पाकिस्तान में कैसे बनेगी अगली सरकार? किसी को नहीं मिल पाया स्पष्ट जनादेश!
Imran Khan, Nawaz Sharif, Bilawal Bhutto
Pakistan Political Crisis : उम्मीद जताई जा रही थी कि आम चुनाव के साथ लंबे समय से चला आ रहा पाकिस्तान का राजनीतिक संकट कुछ कम होगा। लेकिन समय के साथ यह चुनौती और गंभीर होती जा रही है। पहले तो यहां चुनाव परिणाम आने में देरी हुई और परिणाम आए भी तो कोई भी पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं पहुंच पाई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि पाकिस्तान के राजनीतिक दल अगली सरकार किस तरह बनाएंगे।
सरकार बनाने के लिए कितनी सीटों की जरूरत
पाकिस्तान में बीती आठ फरवरी को मतदान हुआ था। नेशनल असेंबली की सभी सीटों के परिणाम आ चुके हैं और निर्दलीय उम्मीदवारों ने सबसे ज्यादा 93 सीटों पर जीत हासिल की है। ये निर्दलीय उम्मीदवार पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थक हैं, जो फिलहाल जेल में हैं। दरअसल, इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पर कई आरोप लगे थे जिसके चलते निर्वाचन आयोग ने इसके चुनाव में हिस्सा लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
336 सीटों वाली पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में 70 सीटें आरक्षित हैं। किसी भी गठबंधन या पार्टी को सरकार बनाने के लिए 169 सीटों की जरूरत होती है। वर्तमान जनादेश को देखें तो लगभग हर बड़ी पार्टी अगली सरकार बनाने के लिए 169 सीटों के जादुई आंकड़े को छूने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। तीन बार प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के खाते में इस बार 75 सीटें आई हैं।
नवाज शरीफ और बिलावल मिला सकते हैं हाथ
बिलावल भुट्टो जरदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) 54 सीटें जीत पाई है। गठबंधन की सरकार बनाने के लिए नवाज शरीफ और बिलावल भुट्टो जरदारी के बीच बातचीत भी शुरू हो चुकी है। इस बात की संभावना तेज हुई है कि एक बार फिर ये दोनों बड़े राजनीतिक दल एक साथ आ सकते हैं। लेकिन समस्या ये हैं कि हाथ मिलाने के बाद भी दोनों के पास 129 सीटें ही हो पाएंगी। सरकार बनाने के लिए दोनों को 40 और सीटों की जरूरत होगी।
इस समस्या को हल करने के लिए कई छोटी पार्टियों के साथ भी बातचीत की जा रही है। पाकिस्तान के नियमों के अनुसार किसी उम्मीदवार का प्रधानमंत्री के रूप में चयन तभी होता है जब असेंबली में उसे कम से कम 169 वोट मिलें। उल्लेखनीय है कि अगर कोई भी उम्मीदवार 169 सांसदों को नहीं जुटा पाता है तो फिर दूसरे दौर का मतदान होता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक असेंबली के सदस्य किसी नेता का चुनाव नहीं कर लेते हैं।
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