दिनेश पाठक, वरिष्ठ पत्रकार
First Lok Sabha Election 1952 Memoir: देश में आम चुनाव का शंखनाद कभी भी हो सकता है। सभी राजनीतिक अपनी-अपनी तैयारियों में जुटी हैं। पर क्या आप जानते हैं कि देश में जब पहला आम चुनाव हुआ था तो हालात कैसे थे और इन चुनावों के लिए किस तरह की तैयारी की गई थी। दरअसल, देश को अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद लोकतंत्र की स्थापना के लिए आम चुनाव की जरूरत महसूस की जाने लगी थी। इसके लिए आजादी के बाद दो साल के भीतर चुनाव आयोग की स्थापना हो गई थी। मार्च 1950 में सुकुमार सेन को पहला चुनाव आयुक्त किया गया था। इसके बाद साल अक्तूब 1951 से लेकर फरवरी 1952 तक पहले आम चुनाव के लिए वोट डाले गए थे।
महिलाओं ने नहीं बताया नाम और चुनाव से चूक गईं
भारतीय सिविल सेवा के 1921 के अधिकारी सुकुमार सेन पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के पद तक पहुंचे थे। वहां से मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर उन्हें दिल्ली लाया गया था, जिनके कंधों पर पहला आम चुनाव कराने की बड़ी जिम्मेदारी थी। लोकसभा और विधानसभाओं की करीब 4500 सीटों के लिए चुनाव कराना बड़ी चुनौती थी। इनमें 499 सीटें लोकसभा की थीं। पहले आम चुनाव में लगभग 17 करोड़ लोगों ने भाग लिया था। इनमें से 85 फीसदी लोग लिख-पढ़ नहीं सकते थे। महिलाएं अपना नाम तक बताने से कतराती थीं। इसलिए बड़ी संख्या में महिलाओं के नाम मतदाता सूची में नहीं आ पाए और वे मतदान से वंचित रह गई थीं।
1952 :: Old Man Being Taken to Polling Booth For Voting In First Lok Sabha Election of India #IndianElections2019 pic.twitter.com/Ahq8UITzxd
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इतनी भारी-भरकम टीम लगाई गई थी चुनाव के लिए
रामचंद्र गुहा ने किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखा है कि पहले आम चुनाव के लिए पूरे देश में कुल 2 लाख 24 हजार मतदान केंद्र बने थे। लोहे की 20 लाख मतपेटियां बनी थीं। इनमें 8200 टन लोहे का इस्तेमाल किया गया था। 16500 लोगों को केवल मतदाता सूची बनाने के लिए छह महीने के अनुबंध पर नियुक्त किया गया था। करीब 56000 लोगों को चुनाव के लिए पीठासीन अधिकारी बनाया गया था। साथ ही 2 लाख 28 हजार चुनाव सहायक और 2 लाख 24 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। मतदान का तरीका समझाने के लिए नकली चुनाव तक कराए गए थे।
मतपेटियां पहुंचाने के लिए बनाए पुल, नौसेना के जहाज का इस्तेमाल
उस चुनाव में पहाड़ी दुर्गम इलाकों में मतपेटियां पहुंचाने के लिए विशेष रूप से पुल बनाए गए थे। द्वीपों तक मतदाता सूची नौसेना के जहाजों से पहुंचाई गई थी। लोगों के शिक्षित नहीं होने के कारण मतपत्र में मतदाताओं के नाम के आगे चुनाव चिह्न छापने की व्यवस्था की गई थी। चुनाव के लिए खासतौर से भारतीय वैज्ञानिकों ने ऐसी स्याही बनाई थी जो अंगुली पर लगने के बाद एक सप्ताह तक मिटती नहीं थी। देश भर के 3000 सिनेमाघरों में चुनाव और मतदाताओं के अधिकार बताने के लिए डॉक्यूमेंटरी भी दिखाई गई थी।
1952 :: Voting Begins In First Lok Sabha Election
Voter Is Looking For The Party Symbol of His Candidate at a Polling Station
( Photo Division ) pic.twitter.com/Z4CKbNYrGT
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हिमाचल प्रदेश में डाला गया था पहला वोट
आम चुनाव भले 1952 में पूरा हुआ था पर पहला वोट 25 अक्तूबर 1951 को ही हिमाचल प्रदेश की चीनी तहसील में डाला गया था। हालांकि, चीनी के मतदाताओं को इसका नतीजा जानने के लिए महीनों इंतज़ार करना पड़ा था, क्योंकि देश के दूसरे भागों में जनवरी-फरवरी 1952 में मतदान कराए जा सके थे। तब सबसे ज्यादा 80 प्रतिशत मतदान केरल के कोट्टायम चुनाव क्षेत्र में हुआ था। मध्य प्रदेश के शहडोल में सबसे कम 20 प्रतिशत वोट डाले गए थे। हालांकि, तब अशिक्षा के बावजूद लगभग 60 फीसदी वोट पड़े थे। सबसे खास बात तो यह थी कि कभी भारत सरकार के खिलाफ आजादी की मांग करने वाले हैदराबाद के निजाम ने सबसे पहले मतदान किया था।
