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क्या महात्मा गांधी के दौर में Insta, Facebook होता तो वे इसका इस्तेमाल करते?

Anurradha Prasad Show On Mahatma Gandhi: इंटरनेट और सोशल मीडिया ने हर आम-ओ-खास की जिंदगी को प्रभावित किया है। आज की तारीख में बच्चे से बुजुर्ग तक सोशल मीडिया पर घंटों अपना समय गुजारते हैं। फेसबुक, इंस्टा और एक्स पर अपने विचार साझा करते हैं। वर्चुअली पूरी दुनिया से जुड़ने की कोशिश करते हैं। लेकिन, क्या […]

Edited By : Bhola Sharma | Updated: Oct 1, 2023 20:54
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Anurradha Prasad Show

Anurradha Prasad Show On Mahatma Gandhi: इंटरनेट और सोशल मीडिया ने हर आम-ओ-खास की जिंदगी को प्रभावित किया है। आज की तारीख में बच्चे से बुजुर्ग तक सोशल मीडिया पर घंटों अपना समय गुजारते हैं। फेसबुक, इंस्टा और एक्स पर अपने विचार साझा करते हैं। वर्चुअली पूरी दुनिया से जुड़ने की कोशिश करते हैं। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि अगर महात्मा गांधी के दौर में सोशल मीडिया होता तो वो इसका इस्तेमाल कैसे करते? जो लोग रोजाना घंटों सोशल मीडिया पर घंटों व्यस्त रहते हैं-जिनके आचार-विचार, भाषा और संस्कार सब वचुर्अल गुरु, गाइड और दोस्त से प्रभावित हो रहा है। उनके लिए महात्मा गांधी किस तरह का संदेश देते?

ऐसे में बड़ा सवाल है कि सोशल मीडिया आपको समाज से जोड़ रहा है या अकेला बना रहा है? सोशल मीडिया पर दोस्त खोजने वाले बच्चे किस तरह से धीरे-धीरे बीमार बनते जा रहे हैं? बच्चे क्यों दूसरों से घुलने-मिलने या बाहर खेलने की जगह बंद कमरे में स्मार्टफोन में अपनी खुशी खोजने लगे हैं? क्या सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए भी सरकार को उम्र तय करनी चाहिए? क्या शहरी जीवन में अकेलापन से छुटकारे के लिए लोगों की धर्म-कर्म में रुचि बढ़ी है? अगर आज महात्मा गांधी होते तो धर्म को किस तरह से देखते? लोगों को धर्म और कर्म के मायने किस तरह से समझाते? ऐसे सभी सुलगते सवालों के जवाब जानिए…

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कुछ महीने बाद फेसबुक के बीस साल पूरे हो जाएंगे

एक कहावत है कि मुफ्त के बैल के दांत नहीं गिने जाते हैं। मुफ्त के सोशल मीडिया और दुनिया से जुड़ने की चाह में रोजाना करोड़ों लोग अपना चार से पांच घंटे का कीमती वक्त खर्च कर रहे हैं। बदले में उन्हें क्या मिल रहा है। इस पर पूरी दुनिया में बड़ी बहस छिड़ी है। सवाल ये भी उठ रहा है कि अगर महात्मा गांधी इस दुनिया में होते तो क्या उनका फेसबुक, इंस्टा और X पर अकाउंट होता? क्या वो सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए लोगों से जुड़ने की कोशिश करते या फिर आधुनिक तकनीक मानते हुए किनारा कर लेते? कुछ महीने बाद फेसबुक के बीस साल पूरे हो जाएंगे, कल का ट्वीट और आज का एक्स 17 साल का हो चुका है। इंस्टाग्राम भी 13 साल का हो चुका है। Youtube लोगों के मनोरंजन से लेकर नई जानकारी हासिल करने का बड़ा जरिया बना हुआ है। फेसबुक, एक्स, इंस्ट्रा और यूट्यूब की सामान्य सेवाएं लेने के लिए अलग से फीस नहीं चुकानी पड़ती है। बस इंटरनेट से लैस स्मार्टफोन काफी है। ऐसे में कुछ वर्षों के भीतर ही बच्चों से लेकर बुर्जुग तक किसी न किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक्टिव हैं। बेरोजगारों के लिए सोशल मीडिया एक ऐसा टाइमपास दोस्त बन चुका है, जहां घंटों Reel और Shots की दुनिया में बीत जाते हैं। सोशल मीडिया ने पिछले कुछ वर्षों में एक ऐसी संस्कृति को ड्राइविंग सीट पर ला दिया है, जिसमें पूरी दुनिया से वर्चुअली जुड़ने के चक्कर में लोग अपने परिवार में भी कटने लगे हैं।

