Bharat Ek Soch: समय किसी का इंतजार नहीं करता…न तो खुश होता है न ही निराश...बस आगे बढ़ता रहता है। एक और साल बीता...नया साल नई उम्मीद और चुनौतियों के साथ सामने है। सबसे पहले न्यूज़ 24 के सभी दर्शकों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। देश के ज्यादातर लोग नए साल की शुरुआत देवी-देवताओं के दर्शन-पूजन के साथ करते हैं...वो अपने आराध्य से प्रार्थना करते है कि उन्हें शक्ति मिले, समृद्धि मिले...शांति मिले...बेहतर स्वास्थ्य मिले...सामाजिक समरसता बनी रहे। इसी में हर इंसान, समाज और देश की भलाई है। भारत में तीन देवता ऐसे हैं, जिनके भक्तों की तादाद बहुत लंबी-चौड़ी है।
जिनकी भक्ति में लोग शक्ति और बेहतर जिंदगी के लिए एक फलसला देखते हैं। हम बात कर रहे हैं- भगवान शिव, भगवान राम और भगवान कृष्ण की। राजनीति भी इन तीनों देवताओं को समय के साथ अलग-अलग चश्मे से देखती रही है...इसलिए अक्सर नारा सुनाई देता है-अयोध्या तो बस झांकी है मथुरा-काशी बाकी है। अयोध्या में श्रीरामलला का भव्य दिव्य मंदिर तैयार हो चुका है...लेकिन, ज्ञानवापी और मथुरा में मंदिर की बात सियासतदां समय-समय पर उठाते रहते हैं।
क्या सियासत और समाज ने संदेशों को समझने की कोशिश की?
साल 2024 के चुनावी अखाड़े में भी अयोध्या, काशी और मथुरा की गूंज सुनाई देगी। सियासी सूरमा इन धार्मिक स्थानों के मुद्दे पर अपने-अपने तरीके से वोट की लहर पैदा करने की कोशिश करेंगे... लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि क्या हमारी सियासत और समाज ने हिंद के भगवान के संदेशों को समझने की कोशिश की है। क्या भगवान राम के मर्यादित व्यक्तित्व, भगवान शिव के सबको साथ लेकर चलने वाले मर्म और श्रीकृष्ण के कर्मयोग से कुछ सीखा है?
भारत के भगवान मानव शरीर धारण कर लोगों को मुश्किल हालात से जूझने और सबको साथ लेकर चलने की प्रेरणा सदियों से देते रहे हैं...उनके चरित्र में हिंदू और मुस्लिम सबको अपना कल्याण दिखा है। वो मजहब के आधार पर किसी में भेद नहीं करते...वो सिर्फ इंसानियत और खुशहाल समाज के एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं। आज हम आपको भारत के भगवान की भक्ति और शक्ति के बीच सबका साथ, सबका विकास के फलसले को समझाने की कोशिश करेंगे।
दुनिया तेजी से बदल रही है। लोगों की जिंदगी में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की घुसपैठ लगतार बढ़ती जा रही है। भारत के ज्यादातर मिडिल क्लास नौकरीपेशा परिवारों के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि एआई उनकी नौकरी तो खत्म नहीं कर देगा? महंगाई के हिसाब से उनकी तनख्वाह बढ़ेगी या नहीं? राजनीति रत्तीभर में दिलचस्पी रखने वाले हिसाब लगा रहे है कि 2024 में सत्ता की बागडोर किसके हाथ में जाएगी? क्या बीजेपी विरोधी मोर्चा असरदार साबित होगा या मीटिंग पर मीटिंग ही करता रह जाएगा।
संयम और संतोष का पाठ
ज्योतिषी भी 2024 में ग्रहों की चाल-दशा को देखते हुए शुभ-अशुभ की भविष्यवाणी कर रहे हैं। भारतीय परंपरा में भगवान लोगों को तमाम तरह की चुनौतियों से लड़ने और सबको साथ लेकर चलने का रास्ता दिखाते रहे हैं। संयम और संतोष का पाठ पढ़ाते रहे हैं। ऐसे में नए साल में सबसे पहले बात भगवान शिव की करते हैं... भारतीय परंपरा में निराकार ब्रह्म के साथ आकार ब्रह्म की धारा भी साथ-साथ चलती है।
इसी धारा में निर्गुण और निराकार शिव...इंसान का शरीर धारण किए शंकर बन गए। भारत में अरबों लोगों ने इसे महादेव यानी भगवान शिव के रूप में देखा। अपने-अपने हिसाब से शिव की छवि गढ़ ली... किसी ने शिवलिंग को शक्ति का रूप माना...तो किसी ने गले में सांप लपेटे, हाथों में त्रिशूल, सिर पर चंद्रमा धारण किए अलौकिक शक्तियों से लैस काया में, लेकिन भगवान शिव ने समाज को जोड़ने का जो दर्शन दिया वो नए साल की चुनौतियों से निपटने में मददगार साबित हो सकता है।
