West Bengal News: आसनसोल से अमर देव पासवान की रिपोर्टः कभी अपनी शिक्षा के लिए मशहूर पश्चिम बंगाल का काजी नजरूल यूनिवर्सिटी आज अखाड़ा बनी हुई है। देश के जाने माने कवि, साहित्यकार, संगीतकार और लेखक कवि काजी नजरूल इस्लाम के नाम पर इसका नाम रखा गया था। इस यूनिवर्सिटी में सिर्फ राज्य ही नहीं बल्कि देश के कोने-कोने से छात्र शिक्षा लेने के लिए आते हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों से वाइस चांसलर साधन चक्रवर्ती और रजिस्ट्रार डॉक्टर चंदन कोनार के बीच चल रहे विवाद ने माहौल ही बदल दिया है।
रजिस्ट्रार ने वीसी पर लगाए ये आरोप
जानकारी के मुताबिक रजिस्ट्रार डॉक्टर चंदन कुमार ने विवि के वाइस चांसलर साधन चक्रवर्ती के कार्यकाल में उनके द्वारा किए गए कई तरह कथित घोटालों का मामला पकड़ा था। इसमें विवि में लगे सैकड़ों पेड़ों की अवैध रूप से कटाई करवाकर रातोंरात विवि से बाहर निकलवाना, यूनिवर्सिटी में बिना अनुमति व सरकार को सुचना दिए मनमाने तरीके से छात्रों से पैसे लेना, यूनिवर्सिटी में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम करवाने के नाम पर बेफिजूल फंड खर्च करना आदि आरोप शामिल हैं।
वीसी ने रजिस्ट्रार को दिखाया बाहर का रास्त
आरोप है कि इससे नाराज यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर साधन चक्रवर्ती ने रजिस्ट्रार डॉक्टर चंदन कोनार को विवि से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। साथ ही आदेश जारी किया है कि उनको यूनिवर्सिटी में प्रवेश न दिया जाए। इस आदेश के बाद रजिस्ट्रार डॉक्टर चंदन कोनार धरने पर बैठ गए हैं। साथ ही खुद पर हुए अन्याय के खिलाफ कोलकाता हाई कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है।
रजिस्ट्रार के साथ धरने पर बैठे कर्मचारी और छात्र
स्थानीय जानकारी के मुताबिक यूनिवर्सिटी के कई कर्मचारियों और छात्र-छात्राएं उनका साथ खड़े हो गए हैं। धरनारत लोगों का कहना है कि वाइस चांसलर पिछले चार वर्षों से यूनिवर्सिटी में जमे हुए हैं, जबकि नियम अनुसार उनका तबादला हो जाना चाहिए। आरोप लगाया गया है कि ऐसी कौन सी बात है कि वाइस चांसलर बिना किसी रोक-टोक के इस पद पर जमे हुए हैं।
हाईकोर्ट ने लगाई वीसी के आदेश पर रोक
बताया गया है कि यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों द्वारा पश्चिम बंगाल कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी प्रोफेसर एसोसिएशन के बैनर तले पिछले 11 दिन से चल रहा आंदोलन रंग लाया है। कोलकाता हाईकोर्ट ने यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डॉक्टर चंदन कोनार की बर्खास्तगी पर रोक लगाते हुए स्टे दे दिया है। हालांकि हाईकोर्ट के स्टे ऑर्डर के बाद भी रजिस्ट्रार को पदभार संभालने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।