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दर्द क्यों होता है, कहां से आता है? यहां जानें वैज्ञानिक पहलू

डॉ. आशीष कुमार। संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा, जिसे दर्द (pain) का अनुभव न हुआ हो। दर्द जीव के अस्तित्व का अहम हिस्सा है। यह इंसान को झकझोर कर रख देता है। इंसान और दर्द का संबंध चोली और दामन की तरह है। हालांकि, दर्द (pain) स्वयं कारण नहीं होता है, बल्कि कारण […]

डॉ. आशीष कुमार। संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा, जिसे दर्द (pain) का अनुभव न हुआ हो। दर्द जीव के अस्तित्व का अहम हिस्सा है। यह इंसान को झकझोर कर रख देता है। इंसान और दर्द का संबंध चोली और दामन की तरह है। हालांकि, दर्द (pain) स्वयं कारण नहीं होता है, बल्कि कारण की वजह से उपजा परिणाम होता है। इस लेख में हम दर्द के वैज्ञानिक पहलुओं की पड़ताल करेंगे। दर्द (pain) का मूल कारण विकृति होती है। शरीर में जहां भी विकृति होगी, वहीं दर्द का अनुभव होगा। यदि शरीर में विकृति का निवारण कर दिया जाए तो दर्द भी दूर हो जाएगा। सवाल यह है कि इस विकृति के कारण दर्द की उत्पत्ति कैसे होती है? कौन-सी रासायनिक व भौतिक क्रियाएं इसमें शामिल होती हैं, जिसके कारण दर्द का जन्म होता है? यह किस प्रकार कार्य करता है? इसे जानने समझने के लिए शरीर की कार्यिकी और रासायनिकी को समझना आवश्यक है।

सेंट्रल नर्वस सिस्टम’ व ‘पेरिफरल नर्वस सिस्टम’

हमारे शरीर में तंत्रिकाओं का जाल फैला हुआ है। तंत्रिकाएं नर्वस सिस्टम का अहम हिस्सा होती हैं। यह शरीर की सबसे जटिल प्रणालियों में से एक है। यह शरीर में सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए एक नेटवर्क का काम करती हैं। नर्वस सिस्टम के दो हिस्से होते हैं एक ‘सेंट्रल नर्वस सिस्टम’ व ‘पेरिफरल नर्वस सिस्टम’। सेंट्रल नर्वस सिस्टम में दिमाग और स्पाइनल कोर्ड सम्मिलित होते हैं। पेरिफरल नर्वस सिस्टम में तंत्रिकाएं सम्मिलित होती हैं। शरीर में लाखों की संख्या में तंत्रिकाएं होती हैं। जो तंत्रिका दिमाग से सूचना प्राप्त कर शरीर को गति देने का काम करती हैं, उन्हें मोटर तंत्रिकाएं कहा जाता है। जो तंत्रिकाएं शरीर से सूचनाएं इकट्ठा कर दिमाग तक पहुंचाती हैं, उन्हें संवेदी तंत्रिकाएं कहा जाता है। तंत्रिकाएं इलेक्ट्रिक इम्पल्स के रूप में सूचनाओं का आदान प्रदान करती हैं। प्रत्येक तंत्रिका की संरचना भी बेहद जटिल होती है। तंत्रिका में एक्सॉन, डेंड्राइट, श्वान सेल, माइलिन शीट आदि महत्वपूर्ण हिस्से होते हैं। यह भी पढ़ें: भारतीय वैज्ञानिकों ने कर दिया कमाल, खोजा बृहस्पति से भी कई गुणा बड़ा ग्रह

दर्द (pain) की ‘ग्राहक संवेदना’

तंत्रिकाएं शरीर की सबसे बड़ी कोशिकाएं होती हैं। शरीर में तंत्रिका कोशिकाओं में रिपेयरिंग की क्षमता सबसे कम होती है। विशेष प्रकार की संवेदनाओं को ग्रहण करने के लिए विशेष संवेदी रिसेप्टर होते हैं। दबाव, गर्मी, शीतलता, चुभन, स्वाद, घ्राण जैसे उद्दीपनों के प्रति संवेदी तंत्रिकाएं होती हैं। ठंड के ‘रिसेप्टर’ के मुकाबले दर्द के ‘रिसेप्टर’ 27 गुना अधिक होती हैं। रिसेप्टर दर्द को ग्रहण करके दिमाग तक पहुंचाने का काम करते हैं। लेकिन दर्द को अनुभव करना, प्रतिक्रिया करना और नियंत्रित करना या सहन करने का काम दिमाग द्वारा किया जाता है। यह प्रक्रिया जटिल लेकिन तीव्र गति से संपन्न की जाती है। दर्द की ‘ग्राहक संवेदना’ तंत्रिका रिसेप्टरों द्वारा प्राप्त कर मस्तिष्क तक पहुंचायी जाती है।

