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इन 7 परंपराओं के बिना अधूरी है मकर संक्रांति का मजा
Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति केवल एक त्योहार नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है। हर साल यह पर्व खास उमंग और आस्था के साथ मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मकर संक्रांति की कुछ परंपराएं ऐसी हैं, जिनके बिना यह पर्व अधूरा माना जाता है? ये परंपराएं न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखती हैं। इस बार मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी। तो चलिए आपको बताते हैं उन 7 परंपराओं के बारे में, जो इस त्योहार को और खास बनाती हैं।
मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान करना सबसे पहला और शुभ कार्य माना जाता है। इसे तन और मन की शुद्धि के लिए आवश्यक माना जाता है। अगर आप नदी में स्नान नहीं कर सकते, तो घर पर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। यह भी उतना ही फलदायी माना जाता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है, यानी सूर्य की दिशा दक्षिण से उत्तर की ओर बदलती है। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही, यह आपकी मनोकामनाओं को पूरा करने में सहायक माना जाता है।
मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। इस दिन को 'पतंग महोत्सव' के रूप में भी मनाया जाता है। आसमान में उड़ती पतंगें खुशी और आजादी का प्रतीक मानी जाती हैं।
मकर संक्रांति के दिन गाय को हरा चारा खिलाने की परंपरा है। यह मां दुर्गा और मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का एक माध्यम माना जाता है। साथ ही, यह जीवन में सुख-समृद्धि लाने में मदद करता है।
इस दिन दान का विशेष महत्व है। गुड़, तिल, रेवड़ी और अनाज का दान करना शुभ फल देता है। जरूरतमंदों और गरीबों को दान देने से पुण्य मिलता है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
मकर संक्रांति को 'खिचड़ी पर्व' भी कहा जाता है। इस दिन खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है। इसे खाने से स्वास्थ्य लाभ होता है और इसे शुद्धता और सरलता का प्रतीक माना गया है।
मकर संक्रांति से बसंत ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन अनाजों की पूजा कर भगवान का धन्यवाद किया जाता है। इससे आने वाला साल समृद्ध और खुशहाल होने की कामना की जाती है।