TrendingMauni Amavasya 2025Maha Kumbh 2025Delhi Assembly Elections 2025Ranji TrophyUnion Budget 2025Champions Trophy 2025

---विज्ञापन---

भारत में कैसे मनाया गया पहला जश्न-ए-आजादी, क्यों आई बंटवारे की नौबत?

Bharat Ek Soch : भारत आजादी की 78वीं वर्षगांठ की ओर बढ़ रहा है। वहीं, भारत के साथ ही आजाद हुए पाकिस्तान के हालात भी किसी से छिपे नहीं हैं। साल 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बने बांग्लादेश में भी छोटे-बड़े 29 तख्तापलट हो चुके हैं।

Bharat Ek Soch
Bharat Ek Soch : हर साल की तरह इस बार भी 15 अगस्त से पहले हर घर तिरंगा अभियान की शुरुआत हो चुकी है। जश्न-ए-आजादी से पहले विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस भी मनाया जाएगा। तमाम उतार-चढ़ाव और चुनौतियों के बीच से गुजरते हुए भारत आजादी की 78वीं वर्षगांठ की ओर बढ़ रहा है। वहीं, भारत के साथ ही आजाद हुए पाकिस्तान के हालात भी किसी से छिपे नहीं हैं। साल 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बने बांग्लादेश में भी छोटे-बड़े 29 तख्तापलट हो चुके हैं। दरअसल, भारत और भारतीयों ने आजादी को सिर्फ अंग्रेजों से ट्रांसफर ऑफ पावर वाली सोच से नहीं देखा। अपनी आजादी को बचाए रखने के लिए साधन और साध्य की पवित्रता का हमेशा ख्याल रखा। जिसकी वजह से भारतीय लोकतंत्र मजबूत हुआ तो सरहद पार पूरब और पश्चिम में कमजोर। आज की तारीख में बांग्लादेश में कोहराम जारी है। लोगों के घर जलाए जा रहे हैं। मारा-पीटा जा रहा है। बॉर्डर पर हजारों की तादाद में लोग अपना मुल्क छोड़कर भारत में दाखिल होने के लिए तैयार बैठे हैं। पाकिस्तान में लोग अपनी ही हुकूमत के खिलाफ लगातार आवाज बुलंद करते रहे हैं और ये मुल्क खंड-खंड होने की कगार पर खड़ा है। 15 अगस्त, 1947 से पहले आज का पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत का ही हिस्सा थे? ऐसे में आज इतिहास के पन्नों को पलटते हुए समझने की कोशिश करेंगे कि आजादी के साथ बंटवारे की नौबत क्यों आई? क्या बंटवारा टाला नहीं जा सकता था? अगर मोहम्मद अली जिन्ना की बीमारी का राज पहले खुल गया होता तो क्या बंटवारे की नौबत नहीं आती? अंग्रेजों ने किस सोच के साथ सरहद पर बंटवारे की लकीर खींची गई? हिंदू और सिख आबादी वाला लाहौर पाकिस्तान के हिस्से क्यों गया? गुरदासपुर और पठानकोट को भारत ने किस तरह हासिल किया? पंडित नेहरू जब अपना ऐतिहासिक भाषण tryst with destiny लिख रहे थे तो उनके दिमाग में कौन सी हलचल चल रही थी? यह भी पढ़ें : राष्ट्र निर्माण के मिशन में क्यों नहीं जोड़े जाते रिटायर्ड कर्मचारी? कैसे मना था आजादी का पहला जश्न अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई ने पूरे भारत को एक कर दिया था। इस चमत्कार से पश्चिम के बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित हैरान थे। अंग्रेज भी हैरान थे कि उनकी तोप और बंदूक से ज्यादा असरदार महात्मा गांधी का सत्य और अहिंसा का हथियार साबित हुआ। भारत की आजादी के लिए तारीख तय हुई 15 अगस्त, 1947, ऐसे