‘रिफ्लेक्स एक्शन’

कोई जलती या गर्म वस्तु हाथ से स्पर्श होते ही ‘स्पाइल कोर्ड’ हाथ को हटाने का संदेश भेज देता है। इस प्रतिक्रिया को विज्ञान की भाषा में ‘रिफ्लेक्स एक्शन’ या ‘परावर्तित क्रिया’ कहा जाता है। इससे शरीर के अंगों में त्वरित प्रतिक्रिया होती है। इस कार्य के लिए मस्तिष्क को प्रारंभ में कार्य नहीं करना पड़ता है केवल स्पाइल कोर्ड ही इसमें हिस्सा लेती है। लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि मस्तिष्क तक संदेश पहुंचना बंद हो गया। मस्तिष्क को जलने की सूचना पहुंचायी जाती है। बाद में जलने की जो पीड़ा अनुभव होती है वह मस्तिष्क की प्रतिक्रिया ही होती है। यह भी पढ़ें: शनि और गुरु के चन्द्रमाओं पर भी आते हैं भूकंप, NASA ने बताया यह कारण

तंत्रिका तंत्र की बनावट

संदेश का प्रसारण सबसे पहले तंत्रिका तंत्र में होता है। यह संप्रेषण रासायनिक और विधुत आवेगों के रूप में होता है। तंत्रिका में संदेश विधुत आवेगों के रूप में प्रसारित होते हैं। तंत्रिका तंत्र की बनावट एकदम सीधी नहीं होती है, बल्कि वे छोटे-छोट गांठों के रूप में जुड़े होते हैं। जहां एक तंत्रिका खत्म होती है, वहीं से दूसरी तंत्रिका प्रारंभ होती है। दो तंत्रिका कोशिकाओं के जुड़ाव स्थान पर अंतराल होता है। इस अंतराल को ‘सायनेप्स’ कहा जाता है। विधुत आवेग इस अंतराल को पार कर दूसरी कोशिका तक नहीं पहुंच पाता है। इसलिए विधुत आवेग तंत्रिका कोशिकाओं को अंतराल क्षेत्र में विशेष प्रकार के रासायनिक पदार्थ का स्राव करने के लिए प्रेरित करता है, जिन्हें न्यूरोट्रांसमीटर कहा जाता है। ये न्यूरोट्रांसमीटर तंत्रिका कोशिका के अंतराल को पार कर दूसरी तंत्रिका कोशिका तक पहुंच जाते हैं। दूसरी तंत्रिका में विशेष रिसेप्टर होते हैं जो न्यूरोट्रांसमीटरों को ग्रहण कर लेते हैं। इससे पास की कोशिका में विधुत आवेग पैदा हो जाता है।

दर्द के अनुभव के लिए जिम्मेदार कौन?

हालांकि, सभी न्यूरोट्रांसमीटर विधुत आवेग नहीं पैदा करते हैं, कुछ अवरोधक का भी काम करते हैं। इस प्रकार विधुत आवेग तंत्रिका कोशिकाओं में यात्रा करता हुआ मस्तिष्क तक पहुंचता है। यह संदेश मस्तिष्क के ‘थैलेमस’ में पहुंचता है। दिमाग का थैलेमस सभी आवेगों के लिए ‘मास्टर स्विच बोर्ड’ का काम करता है। थैलेमस में प्राप्त सभी संवेदनाओं का विश्लेषण किया जाता है। थैलेमस प्राप्त सभी सूचनाओं का प्रारंभिक रूप से जांचने परखने के बाद ‘कार्टेक्स’ में भेज देता है, जहां सूचनाओं का गहन परीक्षण करने के बाद अंतिम नतीजे पर पहुंचा जाता है, जिसके आधार पर शरीर को कार्य करने के लिए आदेशित किया जाता है। कार्टेक्स ही किसी संदेश को दर्द के रूप में पहचानता है। किसी संदेश पर काम करना है या अनदेखा करना है यह निर्णय कार्टेक्स द्वारा ही लिया जाता है। दिमाग का कार्टेक्स हिस्सा ही दर्द के अनुभव के लिए जिम्मेदार होता है। दर्द का अनुभव होने पर मस्तिष्क उन स्मृतियों को सहेज कर रख लेता है, जो भविष्य में सबक का काम करती हैं। यह भी पढ़ें: OpenAI देगा दस लाख डॉलर के पुरस्कार, AI पर तैयार करनी होगी रिपोर्ट

