प्रधानमंत्री मोदी के अस्तित्व के चलते देश में कई चीजें अपने आप हो रही हैं। यानी घटनाएं घटती जाती हैं और फिर उनके भक्तों द्वारा यह घोषणा कर दी जाती है कि ‘यह मोदी के कारण हुआ है।’ कंगना बेन ने एलान कर ही दिया है कि मोदी कोई आम इंसान नहीं हैं। वे अवतारी पुरुष हैं। इसलिए मोदी कुछ भी कर सकते हैं। ‘26/11’ आतंकी हमले के मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा का अमेरिका से भारत में प्रत्यार्पण हो गया है। भारत का एक विशेष विमान उसे लेकर पहुंचा है। भारत भर में भक्त और भजन मंडलियां राणा के प्रत्यर्पण का जश्न मनाने की तैयारी कर रही हैं।
मोदी सरकार की कूटनीति!
गृहमंत्री अमित शाह ने कह दिया, ‘राणा का प्रत्यर्पण मोदी सरकार की कूटनीति की बड़ी सफलता है। मोदी सरकार भारत के स्वाभिमान, भूमि और लोगों पर हमला करने वालों को दंडित करने के लिए प्रयत्नशील है।’ राणा को भारत लाने की लड़ाई मनमोहन सरकार के समय से ही चल रही है। उस वक्त भारत ने राणा के प्रत्यर्पण की मांग की थी।
राणा ने भारत की मांग को अमेरिकी अदालत में चुनौती दी थी। ये सभी मामले अमेरिकी अदालत में 18 साल तक चले। इस लंबी अदालती लड़ाई के हर चरण में, भारत ने अपना पक्ष रखा और राणा का आवेदन खारिज कर दिया गया और अंतत: अपराधी भारत को सौंपना पड़ा। यह दोनों देशों के बीच एक कानूनी और राजनीतिक प्रक्रिया है।
सोशल मीडिया पर इतनी चर्चा क्यों?
1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट में दाऊद इब्राहिम के गुर्गे अबू सलेम का हाथ था। वह भेष बदलकर पुर्तगाल में रह रहा था। भारतीय जांच एजेंसियों ने उसका पता लगाया और सलेम के आतंकवादी कृत्य के सबूत पुर्तगाली सरकार के सामने रखे। वहां की अदालत में बहस हुई और अंतत: नवंबर 2005 में पुर्तगाल से सलेम का प्रत्यर्पण हुआ फिर तो इस महत्वपूर्ण प्रत्यर्पण को मनमोहन सरकार की कूटनीति की सफलता ही कहा जाएगा।
बेशक, सलेम को भारत लाया गया था, इसलिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ‘सलेम महोत्सव’ नहीं मनाया, जो आज राणा के मामले में सोशल मीडिया पर चल रहा है।
मुंबई पुलिस का बड़ा योगदान
इस जांच में मुंबई पुलिस का योगदान बहुत बड़ा है। अगर उन्होंने ‘26/11’ के पीछे की साजिश की गहन खोजबीन नहीं की होती तो हेडली और राणा का नाम कभी सामने नहीं आता। जब कसाब को फांसी दी गई तब महाराष्ट्र और देश में मोदी राज नहीं था। कसाब को फांसी दिए जाने के बाद ये खबर दुनिया के सामने आई। इतनी गोपनीयता बरती गई। अगर मोदी काल में कसाब को फांसी होती तो भक्त जश्न मनाते और उसका श्रेय लेकर मौज मनाते किस बात पर राजनीति करनी चाहिए यह सबक सिखाने का वक्त आ गया है। जिस कूटनीति से राणा को अमेरिका से भारत लाया गया, उसी कूटनीति का उपयोग करके नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, ललित मोदी को भारत क्यों नहीं लाया जाए? दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन को घसीट कर लाने की बात की गई थी। ‘पाकिस्तान में घुसकर मारेंगे’ जैसी शेखियां भी बघारी गई थीं। इसे दाऊद, मेमन के मामले में सच कर बताएं।
क्या यह चुनावी पैंतरा है?
पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव पाकिस्तान की जेल में बंद हैं। उनके साथ वास्तव में क्या हुआ, यह जानने का कोई तरीका नहीं है। इस मामले में मोदी-शाह आदि की कूटनीति या ‘दादागीरी’ क्यों काम नहीं कर रही? अगर कुलभूषण जाधव को वापस लाया गया तो भारत की जनता उत्सव मनाएगी और मोदी-शाह का कार्यकाल दो साल के लिए बढ़ा देगी। राणा को लाना आसान था, लेकिन कुलभूषण जाधव को लाना एक साहसिक कार्य है। क्या यह संभव होगा? असल में राणा की जरूरत है बिहार, पश्चिम बंगाल चुनाव में मोदी की कूटनीति का गुणगान करने के लिए। इस मामले के बहाने चुनाव के दौरान हर दिन विस्फोटक जानकारी सामने लाना और मीडिया को उसमें उलझाए रखना एक पुराना खेल है।
क्या मिलेगी तहव्वुर को फांसी?
‘26/11’ हमले के आरोपी तहव्वुर राणा पर तुरंत मुकदमा चलाकर फांसी दी जानी चाहिए, लेकिन उसे फांसी देने के लिए भी मुहूर्त निकाला जाएगा, वह भी बिहार-पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले। भारतीय जनता को मूर्ख बनाया जा रहा है। ये मूर्खों को अति मूर्ख बनाने की कूटनीति है। अंतत: हमारा प्रश्न बना हुआ है। राणा को अमेरिका ने सौंप दिया। कुलभूषण जाधव को पाकिस्तानी सेना अफगानिस्तान से अगवा कर पाकिस्तान ले गई थी। बताएं उन जाधव को कब रिहा कराया जाएगा? ‘राणा फेस्टिवल’ का नाटक बाद में देखते हैं।
(ये लेखक के निजी विचार है)
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