में सबसे पहले ये समझने की कोशिश करते हैं कि भारत को किन हालातों में आजादी मिली? आजादी के बाद हमारे नेता किस तरह का मुल्क बनाना चाहते थे। भारत निर्माण में सबकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए सबको साथ लेकर चलने का रास्ता कैसे निकाला गया? आजादी का पहला जश्न कैसे बनाया गया? बंटवारे की कीमत पर मिली आजादी भारत ने अपना रास्ता चुन लिया था। आजादी बंटवारे की कीमत पर मिली थी। 14-15 अगस्त, 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो बहुत से लोग ऐसे से भी थे, जिन्हें ये पता नहीं था कि वो भारत में हैं या नए मुल्क पाकिस्तान में। पश्चिम में पंजाब और पूरब में बंगाल में खून-खराबा चल रहा था, जिसे संभालना बहुत मुश्किल हो चुका था। हिंदू और मुस्लिमों के बीच अविश्वास की खाई चौड़ा करने में अंग्रेजों की नीतियां जितनी जिम्मेदार थीं, उतनी ही मोहम्मद अली जिन्ना की महत्वाकांक्षा भी। जिन्ना को टीवी जैसी जानलेवा बीमारी थी। वो धीरे-धीरे मौत के मुंह की ओर जा रहे थे। लेकिन, अपनी गंभीर बीमारी छिपाते हुए पाकिस्तान को लेकर अपनी जिद और जुनून को रत्ती भर भी कम नहीं होने दिया। अलग पाकिस्तान के मुद्दे पर जिन्ना खुद को मुस्लिम लीग से ऊपर समझते थे। ऐसे में बंटवारे की कहानी का पन्ना पूरब की ओर से पलटना शुरू करते हैं। वो साल 1946 का था- Bengal Provincial Election हुए। वहां कि 250 सीटों में से मुस्लिम लीग को 113 पर कामयाबी मिली और कांग्रेस के खाते में 86 सीटें आईं। बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार बनी। दूसरी ओर भारत आजादी की दहलीज से कुछ कदम दूर था। अंग्रेजों के हाथ बढ़िया मौका लग गया। सत्ता हस्तांतरण यानी ट्रांसफर ऑफ पावर के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने कैबिनेट मिशन योजना तैयार की। कांग्रेस एकजुट भारत चाहती थी तो वहीं मुस्लिम लीग बंटवारा। ऐसे में जिन्ना ने 16 अगस्त, 1946 में शक्ति प्रदर्शन का ऐलान किया और नाम दिया डायरेक्ट एक्शन डे। यह भी पढ़ें : 24 का चक्रव्यूह: विधानसभा चुनावों में BJP का पलड़ा हल्का होगा या भारी? पाकिस्तान की मांग पर अड़े थे जिन्ना माउंटबेटन भारतीय नेताओं से लगातार बातचीत कर रहे थे, वे सबका मन टटोल रहे थे। दूसरी ओर मोहम्मद अली जिन्ना अपने रुख से टस से मस होने के लिए तैयार नहीं थे। पंडित नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद भी अपनी-अपनी दलील दे रहे थे। अलग पाकिस्तान की मांग पर अड़े जिन्ना को समझाने की कोशिश चल रही थी। इस बीच रावलपिंडी से वायसराय माउंटबेटन के पास एक खबर पहुंची कि एक मुसलमान की भैंस किसी सिख पड़ोसी के खेत में चली गई। सिर्फ 2 घंटे बाद ही उस खेत में 100 लोगों की लाशें पड़ी मिलीं। ऐसे में ये समझना भी जरूरी है कि आजादी के साथ बंटवारे टालने और किसी पर कीमत पर बंटवारा के लिए किस तरह से कोशिशें चल रही थीं। जिन्ना की बीमारी का राज खुल गया होता तो शायद विभाजन नहीं होता अक्सर दलील दी जाती है कि अगर मोहम्मद अली जिन्ना की बीमारी का राज पहले खुल गया होता तो शायद भारत का बंटवारा टाला जा सकता था। दलील ये भी दी जाती है कि अगर पंडित नेहरू और सरदार पटेल जैसे नेता भारी मन से ही सही बंटवारे के लिए तैयार नहीं होते तो और भी निर्दोष लोग मारे गए होते। एक अनुमान के मुताबिक बंटवारे के दौरान हुए खून-खराबे में करीब 10 लाख लोग मारे गए। एक करोड़ बीस लाख से अधिक विस्थापित हुए। