Maa Review: (अश्विनी कुमार) शैतान की दुनिया से ‘मां’ का क्या कनेक्शन है? जब से काजोल की फिल्म ‘मां’ का टीजर और ट्रेलर रिलीज हुआ है और आर. माधवन ने ट्रेलर लॉन्च पर स्पेशली फिल्म को प्रमोट किया है, तब से ‘शैतान’ और ‘मां’ के बीच के कनेक्शन वाली पहेली सुलझाने की कोशिश हो रही है। मगर, जवाब अब मिला है कि दोनों फिल्मों में इसके अलावा कोई कनेक्शन नहीं है कि दोनों फिल्मों का शैतान बच्चों को अपना शिकार बनाता है। ‘शैतान’ और ‘मां’ की कहानी अलग-अलग यूनिवर्स की कहानियां है। काजोल स्टारर फिल्म ‘मां’ को इंडिया के पहले माइथो हॉरर की तरह प्रेजेंट किया, प्रमोट किया गया है लेकिन असल में ‘मां’ माइथो हॉरर नहीं, माइथोलॉजिकल थ्रिलर है। ट्रेलर में आपने जो हॉरर वाला सीक्वेंस देखा है, वो 2 घंटे 15 मिनट की कहानी में हॉरर के सबसे बेहतरीन सीन्स का कोलॉज है। इसके अलावा फिल्म में सरप्राइज तो बहुत हैं। माइथोलॉजी बहुत है। स्पेशल इफेक्ट तो बहुत ज्यादा हैं। कहानी में दादी-नानी और धर्म से जुड़ा कनेक्शन बहुत है लेकिन हॉरर, डर, कंपकंपी वाला वो इफेक्ट नहीं है, जो शैतान में था।
‘मां’ की कहानी
‘मां’ की कहानी शुभांकर और अंबिका की बेटी श्वेता की जिद से शुरू होती है, जो समर वेकेशन के दौरान अपने पापा के गांव चंद्रपुर जाना चाहती है लेकिन शुभांकर और अंबिका उससे चंद्रपुर का कोई राज छिपा रहे हैं। ये राज, मां काली के रक्तबीज को मारने की उस कहानी से जुड़ा है, जिसका खून चंद्रपुर की धरती पर एक शैतान को छिपाए बैठा है। ये शैतान गांव की हर उस लड़की को अपना शिकार बना रहा है, जिनके पीरियड्स बस शुरू ही हुए हैं। शुभांकर की मौत के बाद मजबूरी में चंद्रपुर पहुंची श्वेता को जब रक्तबीज अपना शिकार बनाकर पूरी दुनिया में फिर से अपना कहर फैलाना चाहता है, तो उसकी मां अंबिका इस शैतान से टकरा जाती है।
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कमजोर दिखा स्क्रीनप्ले
मां की सबसे बड़ी खूबी है इसका माइथोलॉजिकल कनेक्शन, सायवन क्वाद्रोस की कहानी जिन्होंने फिक्शन और माइथोलॉजी को इस कहानी में ऐसे पिरोया है कि आपको एहसास होगा कि बचपन में दादी-नानी से सुनी कहानी आपकी आंखों के सामने जिंदा हो गई है। जिस राक्षस की रक्त की हर एक बूंद से एक नया राक्षस जन्म ले, उसे सत्प मातृका ने कैसे मिलकर हराया और उसके आगे की कहानी को चंदनपुर के इतिहास और बलियों की परंपरा से जोड़ना अपने आप में स्पिरिचुअल फिक्शन का वो फॉर्मेट है, जिसे हम अमीष की कहानियों या साउथ की फिल्म ‘हनु-मैन’ और ‘कार्तिकेय’ में देखकर तालियां बजा चुके हैं। आमिल कियान खान और अजीत जगताप के डायलॉग भी असर करते हैं लेकिन मुश्किल स्क्रीनप्ले में है। अच्छे कॉन्सेप्ट को स्क्रीनप्ले में ढालते वक्त कहानी को सेट करने में जितना टाइम लिया गया है, वो खिंचा चला जाता है और इस बीच में डायरेक्टर विशाल फुरिया ने उतने सरप्राइज या हॉरर मोमेंट्स क्रिएट नहीं किए हैं, जितने ‘मां’ के ट्रेलर के बाद के एक्सपेक्टेशन को मैच कर सकें। कहानी सेकेंड हॉफ में जाकर उठती है] जहां मां काली की पूजा के बाद पूरा माहौल तैयार होता है।
