Saptshloki Durga: इस मंत्र के 108 जप से पूरे होंगे सब काम, बड़े से बड़ा संकट भी टल जाएगा
Saptshloki Durga: मां भगवती आद्यशक्ति को प्रसन्न करने के लिए शास्त्रों में अनगिनत मंत्र और स्त्रोत बताए गए हैं। इन मंत्रों को सिद्ध करने के लिए कड़ा तप करना होता है, कठोर ब्रह्मचर्य से रहना होता है, तब जाकर दैवीय कृपा प्राप्त होती है। दुर्गा सप्तशती भी इसी प्रकार का एक अनुष्ठान है। इस पूरे विश्व में ऐसा कुछ भी नहीं जो दुर्गा सप्तशती के अनुष्ठान से प्राप्त न हो सकें।
ज्योतिषी एम. एस. लालपुरिया के अनुसार दैवीय कृपा प्राप्त करने के लिए जिन अनुष्ठानों को करना होता है, वे बहुत कठिन होते हैं। उन्हें पूरा करना हर किसी के लिए संभव नहीं होता है। ऐसे में एक अन्य उपाय आजमा कर भी आप मां भगवती की कृपा और आशीर्वाद पा सकते हैं। जानिए इस उपाय के बारे में
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हिंदू धर्म के विद्वानों के अनुसार दुर्गा सप्तशती के पाठ को 7 श्लोकों में समेटा गया है। इन 7 श्लोकों में ही पूरी सप्तशती का सार आ जाता है। यही कारण है कि केवल मात्र इन्हें पढ़ कर भी आप अपना उद्देश्य पूर्ण कर सकते हैं। इस सात श्लोकों को एक साथ सप्तश्लोकी मंत्र कहा जाता है। यदि इन 7 श्लोकों का प्रतिदिन 108 बार पाठ किया जाए और मां की आराधना की जाए तो व्यक्ति सब कुछ प्राप्त कर सकता है।
ऐसे करें सप्तश्लोकी दुर्गा का अनुष्ठान (Saptshloki Durga Anusthan)
इसका अनुष्ठान करना बहुत ही सरल है। इसके लिए किसी शुभ मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ, धुले हुए वस्त्र पहनें। सर्वप्रथम गणेशजी और उसके बाद भगवान शिव तथा भगवती की आराधना करें। उन्हें धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, सुगंध, नैवैद्य अर्पित करें। उन्हें प्रणाम करें तथा "नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:। नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम्॥" बोलते हुए अनुष्ठान की आज्ञा लें। इसके बाद सप्तश्लोकी दुर्गा के 108 बार पाठ करें। सप्तश्लोकी दुर्गा इस प्रकार है।
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।।अथ श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा।।
शिव उवाच:
देवि त्वं भक्त सुलभे सर्वकार्य विधायिनी।
कलौ हि कार्य सिद्धयर्थम् उपायं ब्रूहि यत्नतः॥
देव्युवाच:
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्ट साधनम्।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बा स्तुतिः प्रकाश्यते॥
विनियोग:
ॐ अस्य श्रीदुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः, श्री दुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः।
ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।1।।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्य दुःख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता।।2।।
सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते॥3॥
शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे
सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते॥4॥
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते॥5॥
रोगानशेषानपंहसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता हि आश्रयतां प्रयान्ति॥6॥
सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यम् अस्मद् वैरि विनाशनम्॥7॥
॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्ण॥
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।
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