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Odisha Foundation Day 2023: क्यों मनाया जाता है उत्कल दिवस? जानें ओडिशा राज्य की स्थापना से जुड़े तथ्य

Odisha Foundation Day 2023: प्रत्येक वर्ष एक अप्रैल को ओडिशा स्थापना दिवस मनाया जाता है। इसे उत्कल दिवस भी कहा जाता है। इस दिन विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। देश विदेश के लोग इन कार्यक्रमों का भाग बनने के लिए ओडिशा आते हैं। क्याें मनाया जाता है यह दिवस इस दिवस को मनाने […]

Odisha Foundation Day 2023: प्रत्येक वर्ष एक अप्रैल को ओडिशा स्थापना दिवस मनाया जाता है। इसे उत्कल दिवस भी कहा जाता है। इस दिन विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। देश विदेश के लोग इन कार्यक्रमों का भाग बनने के लिए ओडिशा आते हैं।

क्याें मनाया जाता है यह दिवस

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को ओडिशा के इतिहास, यहां की संस्कृति के बारे में जागरूक करना और यहाँ के ऐतिहासिक स्थलों के प्रति लोगों को आकर्षित करना है। उत्कल दिवस ओडिशा राज्य की एक अलग राजनीतिक पहचान हासिल करने के दिवस के रूप में मनाया जाता है।

उत्कल दिवस 2023 थीम

इस साल के उत्कल दिवस 2023 की थीम "उड़िया संस्कृति और विरासत की विरासत का जश्न" रखी गई है। यह थीम ओडिशा की विशाल संस्कृति और परम्पराओं पर प्रकाश डालती है। इसके तहत ओडिशा दिवस की थीम ओडिया भाषा, संस्कृति, कला, नृत्य और साहित्य के बारे में जागरूकता फ़ैलाने और प्रोत्साहन करने का काम करेगी। वास्तुकला, मूर्तिकला, विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में ओडिशा के योगदान को रेखांकित करना इस थीम का उद्देश्य है। इसके अंतर्गत तरह-तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा। ऐसे समारोहों के माध्यम से ओडिशा राज्य की अद्भुत संस्कृति और विरासत को प्रदर्शित करने का मंच दिया जाएगा।

ओडिशा का इतिहास

ओडिशा राज्य की स्थापना 1 अप्रैल 1936 को हुई थी। आजादी से पहले ब्रिटिश शासन के अंतर्गत ओडिशा बंगाल प्रेसीडेंसी का एक हिस्सा था। तीन सदियों के लंबे संघर्ष के बाद 1 अप्रैल 1936 को राज्य को बंगाल और बिहार प्रांत से अलग किया गया था। तभी से एक अप्रैल को ओडिशा स्थापना दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

आज़ादी के बाद ओडिशा और आस-पास की रियासतों ने तत्कालीन भारत सरकार को अपनी सत्ता सौंप दी थी। ओडिशा राज्य की एक अलग ब्रिटिश भारत प्रांत के रूप में स्थापना की गई थी। कहा जाता है कि तकरीबन एक शताब्दी तक उड़ीसा पर मौर्य वंश का ही शासन रहा। लेकिन बाद में ओडिशा पर राजा खारवेल का शासन शुरु हुआ। राजा खारवेल ने मौर्य वंश के साथ संघर्ष किया और आखिरकार उड़ीसा को मगध शासन से मुक्त कराने में सफल हुए। इतिहासकार बताते हैं कि राजा खारवेल ने ही ओडिशा की सांस्कृतिक पृष्टभूमि को विकसित किया तथा वास्तु कला, मूर्ति कला एवं स्थापत्य कला आदि को बढ़ावा देते हुए स्थानीय संस्कृति का विकास किया। बताया जाता है कि उड़ीसा के अंतिम हिंदू राजा गजपति मुकुंद देव थे जिन्हें मुगलों ने पराजित कर दिया और उड़ीसा पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। बाद में इस पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया।

ओडिशा की धार्मिक पहचान

ओडिशा को भगवान जगन्नाथ की जन्मभूमि कहा जाता हैं। ओडिशा में वर्तमान में 30 ज़िले हैं। क्षेत्रफल के अनुसार यह देश का 8वां और जनसंख्या के अनुसार 11वां सबसे बड़ा राज्य है। आदिवासियों की जनसंख्या के मामले में ओडिशा भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। 1135 से लेकर 1948 तक कटक ओडिशा राज्य की राजधानी रही। ओडिशा का मूल एवं प्राचीन नाम उड़ीसा था। लेकिन साल 2011 में लोकसभा में लाए गए उड़ीसा विधेयक या 113 वां संविधान संशोधन विधेयक को अनुमति मिलने के बाद उड़ीसा का नाम बदल कर ओडिशा कर दिया गया।


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