भारत का ‘ज्ञान पथ’: नए भारत की नई शिक्षा नीति ज्यादा लीडर पैदा करेगी या लेबर?
Bharat ka Gyan Path
Bharat ka Gyan Path: कहा जाता है कि शिक्षा का मकसद है, एक खाली दिमाग को खुले दिमाग में बदलना। शिक्षा ही वो साधन है, जो किसी भी इंसान को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाती है। यही वजह है कि स्कूल-कॉलेज और गुरु को भारत में बहुत सम्मान के साथ देखा जाता रहा है। गुरु के स्वागत के लिए राजसिंहासन पर बैठा राजा रूपी शिष्य भी नंगे पांव दौड़ता था। उसे ताउम्र इस बात का एहसास रहता था कि वो जो कुछ भी है, उसमें गुरु और गुरुकुल दोनों का बड़ा योगदान है। लेकिन, पिछले कई दशकों में भारत में शिक्षा का जो तौर-तरीका चलता आ रहा था, उसमें स्कूल-कॉलेज में दी जाने वाली शिक्षा और व्यावहारिक जिंदगी की चुनौतियों में बहुत अंतर बढ़ चुका था। इस अंतर को पाटने के लिए 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाई गई। जिसे देश के कई राज्यों में लागू किया जा रहा है और इसी मुद्दे पर देश की राजधानी में शिक्षा समागम चल रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने शिक्षा समागम में साफ-साफ कह दिया कि मातृभाषा में शिक्षा से युवाओं में वास्तविक न्याय की शुरुआत हो रही है। प्रतिभा को भाषा के आधार पर मांपना सबसे बड़ा अन्याय है। मोदी ने कहा कि नई शिक्षा नीति का मकसद है- समान शिक्षा और समान अवसर, यानी एक अरब चालीस करोड़ की आबादी वाले भारत की तरक्की का मंत्र पढ़ाई-लिखाई के तौर-तरीकों में बदलाव से हासिल किया जा सकता है? ऐसे में आज मैं आपको बताने की कोशिश करूंगी कि नई शिक्षा नीति भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में किस तरह से मददगार साबित हो सकती है? राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने किस तरह युवाओं के लिए संभावनाओं के नए-नए खिड़की-दरवाजे खुले हैं? किस तरह युवा से बुर्जुगों तक के लिए देश की टॉप यूनिवर्सिटीज से जुड़ने का रास्ता बना है? किस तरह से हर उम्र में कुछ नया सीखने और खुद को अपग्रेड करने का मौका मिला है? ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे- अपने खास कार्यक्रम भारत का ‘ज्ञान पथ’ में...
नई शिक्षा नीति के तीन साल पूरे
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (National Education Policy) के तीन साल पूरे हो चुके हैं। इस मौके पर राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में बने भारत मंडपम में पीएम मोदी ने अखिल भारतीय शिक्षा समागम का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा देश को बदलने की ताकत रखती है। पीएम मोदी ने कहा कि अगले 25 साल भारत के लिए बहुत अहम हैं, 2047 में भारत की आजादी के 100 साल पूरे होंगे। इस दौरान ऊर्जा से भरी एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण करना है, जो नए इनोवेशन करे। भारत का नाम रौशन करे। जिसमें कर्तव्य और जिम्मेदारी का बोध भरा हो।
मतलब, प्रधानमंत्री मोदी 2047 तक भारत को विकिसत देश बनाने के लिए शिक्षा को एक बड़े माध्यम के तौर पर देख रहे हैं। इसलिए, नई शिक्षा नीति में प्राचीनता और आधुनिकता का बेजोड़ संगम कराने की कोशिश की गई है। मातृभाषा में ऊंची पढ़ाई के रास्ते खोलकर शिक्षा में समानता का नया हाईवे तैयार करने की कोशिश हुई है।
रटंत विद्या ने पैदा किए बेरोजगार
