Dawood Ibrahim fear about Gujarat Gangster: भारत के सबसे बड़े दुश्मन दाऊद इब्राहिम को कौन नहीं जानता? दाऊद को मोस्ट वांटेड आतंकियों की लिस्ट में रखा गया है। दाऊद मुंबई में 1993 में हुए सिलसिलेवार धमाकों का मास्टरमाइंड है। हम आपको आज एक ऐसे गैंगस्टर के बारे में बताएंगे जिसे गुजरात का ‘दाऊद इब्राहिम’ कहा जाता था। गुजरात का अब्दुल लतीफ, जिसने बहुत कम उम्र में अपराध की दुनिया में कदम रखा और फिर ‘दाऊद इब्राहिम’ बन गया। आइए जानते हैं कि अब्दुल लतीफ को ‘दाऊद इब्राहिम’ के नाम से क्यों जाना जाता था?
अब्दुल लतीफ का परिवार अहमदाबाद के दरियापुर इलाके में रहता था। दरियापुर मुस्लिम इलाका है, जहां अब्दुल का परिवार तम्बाकू बेचता था। कहा जाता है कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण अब्दुल को 12वीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। इसके बाद अब्दुल अपने पिता के साथ तंबाकू बेचने लगा।
शौक अमीरों वाले थे, पैसे के लिए अपराध की दुनिया में रखा कदम
कहा जाता है कि अब्दुल के शौक अमीरों वाले थे, परिवार के पास पैसे नहीं थे, इसलिए उसने अपने शौक को पूरा करने के लिए अपराध की दुनिया में कदम रख दिया। पहले उसने अवैध रूप से देशी शराब की सप्लाई करने वाले किसी दूसरे अपराधी के साथ काम करना शुरू किया। जब देशी शराब के अवैध धंधे से काली कमाई होने लगी, तो धीरे-धीरे उसे अपराध की दुनिया का पूरा खेल समझ में आया।
अपराध जगत की A B C D सीखने के बाद अब्दुल ने अवैध शराब की सप्लाई का पूरा जिम्मा खुद उठा लिया। इसके बाद उसने अवैध रूप से हथियारों की सप्लाई शुरू कर दी। अपराध जगत से जुड़े लोग अब्दुल लतीफ को ‘गुजरात का ‘दाऊद इब्राहिम’ कहने लगे।
पुलिस की गिरफ्त में फंसा तो जेल से लड़ा चुनाव
कहा जाता है कि अब्दुल की अवैध गतिविधियों पर गुजरात पुलिस की कड़ी नजर थी। सबूत जुटाने के बाद पुलिस ने अब्दुल को ‘PASA एक्ट’ गिरफ्तार किया। इसके बाद उसे जेल भेज दिया गया। जेल जाने के बाद अब्दुल ने फिर ‘राजनीति’ का पैंतरा शुरू किया। उसने जेल से ही 1986-87 में गुजरात की पांच नगर निगम सीटों पर चुनाव लड़ा। अब्दुल को पांचों सीटों पर जीत भी मिली। इसके बाद उसके वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से उसे जमानत दिला दी।
क्या है अब्दुल लतीफ और दाऊद इब्राहिम की दुश्मनी और दोस्ती की कहानी?
ऐसा कहा जाता है की एक दिन अहमदाबाद में लतीफ की मुलाकात पठान गिरोह के दो बदमाशों से हुई, उनमें से एक का नाम अमीन खान और दूसरे का आलम खान था। सोने की खेप को लेकर इन दोनों का दाऊद से विवाद हुआ था। इसी विवाद के चलते पठान गैंग ने दाऊद के बड़े भाई साबिर इब्राहिम की हत्या कर दी थी और अब्दुल लतीफ ने पठान गैंग के दोनों साथियों को पनाह दी थी। यहीं से दाऊद और लतीफ के बीच दुश्मनी की शुरुआत हुई। ये दुश्मनी तब और बढ़ गई जब लतीफ के गुंडों ने दाऊद इब्राहिम को मारने की कोशिश की।
इसके बाद दाऊद इब्राहिम को भी अब्दुल लतीफ की ताकत का एहसास हो गया था। कहा जाता है कि दाऊद ने अब्दुल लतीफ को दुबई आने का न्योता दिया था। जब अब्दुल लतीफ दुबई पहुंचा तो वहां दाऊद की उससे दोस्ती हो गई। यहीं से उनकी दुश्मनी का रिश्ता खत्म हुआ और दोस्ती का रिश्ता शुरू हुआ।
मुंबई का सिलसिलेवार धमाका
मुंबई में हुए सिलसिलेवार धमाकों में दाऊद के साथ अब्दुल का भी नाम सामने आया था। कहा जाता है कि अब्दुल ने दाऊद इब्राहिम के ही कहने पर पाकिस्तान से गुजरात के रास्ते हथियारों की खेप मंगवाई थी और इसे अपने गुर्गों के जरिए मुंबई तक पहुंचाया भी था।
नवंबर 1997 में हुआ गुजरात के दाऊद इब्राहिम का अंत
मुंबई हमले के बाद वह गिरफ्तारी से पहले विदेश भाग गया और फिर 1995 में पाकिस्तान के रास्ते भारत आ गया और दिल्ली में छिपकर रहने लगा। लेकिन कुछ दिनों बाद गुजरात एटीएस के अब्दुल लतीफ को गिरफ्तार कर लिया गया। लतीफ को दो साल तक साबरमती जेल में रखा गया, जिसके बाद 29 नवंबर 1997 को जब उसे पूछताछ के लिए बाहर लाया गया तो उसने भागने की कोशिश की। इसी दौरान पुलिस ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर गुजरात के ‘दाऊद इब्राहिम’ का एनकाउंटर कर दिया।