Men’s Sexual Harassment: भारत में कार्यस्थल पर पुरुषों के यौन उत्पीड़न के लिए कोई अलग से कानून नहीं बना है। इसके बावजूद भी कई कानून और संगठन बनाए गए हैं जो यौन उत्पीड़न के मामलों में आपकी मदद कर सकते हैं। पुरुषों के साथ यौन उत्पीड़न को लेकर अक्सर चुप्पी देखने को मिलती है, जबकि पुरुषों के साथ भी महिलाओं की तरह ही यौन उत्पीड़न मामले सामने आते हैं। ऐसे मामलों के दबे रह जाने की भी कई वजह सामने आई हैं।
यौन उत्पीड़न में क्या आता है?
कार्यस्थलों पर कई तरह से यौन उत्पीड़न को डिफाइन किया जाता है। इसमें किसी सहकर्मी, सुपरवाइजर या ग्राहक या क्लाइंट जो आपको बिना मर्जी के छूते हैं, टिप्पणियां करना या किसी तरह के चुटकुलों के जरिए आपको असहज करना भी यौन उत्पीड़न के अंदर आता है।
पुरुषों का भी होता है यौन उत्पीड़न
भारत में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कानून हैं जहां पर वो अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं। जब बात मर्द की आती है तो इस तरह का कोई मामला दर्ज नहीं हो पाता है। अगर पुरुषों का उत्पीड़न होता है तो POSH के तहत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। POSH एक्ट सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं होता है, बल्कि इसमें कोई भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। इसके अलावा मानव संसाधन विभाग में पुरुष शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
कहां कराए शिकायत?
जिस समाज में हम रहते वहां पर कई तरह के लोग हैं। इसमें कई बार शोषण के मामले सामने आते हैं। इसी के लिए आईपीसी की धारा 377 में बिना सहमति के समलैंगिकता को अपराध माना गया है। इस कानून में पुरुषों को बलात्कार का शिकार माना गया है। लेकिन इस तरह का कोई मामले में अगर महिला अपराधी होती है तो उसमें ये कानून काम नहीं करता है।
इसके अलावा आपराधिक (संशोधन) अधिनियम 2013 के तहत भी पुरुष एक्शन ले सकते हैं। इसमें एसिड अटैक और एसिड अटैक के प्रयास जैसे मामलों को रखा जाता है। इसके तहत लिंग की परवाह किए बिना कोई भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। इसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विनियम, 2015 का नाम भी शामिल है। जो यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून है जिसे कॉलेजों, विश्वविद्यालयों पर लागू किया गया है, और सबसे अच्छी बात कि ये जेंडर बायस्ड है।
क्यों नहीं की जाती है इसपर बात?
पुरुषों के यौन उत्पीड़न का एक बड़ा मुद्दा है जिसपर बहुत कम बात की जाती है। इस मामले में पुरुषों का भी महिलओं के जैसा ही हाल है। कुछ साल पहले तक बदनामी के डर से महिलाएं अपने साथ हुए उत्पीड़न की बात नहीं करती थीं। अब सब खुलकर सामने आती हैं, लेकिन अब इस पुरुष प्रधान समाज में खुद पुरुष अपने यौन उत्पीड़न पर बात नहीं कर पाता है, क्योंकि उनकी इज्जत पर बात आती है।
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