नई दिल्ली। नई दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे नौ दिवसीय विश्व पुस्तक मेले के आठवें दिन लेखक मंच पर लोकसभा एवं राज्य सभा सांसद एवं उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे डी.पी. यादव (D.P. Yadav) के वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह ‘वक़्त साक्षी है’ का प्रख्यात भाषाविद् एवं पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक द्वारा विमोचन किया गया।
इस अवसर पर सम्मानित अतिथि के रूप में नामचीन शायर एवं कवि आलोक यादव के साथ वाणी प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अरुण माहेश्वरी एवं वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी समेत अन्य कई नामी-गिरामी शख़्सियतें मौजूद रहीं।
अपने लेखकीय सम्बोधन में पूर्व सांसद डी.पी. यादव (D.P. Yadav) ने कहा कि, “मैं यह नहीं कहता कि मैं कोई दार्शनिक हूं, लेकिन हां, मेरा अपना एक जीवन दर्शन है। मैंने जिंदगी को सदैव अपने नजरिए से देखा, परखा और समझा है। मैंने लहलहाते खेतों से लेकर सत्ता के चमकते गलियारों और जेल की सीलन भरी कोठरियों तक को नजदीक से देखा है। परिस्थितियां कैसी भी रही हों, मैंने कभी हार नहीं मानी, कभी अपना हौसला नहीं टूटने दिया। ज़्यादातर लोग सिर्फ सफलता की चमक देखते हैं लेकिन इस चमक के पीछे छुपी थकन, तड़प और घुटन पर उनकी नजर नहीं जाती। मेरी यात्रा का वो पक्ष, जो कुछ अनदेखा, अनजाना रह गया है वो इस काव्य-संग्रह के माध्यम से आप सबके समक्ष प्रस्तुत है। मुझे पूरा विश्वास है कि पाठकों विशेषकर युवाओं को इन कविताओं से प्रेरणा मिलेगी और जीवन को सदैव एक सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने की दृष्टि भी।”
वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिति माहेश्वरी ने बताया कि पूर्व मंत्री डी.पी. यादव (D.P. Yadav) के इस कविता संग्रह में 100 से अधिक कविताएं हैं और कुछ कविताएं पिछले चार-पाँच दशकों के राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में घटी प्रमुख घटनाओं को रेखांकित करती हुई प्रतीत होती हैं। पुस्तक वाणी प्रकाशन की ऑफिशियल वेबसाइट सहित अमेज़ॉन, फ़्लिपकार्ट जैसे सभी प्रमुख ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल्स पर भी उपलब्ध है।
आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर प्रकाशित हुई इस पुस्तक को डी.पी. यादव (D.P. Yadav) ने अपने पिता- स्वतंत्रता सेनानी स्व० महाशय तेजपाल यादव जी समेत आज़ादी के महायज्ञ में अपनी आहुति देने वाले सभी पुण्यात्माओं की पावन स्मृति को सादर समर्पित की है।
डी.पी. यादव (D.P. Yadav) के कविता संग्रह ‘वक़्त साक्षी है’ की कुछ चुनिंदा रचनाएं
मैं दबंग तबियत वाला हूं, इससे तो कोई इन्कार नहीं।
पर बेग़ैरत-सी बातों से, मेरा कोई सरोकार नहीं।
जोखिम और चुनौती के, हर कदम पर चलकर देखा है।
कमजर्फ और क़ायरों का, मैं कभी भी पैरोक़ार नहीं।
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यह मन मेरा क्यों व्याकुल है, मुझमें क्या ढूँढता रहता है।
जिनके उत्तर मुझे ज्ञात नहीं, वो प्रश्न पूछता रहता है।
कर्मों की एक सघन रेखा, कितनी मुश्किल से खींची थी।
फिर सफलता का शिखर पटल, मुझसे क्यों रूठा रहता है।
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मन की बातें कौन सुनेगा, किसको बताऊँ मन की बात।
रह-रहकर मन में रह जाते, उठते हुए सारे जज़्बात।
मेरा मन भी उतना उजला, पूर्णिमा का चाँद है जितना।
बिजली भी उसमें है इतनी, बादल में जितनी बरसात।
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ध्यान से सुन लो बच्चो मेरे, मैं वसीयत लिख जाऊँगा।
खेतों में बो देना मुझको, फसलों में तेरी लहराऊँगा|
कर्मठता की भूमि पर चलकर, मैंने ख़ुद को पाला है।
मुझे यकीन है मरकर भी, जीवन तुमको दे जाऊँगा।
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आओ जिन्दगी जीने के लिये, तुमको मैं इनवाइट करता हूँ।
जीवन के अहम मसलों से, मैं रोजाना फाईट करता हूँ।
जीवन में एक विश्वास बना, तू भूमण्डल की ताकत है।
खुशबू से भरे अभ्यारण में, मैं रोज़ाना फाईट करता हूँ।
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तेरी दुनिया में जीने का, मुझे कोई अफ़सोस नहीं।
तेरे अहसानों को न मानूं, मैं अहसान फ़रामोश नहीं।
सब रचना तेरे हाथों की, तू ही तो है रौनक सारी।
तू हिम्मत है, तू साहस है, बिन तेरे कोई संतोष नहीं ।
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