घर-परिवार में संवाद की कड़ियां कमजोर हो रही

जब भी कोई तकनीक आती है तो उसके फायदे भी होते हैं और नुकसान भी। स्मार्ट फोन से अगर जिंदगी आसान हुई है। दुनिया की हर ख़बर और जानकारी आपकी उंगलियों के इशारे पर मौजूद है लेकिन, एक दूसरा सच ये भी है कि ये रोजाना आपको दुनिया से कनेक्ट करने के नाम पर अपनों के लिए समय कम देने पर मजबूर कर रही है। घर-परिवार में संवाद की कड़ियां कमजोर हो रही है। जिन छोटे परिवारों में माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं या काम के लिए बाहर जाते हैं उनके बच्चों का सबसे जिगरी दोस्त स्मार्टफोन है और उसी के जरिए पूरी दुनिया से जुड़ रहे हैं। अपनी पसंद-नापसंद के हिसाब ने नई भाषा, नई संस्कृति, नए संस्कार सीख रहे हैं। वर्चुअल दुनिया के बच्चे इतने Habitual हो चुके हैं कि उसी में उन्होंने अपने लिए हीरो, दोस्त और गाइड खोज रखे हैं। बच्चों की Personality Development में उनके मम्मी-पापा, दादा-दादी, पास-पड़ोस से ज्यादा छाप वर्चुअल वर्ल्ड की महसूस की जा रही है। कुछ रिसर्च के मुताबिक, सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा असर बच्चों की नींद पर पड़ता है। जिससे उनका Confidence हिल रहा है। खाने-पीने के तौर-तरीकों पर भी असर पड़ रहा है यानी बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी कम होने और स्क्रीन में घुसे रहने की वजह से बच्चों का मेंटल हेल्थ बहुत हद तक प्रभावित हो रहा है। ये एक वैश्विक समस्या बनती जा रही है।

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अपनी बात मिनटों में पहुंचाने का जरिया भी सोशल मीडिया

सोशल मीडिया से सिर्फ समस्याएं ही पैदा नहीं हुई हुई हैं। लोगों के वर्चुअली आपस में जुड़ने से कई मुश्किलें भी आसान हुई हैं। जहां खून के रिश्ते भी मदद से इनकार कर देते हैं, वहां वचुर्अल वर्ल्ड में बने अनजान रिश्ते भी मदद के लिए हाथ बढ़ाने लगते हैं। कोरोना महामारी के दौर में कितने ही लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए मदद मांगी और अनगिनत लोगों ने मदद की। सत्ता में बैठे बड़े से बड़े लोगों तक अपनी बात मिनटों में पहुंचाने का जरिया भी सोशल मीडिया बना हुआ है। अब सवाल उठता है कि अगर आज की तारीख में महात्मा गांधी लोगों के बीच होते तो सोशल मीडिया को किस तरह से देखते? क्या वो फेसबुक, एक्स या इंस्ट्रा का इस्तेमाल करते।

