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जब महापाप कर बैठे सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा, भगवान शिव ने किया यह काम…

Brahma Mandir: भगवान विष्णु और शिव की तरह ब्रह्माजी की पूजा न होने से बहुतों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर इसका कारण क्या है? विष्णु, शिव, दुर्गा, गणेश, राम, कृष्ण, हनुमानजी आदि की तरह उनके मंदिर जगह-जगह क्यों नहीं है? आइए जानते हैं, भगवान ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर कहां है और उनकी पूजा क्यों नहीं की जाती है?

Edited By : Shyam Nandan | Updated: May 27, 2024 15:45
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Brahma Mandir: सनातन धर्म में ‘त्रिदेव’ यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का बहुत अधिक महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भी देवताओं पर कोई संकट आया है, तो वे इन्हीं तीनों के पास सहायता मांगने पहुंचे हैं। इसमें भी ब्रह्माजी सबसे अधिक सहायक सिद्ध हुए हैं। संसार की सृष्टिकर्ता होने के कारण वे और भी अधिक प्रतिष्ठित और सम्मानित हैं। इस लिहाज से अन्य देवी-देवताओं की तरह उनका मंदिर भी हर गांव-शहर में होना चाहिए था। हर घर के अंदर भगवान विष्णु, शिवजी और अन्य देवों की तरह उनकी भी पूजा होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं है। क्या आपने कभी सोचा है, ऐसा नहीं होने का कारण क्या है?

दुनिया का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर

धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस सृष्टि और ब्रह्मांड की हर चीज के रचयिता ब्रह्माजी हैं। लेकिन उनका सम्मान सिर्फ पुस्तकों में है, धर्म व्यवहार में नहीं। आपको जानकार हैरानी होगी कि पूरी दुनिया में ब्रह्माजी का केवल एक मंदिर है। उनका यह एकमात्र मंदिर राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित पुष्कर में है। इस मंदिर अलावा दुनिया के किसी और मंदिर में न तो उनकी प्रतिमा है और न ही कोई प्रतीक चिह्न, जिसकी पूजा होती हो। इससे आश्चर्यजनक यह कि हिन्दू धर्म में उनकी पूजा भी वर्जित है।

विश्वामित्र ने किया पुष्कर ब्रह्मा मंदिर का निर्माण

राजस्थान के पुष्कर में स्थित लाल बलुआ पत्थर से बने इस इकलौते ब्रह्मा मंदिर के बारे कहा जाता है कि इसका निर्माण ऋषि विश्वामित्र ने किया था। माना जाता है कि यह मंदिर त्रेतायुग से पहले बनाया गया था। बता दें, विश्वामित्र ब्रह्माजी के घोर विरोधी थे। उन्होंने ब्रह्माजी को चुनौती देने के लिए एक दूसरी सृष्टि की रचना शुरू कर दी थी। बाद में विष्णुजी के समझाने पर उन्होंने यह काम बंद किया।

जब भगवान शिव ने काट डाला ब्रह्मा का पांचवां सिर

सृष्टि की रचना करने के बाद ब्रह्माजी ने जीवों में सबसे पहले स्त्री का निर्माण किया और उसका शतरूपा रखा। शतरूपा के निर्माता होने के कारण ब्रह्माजी उसके जनक यानी पिता थे। लेकिन शतरूपा इतनी सुंदर थी कि उसकी रचना करने वाले ब्रह्माजी खुद उसपर मोहित होकर कामातुर हो गए। शतरूपा की सुंदरता को निहारने के लिए ब्रह्माजी ने चार दिशाओं में चार सिर के अलावा सबसे ऊपर अपना एक पांचवां सिर भी बना लिया था। शतरूपा के प्रति ब्रह्माजी के महापाप की इस गलत मंशा जानकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने ब्रह्माजी का पांचवां सिर काट डाला और श्राप दिया कि उनकी पूजा नहीं जाएगी।

देवी सरस्वती का ब्रह्माजी को शाप

एक पौराणिक कथा यह भी है कि सृष्टि की रचना करने बाद ब्रह्माजी एक बेहद शुभ मुहूर्त में यज्ञ करना चाहते थे। कहा जाता है कि यज्ञ का स्थान वही था, जहां अभी पुष्कर मंदिर है। यज्ञ का मुहूर्त निकला जा रहा था, जबकि पत्नी यानी देवी सरस्वती के बिना यज्ञ संभव नहीं थी। तब ब्रह्माजी ने एक स्थानीय स्त्री से विवाह कर यज्ञ संपन्न कर लिया। विलंब से वहां पहुंची देवी सरस्वती ने यह देखा, तो उन्होंने क्रोधित होकर ब्रह्माजी को शाप दिया कि किसी यज्ञ में उनको हिस्सा नहीं दिया जाएगा और न ही पूजा की जाएगी। तब से यही परंपरा कायम है और इस शाप के कारण उनकी पूजा नहीं होती है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित हैं और केवल जानकारी के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: May 27, 2024 03:45 PM

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