समान पाठ्यक्रम संस्कृति को ध्यान में नहीं रखता…स्कूलों से जुड़ी याचिका का CBSE ने किया विरोध
Cbse against common curriculum in schools: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने एक समान पाठ्यक्रम को लागू जनहित याचिका का विरोध किया है। बता दें कि एक समान पाठ्यक्रम की मांग को लेकर अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से जनहित याचिका दाखिल की गई थी। सीबीएसई की ओर से कोर्ट में दलील दी गई कि पाठ्यक्रम और रिसोर्सेज में बहुलता का होना भी जरूरी है। मुख्य तत्व ही काफी नहीं होता। अगर पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम या बोर्ड बनता है, तो यह स्थानीय संस्कृति, संदर्भ और भाषा को ध्यान में रख सकेगा।
हर राज्य को अपने पाठ्यक्रम का अधिकार
सीबीएसई के अधिवक्ता ने याचिका को फौरन खारिज करने की मांग की। उन्होंने दलील दी कि स्थानीय संस्कृति और संसाधनों पर जोर देने के लिए पाठ्यक्रम में लचीलापन काफी जरूरी होता है। ताकि विद्यार्थी अच्छी तरह शिक्षा ग्रहण कर सकें। सीबीएसई की ओर से हवाला दिया गया कि एजुकेशन को संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है। जिसके तहत हर राज्य को अधिकार है कि वह अपने स्कूलों के लिए पाठ्यक्रम अपनी संस्कृति के मुताबिक तैयार कर सकता है। जिसके बाद ही परीक्षा का आयोजन किया जाता है।
दलील-एक समान सिलेबस से मिटेगा भेदभाव
ऐसे में राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) विभिन्न पाठ्यक्रमों या पाठ्यपुस्तकों का अपने हिसाब से चयन करते हैं। वे अपने स्वयं का सिलेबस और पुस्तकें भी निर्धारित कर सकते हैं। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पूरी छूट दी गई है कि वह अपने हिसाब से पुस्तकों का चयन बच्चों के लिए कर सकते हैं। कोर्ट में दलील दी गई कि सीबीएसई की ओर से ही एनसीईआरटी का सिलेबस अपनाया जाता है।
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जिसके तहत ही पुस्तकें सेलेक्ट होती हैं। लेकिन इसके अलावा आईसीएसई और राज्य बोर्ड अपने हिसाब से अलग पाठ्यक्रम या पुस्तकें डिसाइड करते हैं। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 21ए और 16 के खिलाफ है। सभी का सिलेबस अलग है। अगर एक जैसा सिलेबस लागू होगा, तो एक समान संस्कृति डेवलप होगी। इससे समाज में असमानता और भेदभाव दूर होगा। जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा।
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