Shradh Rituals: पितृ पक्ष 29 सितंबर 2023 से 14 अक्टूबर 2023 तक चलेंगे। भारत वर्ष में अधिकांश सभी सनातन धर्मावलम्बियों को अपने पितरों की कृपा आशीर्वाद पाने के लिए श्राद्ध पक्ष के मध्य जलदान, पितर तर्पण व ऋषि तर्पण, देव तर्पण आग को तर्पण करके अपने पितरों की कृपा परिवारजन प्राप्त करते हैं। प्रत्येक वर्ष पितरों की प्रसन्नता प्राप्ति और दुःखों से मुक्ति होने का पर्व श्राद्ध 16 दिनों तक मनाया जाता है। प्रत्येक परिवारजन मृत्युतिथि पर ही श्राद्ध पिण्डदान, जलदान आदि करके पितों को तृप्त करते हैं। सभी सनातनधर्मावलंबियों को पितरों की कृपा, आशीर्वाद पाने के लिए तर्पण- श्राद्ध कर्म आदि अवश्य करने चाहिए। शास्त्र कहते हैं- “श्राद्धात परतरं नान्यच्छेयस्कर मुदाहृतम। तस्मात् सर्व प्रयत्नेन श्राद्धं कुर्यात विचक्षणः।।”
इस संसार में दैहिक, दैविक, भौतिक तीनों तापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिये ‘श्राद्ध’ से बढ़कर जनमानस के लए और कोई उपाय नहीं इसलिये मनुष्यों को यत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिये। पितरों के लिये समर्पित माहे श्रा़द्ध पक्ष भादों पूर्णिमा से अश्विन अमावस्या तक मनाया जाता है क्योंकि परमपिता ब्रह्मा ने यह पक्ष पितरों के लिये ही बनाया है। आदिकाल में सूर्यपुत्र यम ने परमेश्वर श्री शिव की 20 हजार वर्ष तक घनघोर तपस्या की थी जिससे देवाधिदेव प्रसन्न होकर वरदान के रूप में भगवान शिव ने यम को पितर लोक का अधिकारी बनाया। षास्त्र मत है जो प्राणी वर्ष पर्यन्त पूजा-पाठ आदि नहीं करते वे भी अपने पितरों का श्राद्ध, पिण्डदान करके ईष्ट कार्यसिद्धि और पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।
वर्षपर्यंत श्राद्ध करने के 96 अवसर आते हैं। ये हैं 12 महीने की 12 अमस्यायें, सतयुगा, त्रेता, द्वापर और कलयुग की प्रारंभ की 4 तिथियां मनुओं के आरंभ की 14 मनवादि तिथियां। बारह संक्रांतियां, 12 वैधृति योग। 12 व्यतिपाद योग, 15 महालय-श्राद्ध पक्ष की तिथिया। पांच अष्टका पांच अन्वष्टका और पांच पूर्वेयुह ये श्राद्ध करने के 96 अवसर हैं।
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श्राद्ध पक्ष का समय आ गया है ऐसा मानकर पितरों को प्रसन्नता होती है। वे परस्पर ऐसा विचार करके उस श्राद्ध में मन के समान तीव्र गति से आ पहुचते हैं। अंतरिक्ष गामी पितृगण श्राद्ध में ब्राह्मणों के साथ ही भोजन करते हैं, जिन ब्राह्मणों को श्राद्ध में भोजन कराया जाता है उन्हीं के शरीर में प्रविष्ट होकर पितृगण भी भोजन करते हैं उसके बाद अपने कुल के श्राद्ध करता को आशीर्वाद देकर पितृलोक चले जाते हैं।
किसी भी माह की जिस तिथि में परिजन की मृत्यु हुई हो, श्राद्धपक्ष में उसी से संबंधित तिथि में श्रा़द्धकरना उस पितृ का श्राद्ध करना चाहिए। कुछ खास तिथियां भी हैं जिनमें किसी भी प्रकार से मृत हुए परिजन का श्राद्ध किया जाता है। सौभाग्यवती अर्थात् पति के रहते ही जिस महिला की मृत्यु हो गयी है उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है। ऐसी स्त्री जो मृत्यु को तो प्राप्त हो चुकी किन्तु उनकी तिथि नहीं पता हो तो उनका भी श्राद्ध मातृनवमी को ही करने का विधान है।
सभी वैष्णव सन्यासियों का श्राद्ध एकादशी में किया जाता है जबकि शस्त्राधात, आत्महत्या, विष और दुर्घटना आदि से मृत लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है। सर्पदंश, ब्राह्मण श्राप, वज्रघात, अग्नि से जले हुए दंतप्रहार से हिंसक पशु के आक्रमण से, फांसी लगाकर मृत्यु, क्षय रोग, हैजा आदि किसी भी तरह की महामारी से डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले प्राणी श्राद्ध पितृपक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या के दिन करना चाहिये। जिसका करने पर संस्कार नहीं हुआ हो उनका भी अमावस्या को ही करना चाहिए।
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लेखक- डॉ. के.पी. द्विवेदी शास्त्री
राष्ट्रय अध्यक्ष
अखिल भारतीय ज्योतिष विचार संस्थान