Independence Day; नई दिल्ली, पल्लवी झा: आजादी की 77वीं वर्षगांठ पर ‘Nation First-Always First’ की सोच से हमारे लिए ये सवाल अहम हो जाता है कि देश का हेल्थकेयर सिस्टम मजबूत हुआ है या फिर अब भी खामी विद्यमान है। इसमें कोई शक नहीं है कि आज़ादी से अब तक स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर बीमारियों के उपचार, शोध और इनसे जुड़े कई क्षेत्रों में प्रगति हुई है। खासकर कोरोना काल ने भारत को सही मायने में आत्मनिभर बनाया है। ये कोरोना काल ही था जब भारत ने अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं के ज़रिये देश में ही नहीं, बल्कि विश्व भर में अपनी धाक जमाई। भारत ने न केवल वैक्सीन बनाई, बल्कि वैक्सीन मैत्री के तहत 100 से जायदा देशों में वैक्सीन पहुंचाई भी, यहां तक कि 150 देशों को दवाएं भी उपलब्ध कराईं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई बड़ी उपलब्धियां
देश चिकित्सा विज्ञान में तेजी से बढ़ रहा है। एमआरएनए तकनीक से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जेनोम सीक्वेंसिंग, नैनो तकनीक और यहां तक कि वर्चुअल रियलिटी का भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में तेज़ी से प्रभाव बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक, भारत मेडिकल डिवाइस के क्षेत्र में बड़ा हब बन रहा है, जिसकी मार्केट आने वाले समय में 50 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी जो फ़िलहाल 11 बिलियन डॉलर है।
इसके साथ ही आयुर्वेद, योगा, यूनानी और होम्योपैथी ने भी तेज़ी से रफ़्तार पकड़ी है। आयुष मंत्रालय की शुरुआत 9 नवंबर, 2014 से हुई थी। इस योजना के तहत हर भारतीय को कम लागत में बेहतर उपचार दिया जाता है। कोरोना काल के समय आयुष कार्ड के ज़रिये कई लोगों को बहुत कम कीमत में इलाज उपलब्ध कराया गया।
चिकित्सा सेवा में भारत की पहल
आयुष्मान भारत
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डाइलासिसिस कार्यक्रम
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन
टीबी उन्मूलन
टीबी और डेंगू के वैक्सीन पर शोध
स्वास्थ्य के क्षेत्र में अड़चनें
बेशक़ कई शहरों में एम्स जैसे अस्पताल खोले जा रहे हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में अस्पतालों की भारी कमी है और जहां हैं भी वहां उनकी हालत ठीक नहीं है। इसके साथ ही उपकरणों और संसाधनों में भी काफी कमी है। एक रिपोर्ट कहती है कि 19 एम्स में डॉक्टरों की 40 प्रतिशत और स्टाफ़ की 50 प्रतिशत की कमी है। इस लिहाज से मरीज़ और डॉक्टरों के अनुपात में काफ़ी अंतर है। यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के रेकमेंडेशन से काफी कम है।
वहीं, एक रिपोर्ट ये भी कहती है कि भारत में 1000 लोगों पर केवल 9 बेड ही उपलब्ध हैं। इसके अलावा, 60 प्रतिशत मौत के लिए नॉन कम्यूनिकेबल डिजीस और डाइबिटीज़, कैंसर और हार्ट की समस्या जिम्मेदार है। इसके चलते समस्याएं और बढ़ रही हैं।
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देश की सबसे बड़ी क्षमता यह है कि यहां बड़ी संख्या में ट्रेंड मेडिकल प्रोफेशनल हैं। एशियाई देशों और पश्चिम की तुलना में भारत स्वास्थ्य विकास में सस्ता और सुलभ एरिया देता है। साथ ही पश्चिम के मुकाबले सर्जरी बेहद कम दरों पर होती है। जेनेरिक दवाइयों पर भी सरकार तेजी से जोर दे रही है, जिसको लेकर कई बिल आए और बदलाव भी हुए हैं। चिकित्सा उपकरणों की तीव्रता से क्लीनिकल टेस्टिंग के लिए लगभग 50 क्लस्टर स्थापित होंगे। यह एक तरह से व्यापक विस्तार होगा। एपीआइ को लेकर भी जो बाक़ी देशों पर निर्भरता थी वो अब कम हो रही है, क्योंकि एपीआइ अब भारत में भी बनाना शुरू हो रहा है।
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स्वस्थ आदतें अपनाने से आप कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से बच सकते हैं। स्वस्थ भोजन और नियमित शारीरिक गतिविधियां आपको अधिक ऊर्जा देती हैं और आप विकास के कामों में भागीदारी देते हैं। स्वास्थ्य और लाइफस्टाइल एक-दूसरे से काफ़ी जुड़े हैं। पहले के मुक़ाबले अब भारत में स्वास्थ्य को लेकर जो जागरूकता बढ़ी है उससे लाइफस्टाइल को लेकर लोग सजग भी हुए हैं, लेकिन अभी मज़िल दूर है। ऐसे में इस फासले को तय करने के लिए स्वास्थ्य पर ज़ोर देना ज़रूरी है।
2050 तक भारत की स्थिति
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) 2017 में कल्पना की गई कि 2050 तक भारत में जनसांख्यिकीय, महामारी विज्ञान और आर्थिक परिवर्तन होंगे। सर्जरी में रोबोटिक्स टेक्नोलॉजी, नेनो तकनीक, बायोटेक, एआई/एमएल जैसी टेक्नोलॉजी के ज़रिए भारत का हेल्थ सेक्टर काफी एडवांस हो जाएगा। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि भविष्य में इस टेक्नोलॉजी का नियमित रूप से और कम लागत में इस्तेमाल भी किया जाएगा। यानी हेल्थ फॉर ऑल की तरफ़ अग्रसर होंगे।