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चुनाव की तारीखों का ऐलान, क्या है सियासी दलों का प्लान?

Bharat Ek Soch: चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का ऐलान कर दिया है। चुनाव आयोग के मुताबिक, 19 अप्रैल से 7 चरण में चुनाव होंगे। जबकि नतीजे 4 जून को आएंगे। इससे पहले राजनीतिक दलों ने किस तरह तैयारी की है? आइए इस पर एक नजर डालते हैं...

Edited By : Pushpendra Sharma | Mar 16, 2024 21:00
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Anurradha Prasad News24
भारत एक सोच।

Bharat Ek Soch: वक्त किसी से लिए नहीं ठहरता और परिस्थितियां कभी अनुकूल नहीं होती हैं। परिस्थितियों को अपने हिसाब से बनाने के लिए चुनौतियों को चुनौती देनी पड़ती है। कदम-कदम पर जूझना पड़ता है। कहा जाता है कि निराशावादी हवा के बारे में भी शिकायत करता है, आशावादी हवा के रुख को बदलने की उम्मीद करता है और एक लीडर हवा के रूख के हिसाब से बोट के पाल को Adjust कर लेता है।

अब सवाल उठता है कि 2024 के आम चुनाव को लेकर हमारे सियासी दल क्या सोच रहे हैं? निराशावादी, आशावादी और व्यावहारिक नेता चुनावी हवा को किस तरह से लेकर रहे हैं? बीजेपी ने 2024 में Simple Majority की जगह 370 प्लस का टारगेट क्यों सेट किया है? पीएम मोदी दो-तिहाई बहुमत क्यों चाहते हैं।

उनके एजेंडे में कौन-कौन से काम बाकी हैं, जिसे पूरा करने के लिए उन्हें स्पेशल मेजोरिटी की जरूरत है? 2024 की लड़ाई जीतना कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी है। कांग्रेस को कहां-कहां उम्मीद और चुनौतियां दिख रही हैं? अगर कांग्रेस का प्रदर्शन नहीं सुधरा तो पार्टी को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा? इसी तरह आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और आरजेडी जैसी पार्टियां 2024 के नतीजों को लेकर कितनी आशावादी और निराशावादी हैं? 2024 के नतीजों के बाद की तस्वीर कैसी बन सकती है? ऐसे सभी सवालों के जवाब खोजने की कोशिश करेंगे अपने स्पेशल शो ‘2024 में करो या मरो’ में…

जमीन पर क्या हैं हालात?

हाल में अनौपचारिक बातचीत के दौरान सत्ता से आउट पार्टी के एक नेता से पूछा गया कि इस बार चुनाव में कितनी सीटें जीतने की उम्मीद है। उन्होंने बड़ी गंभीरता से जवाब दिया कि अगर आप ये पूछते कि कितनी सीटों पर कड़ी टक्कर देने की स्थिति में हैं तो ज्यादा ठीक रहता? संभवत:, ये बहुत ईमानदारी से दिया गया जवाब और जमीन पर हालात का आकलन था।

राजनीतिक पंडित भी यही हिसाब लगा रहे हैं कि कितनी सीटों पर दमदार टक्कर होगी। कहां-कहां ऐसी जोरदार टक्कर होगी, जहां नतीजे चौंका सकते हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं में कई बार इस तरह बात करते दिखते हैं- जैसे वो प्रचंड बहुमत जीत के लिए पूरी तरह कॉन्फिडेंट हों। तीसरी पारी में उनका आना तय हो। अफसरों से भी वो 2024 के बाद के टारगेट की बातें कर रहे हैं। पीएम मोदी ने तीसरी पारी के लिए कई ऐसे टारगेट तय कर रखें हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए उन्हें पहले से बड़े जनादेश की जरूरत है।

बीजेपी का वादा अधूरा

मसलन, एक देश…एक चुनाव का सिस्टम लागू करवाना, बीजेपी का एक देश, एक कानून का वादा अभी अधूरा है। संसद से पास महिला आरक्षण बिल को जमीन पर उतारना, भारत को दुनिया की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बनाना और देश में भर्तियों के सिस्टम में सुधार करना। लेकिन, ये सब तभी संभव है जब बीजेपी को बड़ा, बहुत बड़ा जनादेश मिले।

एक देश, एक चुनाव का सिस्टम लागू करने के लिए कई कानूनों में फेरबदल करना पड़ सकता है। इसी तरह एक देश, एक कानून के भी कई संविधान संशोधन करने पड़ सकते हैं। विरोधी पार्टियों के अलहदा सुर का भी सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में बीजेपी की रणनीति 2024 में इतना बड़ा जनादेश हासिल करने की है जिससे कहीं भी विपक्ष स्पीड ब्रेकर की भूमिका न निभा सके। पिछले 10 साल से कांग्रेस केंद्र की सत्ता से आउट है। अगर भारत के राजनीतिक नक्शे को देखें तो कांग्रेस सिर्फ तीन राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल में ही शासन कर रही है। जहां देश की करीब साढ़े आठ फीसदी आबादी रहती है।

कांग्रेस की राहें कितनी आसान

दिसंबर में राजस्थान और छत्तीसगढ़ कांग्रेस के हाथों से निकल गए। सियासी हवा का रुख देखते हुए कांग्रेस के दिग्गज पाला बदल रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर कांग्रेस का 2024 में प्रदर्शन नहीं सुधरा तो क्या होगा? क्योंकि, बिना सत्ता के पार्टी से कार्यकर्ता दूरी बनाते लगते हैं और पार्टी चलाने के लिए जरूरी फंड जुटाना भी मुश्किल होता है। अब सवाल उठता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस की राहें आसान होंगी या और मुश्किल?

राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं और किसी भी लीडर की सबसे बड़ी USP होती है- हर परिस्थिति में आशावादी होना। थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं– 40 साल पहले। साल 1984 का चुनाव। बीजेपी को लोकसभा में सिर्फ दो सीटें मिली थीं, लेकिन बीजेपी के नेताओं ने संघर्ष किया, लोगों को अपने साथ जोड़ने के लिए नए-नए प्रयोग किए। गठबंधन सरकार बनाने के लिए अपने बड़े मुद्दों को किनारे भी रखा और 2014 से केंद्र में प्रचंड बहुमत से सत्ता में है। देश के 12 राज्यों में बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं।

आम आदमी पार्टी ‘सफल स्टार्टअप’

ऐसे में सवाल उठता है कि अगर बीजेपी इस मुकाम तक पहुंच सकती है, तो फिर दूसरी पार्टियां क्यों नहीं? 2024 का चुनाव एक और पार्टी के लिए बहुत अहम है– वो है आम आदमी पार्टी। अगर पिछले एक दशक में सबसे सफल पॉलिटिकल स्टार्ट-अप का कोई अवॉर्ड होता तो वो संभवत: आम आदमी पार्टी के खाते में जाता, केजरीवाल के दिल्ली मॉडल को आगे कर AAP पंजाब में सत्ता हासिल करने में भी कामयाब रही। कई राज्यों में विस्तार प्लान पर टीम केजरीवाल लगातार काम कर रही है। अब बड़ा सवाल ये है कि क्या इस बार चुनाव में AAP की सीटें बढ़ पाएंगी? अगर AAP का प्रदर्शन नहीं सुधरा तो क्या होगा और अगर सुधरा तो क्या होगा?

राजनीति नफा-नुकसान का हिसाब लगाते हुए गठबंधन की स्क्रिप्ट भी तैयार हुई है। सहूलियत का गठबंधन चुनाव तक चलेगा या बीच में ही दम तोड़ देगा, ये कहना भी मुश्किल है। फिलहाल, तो आम आदमी पार्टी की रणनीति भीतरखाने देश की राजनीति में दूसरे नंबर की पार्टी बनने की लग रही है। इसमें लोकसभा में सीटें बढ़ाने से लेकर वोट शेयर बढ़ाना तक शामिल होगा। संकट यूपी में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, मायावती की बीएसपी, बिहार में लालू यादव की आरजेडी जैसी पार्टियों के सामने भी कम नहीं हैं। एसपी- बीएसपी तो लंबे समय से सत्ता से दूर हैं। ऐसे में अगर 2024 के चुनाव में साइकिल या हाथी का प्रदर्शन गिरा, तो पार्टी को बचाए रखना भी मुश्किल हो जाएगा। देश की कई क्षेत्रीय पार्टियां करो या मरो वाली स्थिति से जूझ रही हैं।

बीजेपी आलाकमान को डिकोड करना मुश्किल

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दिमाग को डिकोड करना बहुत मुश्किल है, लेकिन ऐसा लगता है कि मोदी-शाह की 2014 से रणनीति राष्ट्रीय पार्टियों खासकर कांग्रेस को कमजोर करने की रही, जिसमें कांग्रेस मुक्त भारत के एजेंडे पर बीजेपी के महारथी लंबे समय से लगातार काम कर रहे हैं। आज की तारीख में बीजेपी को देश की आधी लोकसभा सीटों पर भी मजबूती से टक्कर देनेवाला एक भी राजनीतिक दल नहीं दिख रहा है।

2024 में मोदी सुनामी को रोकने के लिए इंडी गठबंधन की जो छतरी तानने की कोशिश हुई वो भी आपसी खींचतान में पूरी तरह से नहीं खुल पाई। ऐसे में अगर चुनाव में बीजेपी 370 प्लस के टारगेट को हासिल कर लेती है, तो भी बीजेपी के सामने क्षेत्रीय दलों की चुनौती रहेगी – इसमें पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, तमिलनाडु में एमके स्टालिन, आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी, ओडिशा में नवीन पटनायक, झारखंड में हेमंत सोरेन, दिल्ली-पंजाब में अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान जैसे मजबूत क्षत्रप हैं।

क्या है प्लान?

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव सत्ता से बाहर हों, लेकिन BJP के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को रोकने के लिए पूरी कोशिश करते रहे हैं। ऐसे में अगर 2024 के चुनाव में सब कुछ मोदी-शाह के प्लान के हिसाब से हुआ तो अगला नंबर क्षेत्रीय दलों और क्षत्रपों का होगा। जहां बीजेपी सत्ता में आने का इंतजार कर रही है। इस चुनाव में ये देखना भी बहुत दिलचस्प होगा कि कौन नेता जीतने के लिए लड़ता है, कौन कड़ी चुनौती देने के लिए लड़ रहा है और कौन रस्म अदायगी के तौर पर चुनावी अखाड़े में उतर रहा है? हमारे लोकतंत्र में ऐसे आशावादी नेताओं की फौज कितनी बड़ी है, जो अभी सरेंडर की मुद्रा में हैं और 2029 में हालात अनुकूल होने का इंतजार कर रहे हैं।

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First published on: Mar 16, 2024 09:00 PM

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