिश की गई है।

मधुबनी

मिथिलांचल के मधुबनी सीट पर इस बार बिजेपी ने अपने वर्तमान सांसद अशोक यादव पर ही दांव लगाया है तो महागठबंधन में यहां से आरजेडी ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। पिछली बार यहां से वीआईपी के उम्मीदवार बद्री नारायण पूर्व को अशोक यादव ने लगभग साढ़े चार लाख वोट से हराया था। इस बार आरजेडी ने जेडीयू से घर वापसी करने वाले अली अशरफ फातमी को मैदान में उतारा है, जिसके बाद यहां लड़ाई न तो विकास की रह गई है और ना ही मुद्दों की। यहां लड़ाई हिन्दू बनाम मुस्लिम की हो गई है, जिसका फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है।

मधुबनी में अशोक यादव के पिता हुकूमदेव नारायण यादव की पकड़ रही है। हुकूमदेव नारायण यादव यहां से पांच बार सांसद रहे हैं। 2014 तक वो ही सांसद थे।  2019 में अशोक यादव उनकी जगह बीजेपी के उम्मीदवार बने और बड़ी जीत दर्ज की। अशोक यादव के लिए एक प्लस पॉइंट है की अली अशरफ फातमी दरभंगा से यहां चुनाव लड़ने आये हैं, जब कि हुकुम देव नारायण यादव और उनका परिवार यहांं की राजनीति में लगातार सक्रिय रहा है। राम मंदिर और मोदी का असर यहां भी है। अली अशरफ फातमी दरभंगा से सांसद रहे है, केंद्र में मंत्री भी रहे है इसलिए वो मधुबनी में भी समीकरण बनाने में लगे रहे लेकिन अशोक यादव के कारण अन्य सीटों की तरह यहां लालू प्रसाद का माय समीकरण बहुत एकजुट न रहा है और न रहेगा।

First published on: May 19, 2024 06:30 AM

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