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‘लगा उनका भी वही हाल हुआ जो…’, 5 साल की उम्र में सुनील दत्त ने झेला था बंटवारे का दर्द, बिछड़ गया था पूरा परिवार

Sunil Dutt Recalls Partition Days: सुनील दत्त आज भले ही दुनिया में ना हों लेकिन, वह आज भी याद किए जाते हैं. उनका एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने बंटवारे के समय का दर्द बयां किया था.

बंटवारे में परिवार से बिछड़ गए थे सुनील दत्त. (Photo- Fan page)

अमिताभ बच्चन ने अपने बेटे से कहा था कि अगर चलना सीखना है तो दत्त साहब की तरह चाल चलना सीखो वो एक पैंथर की तरह चलते हैं. बिग बी ने ये बात किसी और के लिए नहीं बल्कि सुनील दत्त के लिए कही थी. वह जब भी स्क्रीन पर आते थे तो अलग ही माहौल होता था. वह इंडस्ट्री के दिग्गज कलाकारों में से थे. आज वो भले ही इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन, उन्हें अभिनय और फिल्मों के लिए हमेशा याद किया जाता है. वह केवल एक्टिंग ही नहीं बल्कि राजनीति की दुनिया में काफी एक्टिव थे. हर कोई उनकी अदायगी और पर्सनैलिटी का कायल था. इसके अलावा वह अपनी जिंदगी में परिवार को लेकर भी काफी सुर्खियों में रहे थे. ऐसे में आज आपको बंटवारे से जुड़ा किस्सा बता रहे हैं, जब वह अपने परिवार से बिछड़ गए थे.

दरअसल, सुनील दत्त का जन्म पाकिस्तान के खुर्द में हुआ था. उनका असली नाम बलराज दत्त था. विभाजन के बाद वह इंडिया आ गए थे. उन्होंने दूरदर्शन को दिए इंटरव्यू में बंटवारे के दर्द का जिक्र किया था. उन्होंने 5 साल की उम्र में बंटवारे का दर्द सहा था. सोशल मीडिया पर उनके इसी इंटरव्यू की एक वीडियो क्लिप वायरल हो रही है, जिसमें वह बताते हैं कि परिवार से बिछड़ने के बाद लगा कि उनका भी वही हाल हुआ, जो और लोगों का हुआ था.

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बंटवारे में परिवार से हो गए थे अलग

वायरल क्लिप में सुनील दत्त को बंटवारे पर बात करते हुए देखा जा सकता है. इसमें वह कहते हैं, 'बंटवारे के समय मैं परिवार से बिछड़ गया था. अलग-अलग कैंपों में उन्हें खोजता रहा. मैं अपनी मां को, छोटे भाई को, छोटी बहन…मैंने उन्हें लेकर यही सोचा कि उनका भी वही हाल हुआ होगा, जो बाकी लोगों का हुआ था. जब मैं अंबाला में था तो एक तांगा मेरे पास से गुजरा.उसमें से एक आवाज आई ओ बलराज. मैं सोच में पड़ गया कि मुझे यहां बलराज के नाम से कौन जानता है.'

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यूं मिला था सुनील दत्त का परिवार

सुनील दत्त आगे बताते हैं, 'उसमें मेरा एक रिश्तेदार था, जो तांगे में जा रहा था तो उसने मुझे तांगे पर बैठा लिया.मुझे उससे पूछने में डर भी लगे कि मेरी मां, भाई-बहन को देखा है कहीं? उसने मुझसे कुछ कहा नहीं. फिर मैंने उससे पूछा कि तुम कैसे आ गए वहां से? कहता है कि हम तो ऐसे ही आ गए, मेरा जो अंकल है वो एसपी बन गया है यहां अंबाला में तो चलो उनकी कोठी में चलते हैं. उनका बालि साहब नाम था. हम उनकी कोठी में गए, तो जब मैं तांगे से उतरा मैंने सामने देखा कि मेरी मां खड़ी है. वो मैले कुचैले कपड़े में थी. मेरा भाई शॉर्ट्स में खड़ा था. मेरी बहन थी. उस समय उन्हें देखकर मुझे ऐसा लगा कि जैसे मुझे दुनिया जहान मिल गया है. ये मेरे लिए वो खुशी का दिन था कि जब सभी उम्मीदें टूट चुकी थीं तो मेरे सामने मेरी मां आ गईं. यही मेरे लिए मेरी खुशी का बहुत बड़ा दिन था.'

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