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VFX का दिखा असर
इस बीच में आप ‘मां’ का कंपैरिजन ‘मुंज्या’ से करते रहते हैं, क्योंकि पेड़ों में छिपे शैतान का कॉन्सेप्ट, लुक और फील यहां तक मैच करता है। हां, VFX के मामले में ‘मां’, मुंज्या पर भारी पड़ती है लेकिन सेकेंड हॉफ में क्लाइमेक्स के करीब पहुंचकर, जब शैतान और मां के बीच टक्कर शुरू होती है तो वहां राइटर, डायरेक्टर, VFX सब अपने शबाब पर होते हैं। मां काली के अंश के साथ काजोल का लुक और उनकी परफॉरमेंस देखकर आप सीट से बंधे रह जाते हैं। तकरीबन 15 मिनट के इस क्लाइमेक्स में आपको एहसास होता है कि मां का असली अवतार तो यही है। रोंगटे खड़े देने वाले इस सीक्वेंस में आप समझ नहीं पाएंगे कि तालियां बजाएं या सीट से चिपके रहें। मां के क्लाइमेक्स के इस हिस्से के लिए आप प्रोड्यूसर से थोड़ी देर के लिए डायरेक्शन की चेयर पर आएं, अजय देवगन तारीफ के हकदार हैं। NY-VFXWAALA, जो अजय देवगन की ही VFX कंपनी है, उसने भी स्पेशल इफेक्ट्स के लिए कमाल का काम किया है।
क्लाइमेक्स ने छोड़ी छाप
चंद्रपुर की हवेली और जंगल के सीक्वेंस को जिस खूबी के साथ शूट किया गया है, वो पुष्कर सिंह की सिनेमैटोग्राफी का कमाल है। हालांकि संदीप फ्रांसिस की एडिटिंग थोड़ी और शार्प होती तो फिल्म के फर्स्ट हॉफ का ढीलापन कंट्रोल किया जा सकता था। अमर मोहिले का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है, लेकिन मनोज मुंतशिर के गाने कुछ खास असर नहीं छोड़ते और थियेटर से बाहर निकलने के बाद याद भी नहीं रहते। याद रहता है, तो बस फिल्म का शानदार क्लाइमेक्स। हालांकि क्लाइमेक्स में आर. माधवन वाले शैतान की एक झलक जरूर दिखाई जाती है, लेकिन इसका मां की कहानी से कुछ लेना-देना नहीं है, बल्कि शैतान यूनिवर्स को आगे बढ़ाने का ये इंडीकेशन भर है।
तारीफ के काबिल काजोल
परफ़ॉरमेंस के तौर पर ‘मां’ में सिर्फ मां ही हीरो है। काजोल के एक्सप्रेशन्स, उनकी स्क्रीन प्रेजेंस देखकर समझ आता है कि क्यों उन्हे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे दिग्गज एक्ट्रेसेज में गिना जाता है। इसके साथ ही उनकी बेटी श्वेता बनी खेरिन शर्मा ने जबरदस्त इंप्रेस किया है। दिवेन्दु भट्टाचार्य का काम भी शानदार है लेकिन रोनित रॉय जाने क्यों इतने दमदार किरदार के बाद भी बहुत हल्के लगते हैं। उनका बंगाली एक्सेंट भी बनावटी नजर आता है। माइथो-थ्रिलर के तौर पर ‘मां’ की कहानी दिलचस्प है, जो कुछ हिस्सों में कमाल का असर करती है लेकिन हॉरर के मामले में, ये फिल्म ‘शैतान’ के मुकाबले खड़ी नहीं होती, जो आपको जरूर खटकेगा।