अब ये समझना जरूरी है कि नई शिक्षा नीति से हमारे देश में स्कूल से कॉलेज तक पढ़ाई-लिखाई का तौर-तरीका किस तरह से बदला है। अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही रटंत विद्या को क्यों आउटडेटेड माना गया। किस तरह रटंत विद्या ने देश के भीतर बड़ी तादाद में स्कूल-कॉलेजों की छवि बेरोजगार पैदा करने वाले कारखाने की बना दी। आप खुद सोचिए कि गूगल, चैट जीपीटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में इतिहास के घिसे-पिटे तथ्यों को रटने की जरूरत क्यों है? अकबर और राणा प्रताप के बीच हल्दीघाटी में कब लड़ाई हुई थी, किसने किसे हराया? युद्ध के दौरान किसकी सेना के कितने सिपाही मारे गए। ऐसी कोई भी जानकारी पलक झपकते ही इंटरनेट की ताकत से लैस स्मार्टफोन की मदद से निकाली जा सकती हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि फिर ऐसी पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर अपना टाइम और पैसा दोनों क्यों बर्बाद करना? लेकिन, एक सच ये भी है कि इतिहास को सही दृष्टिकोण में छात्रों के सामने रखने की जिम्मेदारी नई शिक्षा नीति और शिक्षाविदों पर है। ऐसे में पारंपरिक विषयों में गहरी दिलचस्पी रखने वाले छात्रों के भीतर हमेशा प्रश्न करने, तथ्यों की गहराई से पड़ताल और इतिहास को निष्पक्ष तरीके से देखने का हुनर विकसित करना भी नई शिक्षा नीति का मकसद होना चाहिए। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि पारंपरिक विषयों की पढ़ाई से हासिल डिग्री की बदौलत नौकरियों के कितने मौके जॉब मार्केट में मौजूद हैं, ऐसे में नई शिक्षा नीति के जरिए स्कूल से कॉलेज तक पढ़ाई के तौर-तरीकों में इस तरह बदलाव किया गया है। जिससे छात्रों को व्यवहारिक जिंदगी की चुनौतियों से निपटने में आसानी हो। छात्रों का क्लासरूम में थ्योरी और प्रोजेक्ट के रूप में प्रैक्टिकल से रू-ब-रू कराने का रास्ता खोला गया है?
क्यों जरूरी है नई शिक्षा नीति?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के पक्ष में दलील दी जा रही है कि ये भविष्य के लिए देश की युवा पीढ़ी को इस तरह से तैयार करेगी, जिससे भारत को 10 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनने में देर नहीं लगेगी। ये सौ फीसदी सच है कि वक्त के साथ स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के तौर-तरीकों में बदलाव आते रहना चाहिए। पहले कोई भी शिक्षा नीति 20-25 साल आगे की सोच के साथ बनाई जाती है। लेकिन, जिस रफ्तार से अब दुनिया में बदलाव हो रहा है, उसमें स्कूल-कॉलेज की एक ही पढ़ाई के साथ रिटायरमेंट तक पहुंचना आसान नहीं होगा। ऐसे में किसी को भी 30-35 साल नौकरी में बने रहने के लिए हर तीन-चार साल के अंतर पर कुछ-न-कुछ नई स्किल्स सीखनी होगी। ऑफलाइन या ऑनलाइन, फुल टाइम या पार्ट टाइम कोर्स करना होगा। ऐसे में सभी उम्र के लोगों को ताउम्र स्टूडेंट बनने का रास्ता राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के जरिए बनाया गया है।
ज्ञान हासिल करने के लिए भारत अब जिस रास्ते आगे बढ़ रहा है। इसमें किसी भी छात्र के सामने अपनी क्षमता के हिसाब से लेबर या लीडर दोनों बनने का पूरा मौका है। छात्रों के भीतर Entrepreneur Skills विकसित करने की भी तैयारी है। जिससे देश के होनहार Job Seeker की जगह Job creator बनें। इतना ही नहीं परिस्थितियों के हिसाब से पढ़ाई बीच में छोड़ने और बाद में अपनी सहूलियत के हिसाब से दोबारा शुरू करने का भी रास्ता निकाला गया है। जिस तरह बैंक अकाउंट में पैसा जमा होता है, उसी तरह से Academic Bank of Credit में हर छात्र के पास स्कोर बढ़ाने और अपना बायोडाटा मजबूत करने का मौका है।
अब मेरे मन में सवाल उठ रहा है कि जिस तरह से National Education Policy की गुलाबी तस्वीर पेश की जा रही है-क्या उसके लिए हमारे देश में इतने स्कूल-कॉलेज हैं? क्या देश में इतने काबिल टीचर और प्रोफेसर हैं? अगर सरकारी स्कूल और कॉलेजों की स्थिति बेहतर है तो फिर इतनी संख्या में प्राइवेट स्कूल-कॉलेज और यूनिवर्सिटी क्यों खुल रहे हैं? लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने से क्यों कतराते हैं?
