पाकिस्तान के लिए अतंरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की ओर से नए ऋण कार्यक्रम को मंजूरी देने के मतदान में भारत ने हिस्सा नहीं लिया। भारत सरकार के सूत्रों के मुताबिक, भारत ने यह कदम पाकिस्तान को दिए जा रहे वित्तीय समर्थन पर गहरी आपत्ति जताने के उद्देश्य से उठाया है। भारत सरकार के सूत्रों ने स्पष्ट किया कि यह अनुपस्थिति विरोध की कमी नहीं बल्कि IMF की नियमावली की सीमाओं में रहकर विरोध दर्ज कराने का तरीका था। IMF की प्रणाली में औपचारिक रूप से “ना” वोट देने का प्रावधान नहीं है। सदस्य देश या तो समर्थन में वोट करते हैं या फिर अनुपस्थित रहते हैं।
भारत ने अपनी आपत्तियों को स्पष्ट रूप से IMF बोर्ड के सामने रखा
इनमें मुख्य रूप से तीन बिंदु शामिल थे:-
1. IMF सहायता की प्रभावशीलता पर सवाल: भारत ने कहा कि पाकिस्तान ने पिछले 35 वर्षों में 28 बार IMF से सहायता प्राप्त की है, जिनमें केवल पिछले पांच वर्षों में चार कार्यक्रम शामिल हैं। इसके बावजूद कोई स्थायी सुधार नहीं हुआ है।
2. पाकिस्तानी सेना की आर्थिक मामलों में दखल: भारत ने यह भी उजागर किया कि पाकिस्तान में सेना का आर्थिक प्रणाली पर नियंत्रण पारदर्शिता और नागरिक शासन के लिए गंभीर चुनौती है।
3. सीमा पार आतंकवाद का मुद्दा: भारत ने दो टूक कहा कि ऐसे देश को वित्तीय सहायता देना, जो लगातार सीमा पार आतंकवाद को प्रायोजित करता है, न केवल अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की साख को खतरे में डालता है बल्कि वैश्विक मूल्यों का भी उल्लंघन करता है।
सूत्रों के अनुसार, भारत ने यह भी चेताया कि IMF जैसी संस्थाओं से मिलने वाली धनराशि का दुरुपयोग आतंकवाद फैलाने और सैन्य उद्देश्यों में किया जा सकता है, जिससे न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा होगा, बल्कि वैश्विक स्थिरता भी प्रभावित हो सकती है। IMF बोर्ड ने भारत की अनुपस्थिति और उसके बयान को औपचारिक रूप से रिकॉर्ड किया है।