Digi Kerala: वर्तमान में आधुनिकता इतनी तेज से दौड़ रही है कि हर दिन नई टेक्नोलॉजी आ जाती है। इससे पीढ़ियों के बीच गैप बढ़ता रहता है। स्मार्टफोन आने से युवा और बुर्जुगों के बीच काफी खाई जैसी बन गई थी। बुजुर्गों के पास बैठने वाले युवा अब स्मार्टफोन के आदी हो गए और बुजुर्ग अकेले पड़ गए। लेकिन भारत के सबसे साक्षर राज्य केरल में यह खाई पट गई है। सरकार के मिशन डिजी केरल ने बुजुर्गों को स्मार्टफोन सिखाया। इसमें 100 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग भी शामिल हैं। यह सुनने में असंभव लग सकता है लेकिन सच है।
105 के मौलवी बफाकी बने यूट्यूब के दिवाने
केरल के पेरुंबवूर ओडक्कली में रहने वाले अब्दुल्ला मौलानी बफाकी की उम्र 105 है। कुछ समय पर बफाकी के पास किपैड फोन था। उसमें कॉल करने के अलावा कोई काम नहीं करते थे। डिजी केरल के वालंटियर ने उन्हें स्मार्टफोन चलाना सिखाया तो वह उसमें माहिर हो गए। अब बफाकी को यूट्यूब पर समय बीतना सबसे ज्यादा पसंद है।
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103 साल के पणिक्कर व्हाट्सअप ग्रुप पर एक्टिव
तिरुवनंतपुरम के पुल्लमपारा गांव में 103 साल के करुणाकर पणिक्कर और उनके बेटे 74 साल के बेटे राजन के साथ स्मार्टफोन का प्रयोग करते हैं। पहले दोनों टच स्क्रीन को छूने में भी हिचकिचाते थे। अब दोनों स्मार्टफोन पर ही समाचार देखते हैं, व्हाट्सअप ग्रुप पर एक्टिव रहते हैं।
73 साल में बनाया खुद का चैनल
तिरुवनंतपुरम के पुल्लमपारा में 73 साल की सी सरसु ने डिजिटल दुनिया में अपना दम दिखाया है। उन्होंने खुद का यूट्यूब चैनल ‘सरसुज वर्ल्ड’ बनाया है। वहीं 64 साल की पद्मिनी ने कहा कि पहले, वह अपनी बेटी को हमेशा फोन पर रहने के लिए डांटती थी। अब वह मुझे भी ऐसा करने के लिए चिढ़ाती है।
क्या है ‘डिजी केरल’ मिशन?
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) के तहत एलएसजी विभाग ने ‘डिजी केरल’ कार्यक्रम के तहत 21.87 लाख केरलवासियों में स्मार्टफोन चलाने की ट्रैनिंग दी है। इस मिशन की शुरुआत तिरुवनंतपुरम के पुल्लमपारा से हुई थी। इसमें कॉल करने, व्हाट्सएप मैसेजिंग और ऑनलाइन बैंकिंग जैसे जरूरत कौशल से लेकर ई-गवर्नेंस पोर्टल का उपयोग करने तक सिखाया गया।
18 महीनों में केरल ने 21.88 लाख से ज्यादा डिजिटल रूप से निरक्षर नागरिकों को ट्रैनिंग दी गई। 15,000 से ज्यादा की संख्या 90 साल से ऊपर के लोगों की है। ऐसा करने वाला केरल पहला राज्य है। राज्य सरकार इसकी औपचारिक घोषणा 21 अगस्त को करेगी।
कहां से हुआ इस विचार का जन्म?
इसकी कहानी साल 2022 में तिरुवनंतपुरम के पास ग्राम पंचायत पुल्लमपारा में शुरू हुई। उस दौरान कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन लगा था। उस समय वहां जिला महिला कल्याण अधिकारी सजीना साथर तैनात थीं। कोरोना के दौरान में भी कुछ महिलाएं अपनी जान खतरे में डालकर बैंक में केवल अपना बैलेंस देखने गई थीं।
तभी सजीना साथर के दिमाग में इस योजना का जन्म हुआ। उन्होंने सोचा कि अगर ये महिलाएं घर बैठकर ही मोबाइल में बैलेंस देख लें तो उनकी जिंदगी आसान हो जाएगी। बस फिर सजीना ने एक बुनियादी डिजिटल साक्षरता रिपोर्ट तैयार की। अब सजीना ग्रामीण विकास विभाग में सहायक निदेशक के पद पर तैनात हैं।