भड़काऊ बयानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, सरकारों से कहा- कार्रवाई कीजिए नहीं तो अवमानना के लिए रहें तैयार
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प्रभाकर कुमार मिश्र, दिल्ली। हाल के दिनों में देश में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने और आतंकित करने के बढ़ते खतरे को रोकने के लिए कोर्ट के दख़ल की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की कि "21 वीं सदी में ये क्या हो रहा है? धर्म के नाम पर हम कहाँ से कहाँ पहुंच गए हैं? हमने ईश्वर को कितना छोटा बना दिया है ?" तो लगा कि कानों में वर्ष 1954 की फ़िल्म नास्तिक में कवि प्रदीप का गाया गाना बज रहा हो कि 'देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान।'
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अदालत की दख़ल के बावजूद नफ़रती बयानबाजों के खिलाफ़ सरकारों का कोई कार्रवाई न कर करना देश की सबसे बड़ी अदालत के जजों को भी परेशान कर रहा था।
सुनवाई शुरू हुई तो जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय ने दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड राज्य सरकारों के वकीलों से पूछा कि आपके यहाँ भड़काऊ भाषणों को लेकर जो शिकायतें थीं, अभी तक क्या कार्रवाई हुई है? याचिका कर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने दख़ल देते हुए कहा कि कई बार शिकायत की गई लेकिन उसपर कोई ऐक्शन नहीं लिया गया। इस तरह की घटनाएं रोज़ हो रही हैं। कपिल सिब्बल ने दिल्ली के बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के उस भाषण का भी जिक्र किया जिसमें मुस्लिमों के बहिष्कार की बात की गई थी। सिब्बल ने यह भी कहा कि ऐसे कार्यक्रमों में पुलिस मौजूद रहती है, पुलिस की मौजूदगी में इस तरह की बातें कही जाती हैं।
इसपर जस्टिस जोसेफ ने कपिल सिब्बल से पूछा कि जब आप कानून मंत्री थे तब आपने इस तरह के भड़काऊ भाषणों को रोकने को लेकर क्या कदम उठाया था। कोर्ट ने यह भी पूछा कि इस तरह के भड़काऊ बयान केवल मुस्लिमों के खिलाफ ही आ रहे हैं या मुस्लिम भी ऐसे भड़काऊ बयान दे रहे हैं। कोर्ट ने यह पूछा जरूर था लेकिन कोर्ट को पता था कि इस तरह के जहरीले बयान दोनों तरफ से आ रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारा संविधान संविधान वैज्ञानिक सोच विकसित करने की बात करता है। लेकिन हम धर्म के नाम पर कहाँ पहुंच गए हैं। इस तरह के बयान बहुत ही परेशान करने वाले हैं। ऐसे भड़काऊ बयानों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए यह स्थिति अत्यंत दुःखद है। ऐसी स्थिति पहले नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच देने वालों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जरूरत बताते हुए आदेश दिया कि भड़काऊ बयान के मामलों में अगर कोई शिकायत नहीं भी करता है तो पुलिस को स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह कार्रवाई धर्म की परवाह किए बिना होनी चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों से कहा है कि या तो हेट स्पीच वालों के खिलाफ कार्रवाई कीजिए नहीं तो अवमानना की कार्रवाई के लिए तैयार रहिए। साथ ही कोर्ट ने दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड के पुलिस को नोटिस कर जवाब तलब किया कि हेट स्पीच में लिप्त लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई ?
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