टीचर्स द्वारा लाल पेन का उपयोग करना कई दशकों से एक परंपरा रही है। जब कॉपी या परीक्षा पत्रों की जांच होती है, तो उत्तरों को ठीक करने, गलती दर्शाने या अंक देने के लिए लाल पेन सबसे ज्यादा उपयोग होता है। लाल रंग अपनी तीव्रता और स्पष्टता के लिए जाना जाता है, जिससे छात्र और अभिभावक तुरंत शिक्षक की टिप्पणियों या सुधारों को देख सकते हैं। लाल रंग बाकी सभी रंगों से अलग दिखता है, जिससे यह मूल्यांकन के लिए आदर्श माना जाता है।
नकारात्मक प्रभाव और छात्र पर मनोवैज्ञानिक असर
हालांकि, लाल पेन की स्पष्टता मददगार हो सकती है, लेकिन कुछ मनोवैज्ञानिकों और शिक्षाविदों का मानना है कि यह छात्रों के आत्मविश्वास पर नकारात्मक असर डाल सकता है। लाल रंग को अक्सर “गलती”, “विफलता” या “डांट” का प्रतीक माना जाता है। जब किसी छात्र की आंसर कॉपी में कई जगहों पर लाल निशान होते हैं, तो वह खुद को नीचा महसूस कर सकता है और पढ़ाई से दूरी बना सकता है। यही कारण है कि कई देशों में इस पर पुनर्विचार किया गया।
लाल पेन को बैन करने की मांग
बीते वर्षों में भारत समेत कई देशों में लाल पेन को बैन करने की मांग उठी। कई स्कूलों और बोर्ड्स ने टीचर्स को नीला, हरा या बैंगनी पेन इस्तेमाल करने की सलाह दी ताकि फीडबैक कम आक्रामक लगे। खासतौर पर प्राइमरी स्कूलों में यह कहा गया कि बच्चों को सीखने के लिए प्रोत्साहन की जरूरत है, न कि लाल रंग से डराने की। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के कुछ स्कूलों ने तो लाल पेन को पूरी तरह प्रतिबंधित भी कर दिया है।
शिक्षा में बदलाव की ओर कदम
आज के समय में शिक्षा का फोकस केवल परीक्षा और अंक से हटकर मानसिक विकास और आत्मविश्वास बढ़ाने पर है। इसी सोच के तहत अब कई स्कूल फीडबैक देने के तरीके में बदलाव ला रहे हैं। शिक्षक अब कोशिश करते हैं कि वे प्रोत्साहित करने वाले शब्दों और रंगों का उपयोग करें, जिससे छात्र की गलतियों के साथ-साथ उसकी मेहनत की भी सराहना हो।
लाल पेन का उपयोग भले ही एक पुरानी और प्रचलित प्रक्रिया रही हो, लेकिन बदलते समय और शिक्षा के नए दृष्टिकोण के चलते इस पर सवाल उठना स्वाभाविक है। शिक्षकों को अब यह समझने की जरूरत है कि केवल सही-गलत दिखाना ही काफी नहीं, बल्कि छात्रों का मनोबल बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है।