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब India After Gandhi में लिखा है कि पंडित नेहरू ने एक शरणार्थी काफिले का हवाई सर्वेक्षण किया, जिसमें करीब एक लाख लोग शामिल थे और यह काफिला दस मील तक लंबा था। काफिला जालंधर से लाहौर की ओर जा रहा था, जिसके रूट में अमृतसर भी पड़ता था। जहां पहले से पश्चिमी पाकिस्तान से आए सत्तर हजार शरणार्थी जमा थे, जो गुस्से में थे। ऐसे में पंडित नेहरू ने किसी तरह के टकराव को टालने के लिए शहर की ओर जाने वाली सड़क को काटने का निर्देश दिया, जिससे दोनों काफिला एक-दूसरे से ना मिल सके। आजाद भारत की पहली सरकार के सामने पहली बड़ी चुनौती सांप्रदायिक हिंसा से निपटने और शरणार्थियों के बसाने की रही। दूसरी चुनौती उन रियासतों को भारत के नक्शे से जोड़ने की थी, जिन्होंने 15 अगस्त, 1947 तक ये तय नहीं किया था कि किधर जाएंगे? यह भी पढ़ें : अग्निपथ स्कीम को लेकर असंतोष, सेना में भर्ती पर क्यों मचा बवाल? पंडित नेहरू से सामने थीं बड़ी चुनौतियां जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ भी भारत का हिस्सा बन गए। पंजाब और बंगाल में भी खून-खराबा धीरे-धीरे कम होने लगा। लेकिन, चुनौतियों का पहाड़ पंडित नेहरू की टीम के सामने खड़ा था। तब देश की आबादी 34 करोड़ के आसपास थी। इस आबादी में से हर 100 में से 80 आदमी गरीबी रेखा के नीचे जिंदगी बसर कर रहा था। सिर्फ 20 लोग ही मुश्किल से साक्षर यानी लिख-पढ़ सकते थे। एक आदमी की सालाना कमाई पौने तीन सौ रुपये से भी कम यानी मुश्किल से 20-25 रुपये महीना थी। आजादी की हवा में लोगों की आंखों में पल रहे सपने कैसे पूरे होंगे? लोगों के हक-हकूक और आजादी को बनाए रखने का तंत्र कैसे काम करेगा? इतनी विविधता वाले देश को किस तरह से जोड़े रखा जाए। आजाद भारत में नेताओं ने इन सवालों पर ईमानदारी से काम किया। वहीं, पाकिस्तान के गर्वनर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने सितंबर 1948 में टीवी की बीमारी से दम तोड़ दिया। आजादी के साथ ही पाकिस्तान में भीतरखाने सत्ता संघर्ष शुरू हो गया। अक्टूबर, 1951 में वहां प्रधानमंत्री लियाकत अली की सरेआम गोलीमार कर हत्या कर दी गई। इस्लामाबाद में बैठने वाले हुक्मरान और आर्मी जनरल पूर्वी पाकिस्तान यानी आज का बांग्लादेश को अपने लिए एक उपनिवेश की तरह देखने की सोच से उबर नहीं पाए, जिसकी वजह से 1971 में अलग मुल्क के रूप में बांग्लादेश का जन्म हुआ। ऐसे में आजादी के बाद से ही भारत की सरहद के दोनों ओर यानी पूरब और पश्चिम में उथल-पुथल बनी रही, जो आज भी जारी है। https://www.youtube.com/live/Xgb5u3Dps4I


Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google News.