इस सवाल का जवाब खोजने के लिए 20वीं शताब्दी के शुरुआती दौर को समझना होगा। जब पूरी दुनिया में औद्योगीकरण की आंधी चल रही थी। तब दुनिया का बड़ा हिस्सा ये मानकर चल रहा था कि ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं होगा लेकिन, उसी दौर में महात्मा गांधी ने औद्योगीकरण के खतरों को भांप लिया और 1909 में अपनी किताब हिंद स्वराज में दुनिया के तरक्की का अद्भुत मॉडल दिया था। जिससे आज भी पूरी दुनिया रोशनी लेती है। हिंद स्वराज में गांधी जी ने भारत जैसे देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारी-भरकम मशीनों की जगह चरखे के इस्तेमाल की राह दिखाई। चरखा खुद में एक उम्दा मशीन है। मतलब, गांधी परिस्थितियों के हिसाब से मशीन और तकनीक के इस्तेमाल के पक्षधर थे। गांधी जी देश के सबसे बड़े मास लीडर रहे हैं, वो लोगों से अधिक से अधिक जुड़ने और संवाद में भरोसा रखते थे। ऐसे में मुझे लगता है कि गांधी जी सोशल मीडिया का इस्तेमाल लोगों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने और एक-दूसरे की मदद के लिए करते लेकिन, एक ऐसी लक्ष्मण रेखा भी खींचने की बात करते। जिससे सामाजिक ताने-बाने में लोगों का एक-दूसरे से मेल-जोल लगातार बना रहे।

गांधीजी ये काम जरूर करते

महात्मा गांधी सोशल मीडिया की अति और समाज पर दुष्प्रभावों को रोकने के लिए जरूर इसके सीमित इस्तेमाल की भी बात करते। लोगों से अपील करते कि हफ्ते में एक या दो दिन डिजिटल उपवास रखें और अपने आस-पास के लोगों से मिलें। सोशल मीडिया ने जिस तरह से परिवार के बीच भी लोगों को अकेला बना दिया है। ऐसे में गांधी जी घर में ऐसे कोना तय करने की बात जरूर करते, जहां परिवार के सदस्य बिना स्मार्टफोन के एक-दूसरे से मिल सकें। आपस में बातचीत कर सकें। पिछले कुछ वर्षों में ये भी महसूस किया गया है कि शहरी लोगों का धर्म के प्रति झुकाव बढ़ा है। शहरों की भीड़ में खुद को तन्हा महसूस कर रहे शहरी लोग अपने अकेलेपन से आजादी और मुश्किलों से छुटकारा के लिए धार्मिक स्थलों को अपने टूर प्लान में जोड़ रहे हैं। ऐसे में ये समझना भी जरूरी है कि महात्मा गांधी के लिए धर्म का मायने क्या था?

महात्मा गांधी को भारतीय समाज की गहराई से समझ थी। वो अच्छी तरह जानते थे कि धर्म से अलग कर भारतीयों को एकजुट नहीं किया जा सकता है। इसलिए, गांधी जी ने अपने राष्ट्रवाद के केंद्र में इंसान और इंसानियत को सबसे ऊपर रखा। हिंदू धर्म और हिंदुत्व को लेकर गांधीजी की अपनी विवेचना थी। उन्होंने खुद को सनातनी हिंदू कहा, लेकिन इसका दिखावा नहीं किया। उन्होंने गीता को अपनाया और उसे कर्म से जोड़ राष्ट्र निर्माण से जोड़ा ना कि हिंसा और युद्ध से। महात्मा गांधी पूरी दुनिया को एक ऐसी राह दिखा गए जिसमें सबको साथ लेकर चलने वाली सोच सबसे पवित्र समझी गई। इंसान को संतोष और जरूरतों को सीमित करने का दर्शन दिया गया। प्रकृति के साथ सामंजस्य और समावेशी समाज में सबका कल्याण देखा गया। ऐसे में महात्मा गांधी सोशल मीडिया से पैदा समस्याओं का समाधान संभवत: कुछ इस तरह निकालते कि तकनीक इंसानी रिश्तों पर भारी न पड़े। तकनीक सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने में मददगार की भूमिका में रहे न कि लोगों के दायरे को 6 इंच के तंग स्क्रीन में सीमित कर दे।

स्क्रिप्ट-रिसर्च: विजय शंकर

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Bhola Sharma

First published on: Oct 01, 2023 08:54 PM

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