कांग्रेस का चुनाव चिह्न था दो बैलों की जोड़ी, प्रचार में होता था इस्तेमाल
पहले आम चुनाव में कांग्रेस को चुनाव चिह्न मिला था दो बैलों की जोड़ी। ऐसे में प्रचार के लिए उम्मीदवार बैल लेकर जाते थे। भीड़ में बैल बिदक न जाएं, इससे बचने के लिए किसानों की ड्यूटी लगाई जाती थी। वहीं, तब संयुक्त पंजाब में विधानसभा चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के कई प्रत्याशियों ने बैलों व बैलगाड़ी से प्रचार किया था। बंगाल में बैलों की पीठ पर मतदान की अपील लिख दी जाती थी।
Picture from first Lok Sabha election in 1952 .. #MeraVoteCongressKo .. #Phase4 #VotingRound4 pic.twitter.com/1Z0DpdqDPE
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पंडित जवाहर लाल नेहरू का था जबरदस्त क्रेज
पहले चुनाव में पंडित जवाहर लाल नेहरू का इस कदर क्रेज था कि कहा जाता था कि अगर उनके नाम पर बिजली के खंभे को खड़ा कर दिया जाए तो वह भी चुनाव जीत जाएगा। यह चुनाव पंडित नेहरू ने इलाहाबाद ईस्ट और जौनपुर वेस्ट की संयुक्त सीट से जीता था। बाद में इसी सीट का नाम बदल कर फूलपुर कर दिया गया। नेहरू मंत्रिमंडल में रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद ने यूपी की रामपुर सीट से जीत दर्ज की थी।
तब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को कुल 16 सीटों पर जीत मिली थी। इनमें से 8 सीटें उसने मद्रास में जीती थीं। नेहरू मंत्रिमंडल से अलग होकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। जनसंघ ने 49 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से तीन सीटों पर जीत मिली थी। पार्टी के अध्यक्ष श्यामा प्रसाद मुखर्जी कलकत्ता दक्षिण पूर्व से जीत कर लोकसभा में पहुंचे थे। जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया की पार्टी सोशलिस्ट पार्टी ने 254 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से 12 सीटों पर ही जीत मिली थी। कांग्रेस को लोकसभा में 364 सीटें मिली थीं। उसे कुल 45 प्रतिशत वोट मिले थे।
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इन दिग्गजों को करना पड़ा था हार का सामना
इस चुनाव की खास बात यह थी कि राजस्थान में जयनारायण व्यास, बंबई (अब मुंबई) में मोरारजी देसाई और यहां तक कि बाबा साहेब डॉ। भीमराव आंबेडकर तक चुनाव हार गए थे। बाबा साहेब को तो उनके ही पीए ने हराया था। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू की पहली अंतरिम सरकार में कानून मंत्री रहे बाबा साहेब ने कांग्रेस से मतभेद के चलते 27 सितंबर 1951 को इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद शेड्यूल कास्ट्स फेडरेशन नाम से संगठन बनाया और इसी के टिकट पर पहला आम चुनाव लड़ा। उनकी पार्टी ने 35 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। इनमें से दो को ही जीत मिल सकी थी।
डॉक्टर आंबेडकर ने उत्तरी मुंबई सीट से चुनाव लड़ा पर उनके पीए रहे एनएस काजोलकर को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बना दिया। इस चुनाव में आंबेडकर को 1,23,576 वोट मिले, जबकि 1,37,950 वोट पाकर काजरोल्कर चुनाव जीत गए थे। इसके बाद 1954 में बंडारा लोकसभा के लिए हुए उप चुनाव हुआ था। इसमें भी डॉ। आबंडेकर खड़े हुए पर एक बार फिर कांग्रेस से उन्हें हार का समाना करना पड़ा था। पहला आम चुनाव किसान मजदूर प्रजा पार्टी के टिकट पर लड़े आचार्य कृपलानी भी फैजाबाद से हार गए थे। हालांकि, कुछ दिनों बाद वह भागलपुर से उप चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गए थे।