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पुलिस या आर्मी में नौकरी लगने पर आपराधिक केस छिपाया तो क्या जॉब जाएगी? पढ़ें सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

what happened if you hide a criminal case in police army job: जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने तमिलनाडु पुलिस की अपील पर हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने एक प्रतिभागी को बाइज्जतबरी मानकर नियुक्ति का आदेश दिया था।

what happened if you hide a criminal case in police army job: आजकल बहुत सारे युवा कंपटीशन की तैयार कर पुलिस और सेना में भर्ती हो रहे हैं। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति पर कोई पुराना आपराधिक मामला था और उसमें वह बरी हो जाता है। हालांकि, वह भर्ती के दौरान इस बारे में खुलासा नहीं करता है तो इससे नौकरी खोने का खतरा हो सकता है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस, सेना और अर्धसैनिक बलों में चरित्र संबंधी पुरानी जानकारी छिपाने के संदर्भ में अपना फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति भर्ती के दौरान चरित्र संबंधी जानाकारी छुपाता है तो यह अयोग्यता का आधार है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस, सेना और अर्धसैनिक बलों में भर्ती होने वालों के चरित्र संबंधी पुरानी जानकारियों को छिपाने के संदर्भ में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पुराने आपराधिक मामले में बरी होने के बावजूद सुरक्षाबल में भर्ती के लिए जानकारी छिपाता है तो यह अयोग्यता का आधार है। नौकरी लगने पर आपराधिक केस छिपाया तो क्या जॉब जाएगी? जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने तमिलनाडु पुलिस की अपील पर हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया। हाई कोर्ट ने एक प्रतिभागी को बाइज्जत बरी मानकर नियुक्ति का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुरक्षाबलों में नियुक्ति के लिए जरूरी है कि आवेदक आपराधिक पृष्ठभूमि से न हो। यह जानकारी फॉर्म में पूछी जाती है। अगर कोई जानकारी नहीं देता तो इसे  जानबूझ कर छिपाना माना जाएगा। यह आवेदक को नौकरी से अयोग्य ठहराने के लिए पर्याप्त है। दरअसल, तमिलनाडु के जे. रघुनीस ने कांस्टेबल भर्ती के फॉर्म में अपने खिलाफ दर्ज केस की जानकारी नहीं दी। पता चला कि उस पर मारपीट का केस दर्ज था और उसमें वह बरी हो चुका है। पीठ ने कहा कि जानकारी न देने से संदेह पैदा होता है। ये भी पढ़िए: अगर पत्नी पढ़ी-लिखी है तो क्या उसे नौकरी करने के लिए मजूबर किया जा सकता है? पढ़िए हाईकोर्ट की टिप्पणी


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