अश्विनी कुमार: सिनेमा एक जादू है, एक ऐसा जादू जिसे प्यार की कहानियां, जिंदगी की सच्चाईयां, उम्मीदों की कहानियों को दिखाने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। थिएटर के अंदर घुप्प अंधेरे में घंटों तक ये अपना ही संसार रचती है, जिसे साथ लेकर आप जब बाहर निकलते हैं।
कभी खुश होते हैं, तो कभी जोश से भरे होते हैं, तो कभी-कभी आंखों में आंसू लेकर निकलते हैं। लेकिन, द करेला स्टोरी देखकर जब आप बाहर निकलेंगे, तो दिलो दिमाग में क्या छाप छोड़ती है? नजरिया क्या होता है? ये सवाल सबसे अहम हैं।
तीन लड़कियों की सच्ची कहानी पर आधारित है- द करेला स्टोरी
इस फिल्म की कहानी केरला की तीन लड़कियों की सच्ची कहानी के इर्द-गिर्द बुनी गई है। लव जिहाद से लेकर आतंकवादी बनने तक की कहानी को ऐसे दर्शाया गया है कि उन लड़कियों का दर्द समझने की जगह आप सहम और नफरत से सिर से पांव तक भर जाते हैं। इसका अंजाम क्या होगा, आने वाला वक्त ही बताएगा।
यहां ये जिक्र करना जरूरी है कि केरला फाइल में जो कुछ दिखाया गया है, वो असली घटना पर आधारित है। लेकिन ये सिर्फ केरल में ही नहीं, देश और दुनिया में बहुत सारी जगहों पर हो भी रहा है, जिससे सावधान रहने की ज़रूरत है। समझ बढ़ाने की जरूरत है, जिससे बच्चे ऐसी राह पर ना बढ़ें। लेकन सवाल यह उठता है कि इसे बताने और समझाने का क्या ये तरीका सही है। इससे समाज में क्या संदेश जायेगा? यह सोचने वाली बात है।
एक नज़र कहानी पर
ये कहानी वैसे तो केरला की चार लड़कियों की है- शालिनी उन्नीकृष्णन, गीतांजली, निमाह और आसिफा। जो नार्थ केरला के एक नर्सिंग कॉलेज में जाती हैं। दो हिंदू, एक क्रिश्चियन और 1 मुस्लिम लड़की, जो आपस में रूम पार्टनर हैं। वो घुलती-मिलती हैं और फिर जब कॉलेज पहुंचती हैं, तो वहां की दीवारों पर कश्मीर की आजादी के नारे लिखे हैं।
ओसामा बिन लादेन की तस्वीर हीरो बनाकर दिखाई गई है। इन लड़कियों को पहले ही दिन से ओरिंएटेशन क्लास के साथ-साथ टारगेट कर लिया जाता है। आसिफा, जिसे आईएसआईएस के लिए दूसरे धर्मों की लड़कियों को बहकाने, उन्हें मुस्लिम लड़कों के प्यार में फंसाने और फिर धर्म परिवर्तन कराने से लेकर सीरिया भेजने तक की साजिश में शामिल हुआ दिखाया जाता है। वो शालिनी, गीतांजली और निमाह को इस्लाम, अल्लाह, हिजाब के बारे में ऐसी-ऐसी बातें-बातें बताती है कि अगर वो हिजाब पहने तो सेफ रहेगी, अल्लाह से ताकतवर कोई नहीं और इस्लाम से बेहतर कोई मजहब नहीं।
साथ ही आसिफा उन्हें भगवान शिव, भगवान राम, जीसस क्राइस्ट के खिलाफ भड़काती है और फिर शुरू होता है झूठे प्यार का सिलसिला। हिंदू लड़कियों के साथ आईएसाईएस के इशारे पर, मौलानाओं की साजिश पर, मुस्लिम लड़कों का वो धोखे का खेल, जिसमें शालिनी और गीतांजली तो फंस जाती है, मगर क्रिश्चियन लड़की निमाह उससे बच निकलती है और अंजाम उसका भी बुरा होता है। उसके साथ ड्रग्स मिलाकर कई लड़के जबरदस्ती करते हैं।