आजादी में सरकार शिक्षा का अहम योगदान
आजादी के बाद भारत को आगे बढ़ाने में सरकारी शिक्षा का बड़ा योगदान रहा है। मूल रूप से बिहार से ताल्लुक रखने वाले एक बहुत ही सीनियर ब्यूरोक्रेट, जिन्हें रिटायर हुए करीब 20-25 साल हो चुके हैं। उन्होंने एक बार बताया था कि जब भी उनके दादाजी पटना आते और पटना कॉलेज के सामने से गुजरते तो कॉलेज के मेन गेट पर उसी तरह दंडवत होते, जैसे किसी मंदिर में कोई भक्त होता है। वहां मिट्टी अपने माथे पर लगाते और उसके बाद ही आगे बढ़ते। दरअसल, उनके भीतर ये सोच आकार ले चुकी थी कि मेरा और मेरे परिवार के कल्याण का रास्ता इसी शिक्षा संस्थान की वजह से खुला है।
इसी तरह की सोच यहां की IITs, IIM और मेडिकल कॉलेजों से पासआउट छात्रों के परिवारों की भी रहती थी। जहां नाम मात्र की फीस और World Class पढ़ाई की व्यवस्था है। लेकिन, बदले हालात में प्राइवेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेशनल कोर्स की फीस इतनी ज्यादा है, जिसे भरने में किसी सामान्य मिडिल क्लास परिवार का दम फूल जाता है। New Education Policy 2020 का सबसे खूबसूरत पहलू ये है कि इसमें खामोशी से कबूल किया गया है कि देश एक बड़ी युवा आबादी Unskilled है। Job Market में उसकी डिग्री की वैल्यू न के बराबर है। ये समझा गया है कि बेरोजगारी एक खतरनाक टाइम बम की तरह है। क्योंकि, देश के लगभग एक-तिहाई युवा न कोई काम कर रहे हैं, न पढ़ाई कर रहे हैं और न ही कोई ट्रेनिंग ले रहे हैं।
ऐसे में बगैर आरोप-प्रत्यारोप के भारत में एक ऐसा ज्ञान पथ तैयार किया गया है, जिसमें हर उम्र के लोगों को New Skill सीखने और नए जमाने के हिसाब से कोर्स चुनने का मौका दिया गया है। इससे एक बात तय है कि आने वाले दिनों में डिग्रियां जमा करने की नई रेस शुरू होगी। Higher Education के लिए सरकार को बड़े पैमाने पर नए कॉलेज और यूनिवर्सिटी खोलने पड़ेंगे। ऐसे रास्ते निकालने पड़ेंगे, जिससे अपनी पसंद के मुताबिक छात्र Online या Distance courses में एडमिशन ले सकें । इतना ही नहीं, Google और Chat GPT के दौर में इस बात पर खासतौर से ध्यान देगा होगा कि नए दौर के क्लास रूम Dynamic होने चाहिए। शिक्षकों की सोच भी वक्त से 20-25 साल आगे की होनी चाहिए।
स्क्रिप्ट और रिसर्च : विजय शंकर
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