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संसद में हंगामे के बीच पक्ष-विपक्ष की दिखी एकता, सदन से आई लोकतंत्र की सबसे खूबसूरत तस्वीर

– रश्मि शर्मा देश की सबसे बड़ी पंचायत में नए वित्त वर्ष का बजट पेश किए जाने के बाद सरकार और विपक्ष के बीच लगातार गतिरोध जारी है। हालांकि, पिछले 3 दिनों तक चले हंगामें के बाद मंगलवार को गतिरोध टूटा और सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा हुई, इससे पहले सदन में अडाणी […]

- रश्मि शर्मा देश की सबसे बड़ी पंचायत में नए वित्त वर्ष का बजट पेश किए जाने के बाद सरकार और विपक्ष के बीच लगातार गतिरोध जारी है। हालांकि, पिछले 3 दिनों तक चले हंगामें के बाद मंगलवार को गतिरोध टूटा और सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा हुई, इससे पहले सदन में अडाणी के मुद्दे पर जमकर हंगामा होता रहा। हिंडनबर्ग रिपोर्ट और उसके बाद के घटनाक्रम को लेकर विपक्षी पार्टियां जांच की मांग करते हुए संसद का चलना नामुमकिन कर रखा था। अमेरिकी रिसर्च फर्म की रिपोर्ट और बाजार में उतार-चढ़ाव का माहौल, ऐसे में यह घटनाक्रम महत्वपूर्ण है और इसकी संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से जांच कराने के पीछे विपक्षी पार्टियों का तर्क है कि, मामले की जांच होने से दूध का दूध और पानी का पानी हो पाएगा, लेकिन क्या इस मसले पर सदन की कार्यवाही रोकना, बहिष्कार करना और सरकार को घेरना विपक्ष के लिए फायदेमंद है? इसमें दो राय नहीं कि संसद में अपनी बात रखना, संसद की गतिविधि न चलने देना या उसका बहिष्कार करना विपक्ष का लोकतांत्रिक हथियार है। जिसके जरिए विपक्ष लोगों को ये आश्वस्त कराने की कोशिश करता है कि, भले हीं वो संख्या में कम है लेकिन इसके बावजूद संसद के भीतर वो सरकार को घेरने से पीछे नहीं हटने वाला। हालांकि, लोकतंत्र में ये भी जरुरी है कि, विपक्ष अपने इन हथियारों का इस्तेमाल सही और जरुरी मुद्दे पर ही करें। अगर विपक्ष हर मुद्दे पर इस तरह सदन की कार्यवाही रोके तो विभिन्न महत्वपूर्ण मसलों पर पक्ष और विपक्ष के बीच स्वस्थ चर्चा मुमकिन नहीं होगा। ऐसे में उम्मीद की जाती है कि, विपक्ष अपने विरोध का हथियार तो आजमाए लेकिन इन विरोधों के बीच इतनी जगह रहे कि, सद के इस मंच का सदुपयोग भी हो और चर्चा भी चलती रहे। देश की आजादी के बाद से विपक्ष में चाहे कोई भी पार्टी रही हो, उसने संसद को जनहित के मुद्दे उठाने का सबसे बड़ा मंच माना है और जनता के मुद्दे इसी मंच के जरिए उठाए हैं, लेकिन यह भी नहीं कहा जा सकता कि, कभी ये संतुलन बिगड़ा हो। इससे पहले कई मौके पर संसद के भीतर जमकर हंगामें हुए हैं और पूरा का पूरा सत्र विरोध, हंगामे और बॉयकॉट की भेंट चढ़ चुका है। पिछले 4 दिनों तक संसद में जो विरोध का माहौल बना था उसे देखकर तो ऐसा लगने लगा था कि, इस बार भी कामकाज औपचारिकताओं तक न रह जाए। हालांकि, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद में चर्चा शांतिपूर्ण ढंग से होना यह बताता है कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें न सिर्फ मजबूत है, बल्कि सबसे ज्यादा ठोस भी है। सदन में लगभग पूरा विपक्ष JPC की मांग करते हुए बहस में शामिल न होने की अपनी मांग पर अड़ा हुआ था। मंगलवार को सदन में कामकाज चला। दोनों पक्षों की तरफ से सांसदों ने भाषण भी दिए, जहां राहुल गांधी ने PM मोदी पर सीधा हमला बोला तो बुधवार को पीएम मोदी ने आरोपों पर जवाब दिया। इस दौरान भी न सदन में ज्यादा शोरगुल, हंगामा हुआ और न ही कामकाज स्थगित हुई। भले हीं कई मुद्दों पर पक्ष और विपक्ष के बीच मतभेद, असहमति और विरोध हो लेकिन सदन के भीतर पक्ष-विपक्ष की यह परिपक्वता भारतीय लोकतंत्र को मजबूती बनाती है। देश इसी एकजुटता और समन्वय की सोच से आगे बढ़ता है।


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