गीतांजली, जब सीरिया जाकर आईएसआईएस ज्वाइन करने से मना करती है, तो उसकी न्यूड तस्वीरें वायरल कर दी जाती है और शालिनी, जो प्रेग्नेंट होती है, उसे एक दूसरे मुसलमान शख़्स से शादी करके श्रीलंका के रास्ते अफगानिस्तान भेजा जाता है, ताकि उसे सीरिया ले जा सके। जहां दुनिया की दूसरे मजहब की तमाम लड़कियों को धोखे से सिर्फ इसलिए बुलाया जाता है ताकि उनका रेप किया जा सके या सुसाइड बॉम्बर बनाया जा सके।
इस फिल्म के क्लाइमेक्स में डायरेक्टर सुदीप्तो सेन और फिल्म के प्रोड्यसूर-क्रिएटिव डायरेक्टर विपुल शाह- कुछ फैक्ट्स पेश करते हैं, कुछ बाइट्स दिखाते हैं, जिससे वो साबित कर सकें कि ये कहानी सच्ची है और इसे कोई भी नकार नहीं रहा कि इन लड़कियों के साथ जो हुआ, वो सच नहीं है।
हजारों लड़कियां लव जेहाद का शिकार हो रही है, ना सिर्फ केरला में, बल्कि यूपी में, गुजरात में, देश के दूसरे बहुत से राज्यों में। दुनिया के तकरीबन हर देश में उन्हें धोखा मिलता है, उनके परिवार टूटते हैं, उनमें से कुछ केस के तार आईएसआईएस से जुड़ते हैं और कुछ 20-22 केस के तार, अफगानिस्तान और सीरिया तक जुड़े हैं।
यकीनन, द केरला फाइल में सच दिखाया गया, लेकिन इसके साथ नफरत को भी परोसा गया है। जब फिल्म के डायरेक्टर अपने एक किरदार की जुबान से कहलवा देते हैं कि ‘पूरा केरल बारूद के ढेर पर बैठा है’, जब आप हिंदू देवी-देवताओं और ईसामसीह के बारे में फिल्म की मुस्लिम कैरेक्टर से ऐसी भड़काऊ कहानियां सुनाते हैं, जिसे नफरत फैले।
जब आप आंख बंद करके अपनी मुस्लिम दोस्त की हर नाजायज बात पर सिर हिलाती शालिनी और गीतांजली को देखते हैं और ये मान बैठते हैं कि हर हिंदू लड़की इतनी ही बेवकूफी से अपना धर्म छोड़ देगी और अगर वो नहीं करेगी तो मुस्लिम लड़के उसका हाल उसकी क्रिश्चियन दोस्त या गीतांजली जैसा करेंगे। ये डर आपके दिमाग में बैठ जाता है।
अब सवाल यह उठता है कि फिल्म कैसी बनी है? इस पर यही कह सकते हैं कि केरला स्टोरी की कहानी में खोट नहीं है। लेकिन सवाल यह बनता है कि ये फिल्म क्यों बनाई गई है? इसके पीछे का मकसद क्या है ? यह फिल्म समाज का आईना है या आईना दिखाती है।
कई ऐसे सवाल हैं, जिनके चलते इसके किरदारों ने कितना अच्छा काम किया, इसका बैकग्राउंड स्कोर कितना अच्छा है और इसके सीन कितना असर आप पर छोड़ते हैं, इन सारे सवालों-जवाबों को पीछे छोड़ दिया है। क्योंकि फिल्म देखने के बाद आप सुन्न हो जाते हैं, सहम जाते हैं और नफरत से भर जाते हैं।
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