महादेव असीमित व्यक्तित्व के स्वामी हैं... वो सिर्फ शक्ति और संहार के देवता नहीं हैं। विरोधाभासों को बीच समन्वय का रास्ता शिव दिखाते और सिखाते हैं। भगवान शिव आधुनिक समाज को संदेश देते हैं कि विरोधाभासों को बीच समन्वय और सौहार्द के साथ कैसे रहा जाता है। वैराग्य और पारिवारिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन का दूसरा नाम शिव हैं। सहज और सामान्य जीवन के प्रतीक हैं...उनकी जीवन शैली इशारा करती है कि ऐसे ही आडंबरों से दूर रहने वाले लोगों की अगुवाई में समाज का विकास हो सकता है। मुश्किल से मुश्किल क्षण...यहां तक की शोक में भी उत्सव मनाने की राह दिखाते हैं। मृत्यु को जीवन का अंत नहीं...पूर्णता का दूसरा नाम समझा जाते है।
शिव का सच्चा भक्त अहंकार से दूर रहता है
भगवान शिव मंदिरों में स्थापित सिर्फ एक देवता नहीं हैं...वो जीवन को बेहतर बनाने, इंसान और प्रकृति के बीच तालमेल बैठाने...समाज में समन्वय बनाने का अद्भुत दर्शन है। शिव का सच्चा भक्त सत्ता, पैसा और शक्ति के अहंकार से दूर रहता है... दूसरों को कुचलने की प्रवृत्ति को अपने पास आने नहीं देता। भारत हजारों साल से श्रीराम के मर्यादित व्यक्तित्व से रोशनी लेता रहा है। विष्णु के अवतार श्रीराम भी भगवान शिव की पूजा करते हैं।
त्रेतायुग के श्रीराम एक ऐसी आदर्श शासन-व्यवस्था का पैमाना रहे हैं। जिसे पूरा करने का सपना हर सभ्य समाज ने देखा है। श्रीराम के नाम पर भारत ने राजनीति बहुत देखी है... लेकिन, राम के मर्यादित चरित्र से जिस तरह की शासन- व्यवस्था का सूत्र निकला... उसका सपना अभी भी अधूरा है। भारत के लिए श्रीराम एक ऐसी सोच है- जिनके रास्तों पर चलते हुए हिंदू और मुस्लिम सबको सदियों से अपना कल्याण दिखा है।
श्रीराम का हर भूमिका में बहुत ऊंचा मानदंड
श्रीराम हिंदुस्तान के जनमानस के मर्यादा पुरुषोत्तम हैं...जो एक आदर्श राजा...एक आदर्श शिष्य…एक आदर्श पुत्र...एक आदर्श पति...एक आदर्श भाई...एक आदर्श मित्र...हर भूमिका में एक बहुत ऊंचा मानदंड रखते हैं। इसलिए, मुस्लिम साहित्यकारों ने भी श्रीराम के चरित्र में समाज का सार्वभौम विकास देखा...इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण को 64 कलाओं का महारथी माना जाता है...वो समाज को कर्मयोग के साथ सबको और सबसे प्रेम करना सिखाते हैं। श्रीकृष्ण बहुत आदर्शवादी नहीं...बहुत मर्यादित नहीं ... बहुत संयमित नहीं...उनका चरित्र समय चक्र के साथ बदलता रहता है।
ऐसे में वो लोगों को अपने जीवन चक्र से एक ऐसी राह दिखाते हैं, जिसमें मुश्किलों और चुनौतियों के साथ जूझने का बहुत ही व्यवहारिक दर्शन छिपा है..उनकी जिंदगी से निकलते इस मर्म को मुस्लिम साहित्यकारों ने भी महसूस किया और उन्हें अपना प्रेमी बताया...इस लिस्ट में अमीर खुसरो, रसखान, नज़ीर अकबराबादी जैसे मुस्लिम साहित्यकार भी शामिल हैं।
खुशहाल जिंदगी का रास्ता
भारत की परंपरा और उसमें मौजूद देवी-देवता लोगों को बेहतर और खुशहाल जिंदगी का रास्ता दिखाते रहे हैं। भले ही समाज के एक खास वर्ग और राजनीति ने उन्हें सीमित करने की कोशिश की हो... लेकिन, वो समाज के हर वर्ग को बिना किसी भेदभाव के मुश्किलों से उबरने के लिए ऊर्जा देते रहे हैं। कोई त्याग और सामंजस्य का पाठ रहा है...तो कोई अपने मर्यादित व्यक्तित्व से समाज में दरकते रिश्तों को जोड़ने का संदेश दे रहा है... कोई आदर्श शासन-व्यवस्था के लिए प्रेरणा स्त्रोत बना हुआ है...तो कोई कर्म योग का रास्ता दिखाते हुए मौजूदा चुनौतियों से लड़ने का हौसला दे रहा है।
नए साल में जिस तरह की चुनौतियों से सामना होना तय दिख रहा है-उनसे निपटने में लोगों के आराध्यों के जीवन से निकलने वाले संदेश मददगार साबित हो सकते हैं। लोगों की मुश्किलों से अटल इरादों के साथ जूझने की क्षमता में ही भारत की शक्ति और भारतीयता का मर्म छिपा है।
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