महात्मा गांधी से मोदी तक…कैसे मजबूत होता गया भारत-इजरायल का रिश्ता? 9 बड़े कारण
India Israel relation: हमास के हमलों के बाद भारत अपने दोस्त इजरायल के साथ खड़ा है। इजरायल को भारत का रणनीतिक साझेदार माना जाता है। 1947 की बात करें, तो तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने फिलिस्तीन के विभाजन के मसले पर इजरायल का साथ देने से इन्कार कर दिया था। नेहरू ने अपनी राजनीतिक मजबूरियों को हवाला दिया था। इजरायल को बनने के बाद भारत ने 2 साल बाद इसको मान्यता दी थी। इससे पहले भारत इसलिए पीछे हट रहा था, क्योंकि उसे अरब देशों की नाराजगी का डर था।
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भारत की नीति लगभग फिलिस्तीन के पक्ष में दशकों तक रही। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में इजरायल से संबंध काफी ऊंचाइयों पर गए हैं। मोदी जब फिलिस्तीन गए, तो इजरायल नहीं गए। जब इजरायल गए, तो कभी फिलिस्तीन नहीं गए। मोदी ने इस धारणा को तोड़ दिया कि इजरायल के समर्थन के बाद अरब देश नाराज होंगे। अब भारत के इजरायल से रिश्तों को लेकर आए 9 अहम मोड़ों के बारे में जानते हैं।
और ऐसे परवान चढ़ते गए इजरायल के साथ रिश्ते
- महात्मा गांधी यहूदियों पर अत्याचार के कारण इजरायल के लिए सहानुभूति तो रखते थे। लेकिन पक्ष में नहीं थे कि फिलिस्तीन को बंटवारे के लिए मजबूर किया जाए। महात्मा गांधी मानते थे कि ये यहूदियों की गलती है कि वे अमेरिका और ब्रिटेन की मदद के फिलिस्तीन पर खुद को थोप रहे हैं।
- इसके बाद पीएम जवाहर लाल नेहरू भी इसी नीति पर चले। उन्होंने कहा था कि अरब आबादी की सहमति से भी फिलिस्तीन का विभाजन होना चाहिए। इसके लिए की गई अल्बर्ट आइंस्टीन की अपील भी उन्होंने ठुकरा दी थी। भारत दशकों तक फिलिस्तीन के पक्ष में रहा। भारत में भी मुस्लिम आबादी काफी है। इजरायल को लेकर भारत की नीति घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आधार पर रही। भारत सिर्फ तेल के लिए अरब देशों पर निर्भर था। वहीं, खाड़ी देशों में भी काफी भारतीय भी रोजगार लेने गए हुए थे।
- लेकिन 1962 जंग के बाद भारत का साथ इजरायल ने दिया। चीन के खिलाफ नेहरू ने तत्कालीन पीएम बेन गुरियन से हथियारों को लेकर मदद मांगी थी। नेहरू ने अपील की थी कि जो जहाज हथियार लेकर आए। उस पर इजरायल का झंडा न हो, नहीं तो अरब देश नाराज हो सकते हैं। बेन ने भारत की मदद से इन्कार कर दिया था। लेकिन जब भारत ने झंडा अलाउ किया, तो मदद के लिए इजरायल राजी हो गया था। जिसके बाद संबंधों में रोचक मोड़ आया।
- 1971 जंग में भी इजरायल ने भारत की खुफिया जानकारी से लेकर हथियार सप्लाई में मदद की। जिसके बदले में इजरायल की तत्कालीन पीएम गोल्डा मेयर ने भारत से पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित करने को लेकर कदम बढ़ाए थे।
- 1992 में इजरायल और भारत में पूर्ण संबंध राजनयिक को लेकर बन चुके थे। हालांकि भारत ने इससे पहले फिलिस्तीन के तत्कालीन राष्ट्रपति यासर अराफात को भी विश्वास में लिया था।
- 1998 में जब भारत ने परमाणु विस्फोट किया, तब अमेरिका समेत कई देश नाराज हो गए थे। लेकिन इजरायल के साथ भारत के संबंध अच्छे रहे। इजरायल पहले की तरह भारत को हथियार आदि की आपूर्ति करता रहा।
- 1999 में कारगिल की जंग में इजरायल ने खुफिया जानकारी देने के अलावा हथियारों से भारत की मदद की। इस युद्ध के बाद इजरायल के सहयोग से भारत ने अपनी फौज का आधुनिकीकरण किया। 2000 में भारत के तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी और विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने भी इजरायल का दौरा किया था। जिससे संबंधों में काफी मजबूती आई।
- 2003 में पहली बार इजरायल के पीएम एरियल शेरोन भारत आए। यहां से मित्रता और सहयोग का नया दौर दोनों देशों में शुरू हुआ। इसके बाद तत्कालीन उप पीएम योसेफ लोपेड ने कहा था कि उनके भारत के साथ अच्छे संबंध हैं। इजरायल दूसरा ऐसा देश है, जिससे भारत बड़ी संख्या में वेपन लेता है।
- इसके बाद 2017 में पीएम मोदी इजरायल की यात्रा पर गए। जिसके बाद पहली बार खुलकर भारत और इजरायल के बीच नए ऐतिहासिक संबंधों की गाथा का दुनिया को पता लगा। यूपीए सरकार के दौरान भी इजरायल से कृषि, विज्ञान और तकनीक को लेकर काफी अच्छे संबंध रहे। अब भारत इजरायल एक-दूसरे के काफी करीब माने जाते हैं।
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