Supreme Court: लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। इस सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि ‘अगर कोई महिला कई सालों तक किसी पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहती है, तो यह माना जाएगा कि वह इस रिश्ते के संभावित अंजामों से पूरी तरह वाकिफ थी।’ कोर्ट ने कहा कि ऐसे में केवल यह आरोप लगाना कि पुरुष ने शादी का झूठा वादा किया था, यह स्वीकार्य नहीं होगा। जानिए सुनवाई के दौरान कोर्ट ने और क्या कुछ कहा।
कोर्ट का अहम फैसला
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि लंबे समय तक रिलेशनशिप में रहने के बाद यह आरोप लगाना कि ‘पुरुष ने शादी का झूठा वादा किया था, जिसके कारण दोनों के बीच संबंध बने, अदालत में स्वीकार्य नहीं होगा। खासकर जब FIR में इस संबंध में कोई स्पष्ट उल्लेख न हो।’ कोर्ट ने आगे कहा कि ‘ऐसे मामलों में यह दावा करना कि शारीरिक संबंध शादी के झूठे वादे पर आधारित थे, विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।’
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कोर्ट ने यह भी कहा कि ‘आज के समय में समाज में बड़े बदलाव आए हैं। अधिक महिलाएं अब आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं और अपने जीवन के फैसले खुद ले रही हैं, जिससे लिव-इन रिलेशनशिप की संख्या भी बढ़ी है। इस पृष्ठभूमि में अदालतों को इन मामलों में तकनीकी दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए, बल्कि रिश्ते की अवधि और दोनों पक्षों के व्यवहार को देखकर निष्कर्ष निकालना चाहिए।’
बलात्कार और मारपीट के आरोप का मामला
यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त दी जब उसने एक महिला द्वारा दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति रविश सिंह राणा पर बलात्कार और मारपीट के आरोप लगाए गए थे। दोनों की मुलाकात फेसबुक पर हुई थी और फिर वे लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगे। महिला ने आरोप लगाया था कि राणा ने शादी का वादा कर शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन बाद में शादी से इनकार कर दिया और धमकाया।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस मामले में ऐसा कोई ठोस साक्ष्य नहीं है जो बलात्कार या मारपीट के आरोपों को सिद्ध कर सके। अदालत ने हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें राणा की याचिका खारिज कर दी गई थी।
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