नई दिल्ली: देश में जश्न-आजादी का माहौल है। इस खास मौके पर हम अगर उन वीरों को याद न करें, जिन्होंने ‘Nation First, Always First’ की भावना दिल में लिए मां भारती पर अपना सर्वस्व वार दिया तो यह बड़ा बेमानी होगा। देश के एक बढ़कर एक क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई, जिनमें से एक अमर शहीद महर्षि अरविंद घोष भी थे। बड़ा अजीब संयोग था कि जिस दिन हमारा वतन गुलामी की जंजीरों से मुक्त हुआ, आजादी के इस दीवाने का 76वां जन्मदिन था। बड़ी बात यह भी है कि इस महान क्रांतिकारी को महर्षि अरविंद ऐसे ही नहीं कहा गया। इसके पीछे इनके जीवन मूल्य बड़ी अहमियत रखते हैं। आइए जानें महर्षि अरविंद घोष के जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक बातें…
- 15 अगस्त 1972 को बंगाल की राजधानी कलकत्ता में डॉ. केडी राधाकृष्णन के घर जन्मे अरविंद को 5 साल की उम्र में पढ़ाई के लिए दार्जिलिंग के लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल में भेजा गया। 18 साल की उम्र में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की थी।
- कैम्ब्रिज में रहते हुए अरविंद घोष ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए 1890 में भारतीय सिविल सेवा (ICS) की लिखित परीक्षा पास कर ली। घुड़सवारी के जरूरी इम्तिहान में पास नहीं हो पाने की वजह से वह यह सेवा ज्वायन नहीं कर सके।
- स्वदेश वापसी के बाद उनके विचारों से प्रभावित होकर गायकवाड़ नरेश ने उन्हें बड़ौदा में अपने निजी सचिव के तौर पर रख लिया, यहीं से कलकत्ता आकर जंग-ए-आजादी के मैदान में कूद पड़े।
- पहले अपने भाई बारिन के माध्यम से बाघा जतिन, जतिन बनर्जी और सुरेंद्रनाथ टैगोर जैस क्रांतिकारियों के संपर्क में आए तो फिर 1902 में अहमदाबाद के आयोजित कॉन्ग्रेस के सत्र में बाल गंगाधर तिलक से भेंट हुई।
- 1906 में बंगाल विभाजन आंदोलन के दौरान महर्षि अरविंद घोष ने नौकरी से इस्तीफा देकर बड़ौदा से कलकत्ता का रुख कर लिया। उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ साप्ताहिक के सहसंपादन के रूप से काम शुरू करते हुए ब्रिटिश सरकार के अन्याय के खिलाफ जमकर लिखा। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लिखने के चलते मुकदमा दर्ज हुआ और गिरफ्तार भी हुए, लेकिन जल्द ही छूट भी गए।
- इसके बाद बंगाल विभाजन के बाद हुए क्रांतिकारी आंदोलन से नाम जुड़ा तो 1908-09 में अलीपुर बमकांड में राजद्रोह का मुकदमा चल गया और फिर जेल जाना पड़ा।
- अलीपुर जेल से अरविंद घोष का जीवन पूरी तरह से बदल गया। वह न सिर्फ तप साधना करते, बल्कि निरंतर गीता पाठ भी करते थे। इसके असर के बारे में कहा जाता है कि जेल में भगावन कृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए।
- जेल से बाहर आने के बाद आंदोलन से थोड़ा विरक्त होते हुए 1910 में अरविंद घोष पुड्डचेरी चले गए। वहां उन्होंने योग द्वारा सिद्धि प्राप्त की। अरविंद आश्रम ऑरोविले की स्थापना की थी और काशवाहिनी नामक ग्रंथ की रचना की। एक महान योगी और दार्शनिक महर्षि अरविंद ने योग साधना पर कई मौलिक ग्रंथ लिखे।
- महर्षि अरविंद घोष के बारे में एक और बड़ी बात यह भी प्रचलित है कि निधन के4 दिन तक उनके पार्थिव शरीर में दिव्य आभा बनी रही। इसकी वजह से उनका अतिम संस्कार नहीं किया गया। बाद में 9 दिसंबर 1950 को उन्हें आश्रम में ही समाधि दी गई थी।