ऑटोनॉमिक तंत्र

कभी-कभी दर्द के संदेश को दिमाग तक ऑटोनॉमिक तंत्र के सहारे पहुंचाया जाता है। शरीर में सूजन या अधिक दर्द होने पर व्यक्ति को उल्टियां होने लगती हैं, अधिक पीड़ा में बेहोश हो जाते हैं। कुछ बीमारियों में प्रारंभिक चरण दर्द में का अनुभव नहीं होता है। व्यक्ति को दर्द का अनुभव तब होता है जब बीमारी असाध्य हो जाती है।

दर्द सहन करने की क्षमता

दर्द को सहन करने की सामर्थ्य भी सभी व्यक्तियों में समान नहीं होती है। कुछ लोग अत्यधिक दर्द को भी आसानी से सहन कर लेते हैं, वहीं कुछ लोग थोड़े से दर्द में ही छटपटाने लगते हैं। दर्द सहन करने की क्षमता व्यक्ति की मानसिक क्षमता और संकल्प शक्ति पर निर्भर करती है, उसी के अनुसार मस्तिष्क का कार्टेक्स प्रतिक्रिया देता है। यह भी पढ़ें: नोएडा में स्थापित होगा सुपर कंप्यूटर, 7 दिन पहले मिल जाएगी मौसम की सटीक जानकारी

प्रसव पीड़ा को सहन करने की क्षमता

दर्द को सहन करने की क्षमता शारीरिक स्वास्थ्य पर भी निर्भर करती है। निरोगी स्वस्थ व्यक्ति में दर्द को सहन करने की क्षमता अधिक होती है। वहीं अस्वस्थता की स्थिति में दर्द को सहन करने की क्षमता कम हो जाती है। डिप्रेशन व मनोरोगों की स्थिति में दर्द को सहन करना और भी कठिन हो जाता है। इस्ट्रोजन हार्मोन तंत्रिका तंत्र के माध्यम से दर्द को बढ़ाने में मदद करता है। वहीं, प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन पीड़ा को कम करने का काम करता है। गर्भवती महिलाओं में प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे प्रसव के दौरान उन्हें पीड़ा सहन करने में मदद मिलती है। यह भी पढ़ें: घर बैठे जीतें 8,23,00,000 रुपए का इनाम, इसके लिए बस देना होगा एक सवाल का जवाब

मन और भावनाओं की पीड़ा को समझने के लिए रिसर्च जारी

दर्द भी कई प्रकार के होते हैं। शरीर को चोट लगने पर पीड़ा होती है। इस दर्द का दायरा शरीर तक ही सीमित होता है। इसमें कोशिकाओं और ऊतकों को नुकसान पहुंचता है। जिन दर्दों की पीड़ा मानसिक होती है, उनमें कष्ट गहरा और स्थायी प्रकृति का होता है। तनाव, अपराधबोध, चिंता, हताशा, शोक, उदासी आदि मनोविकारों के कारण भी व्यक्ति को गहरे मानसिक आघातों का सामना करना पड़ता है। भावनाओं और मन को लगी चोट गहरा कष्ट देती है। दर्द की फिजियोलॉजी को समझना पहेलियों को समझने जैसा है। मन और भावनाओं की पीड़ा को समझने के लिए न्यूरो साइकोलॉजी और साइको फिजियोलॉजी में अनुसंधान किए जा रहे हैं। अंत में, दर्द के मूल कारण को जानकर ही उसका समाधान किया जा सकता है। जिस विकृति के कारण दर्द पैदा हो रहा है, उस विकृति को दूर करके की दर्द का स्थायी हल किया जा सकता है। साइंस की अधिक खबरों के लिए मुझ पर क्लिक करें।


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