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पॉजिटिव संडे स्टोरी: जब भालू के बच्चों ने आंखों से बोला Thank You Uncle

How To Safe Cubs: पशुओं और जानवरों से इंसानों का रिश्ता पुराना है। सभ्यता के विकास के साथ इंसान और पशु मिलकर विकास की राहत खोलते आए हैं। आज भी कृषि समेत तमाम कार्यों में यही पशु मददगार साबित होते हैं, लेकिन जंगली जानवरों से इंसान की दूरी हमेशा से रही है। खासकर खूंखार जानवरों […]

fishermen save cubs life
How To Safe Cubs: पशुओं और जानवरों से इंसानों का रिश्ता पुराना है। सभ्यता के विकास के साथ इंसान और पशु मिलकर विकास की राहत खोलते आए हैं। आज भी कृषि समेत तमाम कार्यों में यही पशु मददगार साबित होते हैं, लेकिन जंगली जानवरों से इंसान की दूरी हमेशा से रही है। खासकर खूंखार जानवरों से तो दूरी स्वाभाविक है। बावजूद इसके मुश्किल वक्त में इंसान जानवरों की भी मदद करता रहा है। इसी कड़ी में एक मछुवारे ने पानी में डूब रहे भालू के बच्चे की जान बचाई। यह जानते हुए भी कि बाहर निकलने के बाद यह छोटा जानवर भी मददगार पर हमला कर सकता है। एक स्थिति तो यह भी आई कि मछुवारा शावक के बिल्कुल करीब आ गया था, लेकिन कुलमिलकर वह अपनी समझदारी से बच गया। इसके साथ ही यह पूरा वाक्या वीडियो में कैद हो गया। इस बीच भालू के बच्चे ने आंखों के जरिये मददगार मछुवारे का धन्यवाद किया।

शावक को डूबता देख ठहर गया मछुवारा

मछुवारा अपनी नाव के जरिये गुजर रहा था। इस बीच उसने एक भालू के बच्चे को पानी में डूबता देखा और अपनी नाव बेहद करीब रोक दी। कुछ देर हालात को समझने के बाद उसने डूब रहे भालू के बच्चे की मदद करने का फैसला लिया।

मदद के लिए बढ़ाया हाथ

मछुवारे ने जल्द ही हालात को भाप लिया कि डूब रहे इस बच्चे को आसानी से नहीं बचाया जा सकता है, बल्कि इसके लिए आइडिया सोचना पड़ेगा। यह महसूस किया कि उसे बचाने में लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। इसके साथ ही मछुवारे ने उसे बचाने के प्रयास शुरू करने की ठान ली।

नाव में मौजूद सामान से भी मिली मदद

यह भालू के बच्चे की खुशकिस्मती थी कि उस दौरान नाव में कई जरूरी सामान मौजूद थे, जिसकी मदद से उसे बचाया जा सकता था। इसके बाद इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

मुश्किल था काम

मछुवारे ने हालात को देखते हुए पूरा मामला भांप लिया था और यह समझ लिया था कि भालू के बच्चे को बचाना बेहद मुश्किल काम है। इस दौरान उसने अपने वर्षों के अनुभव का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया। इसका मतलब यह नहीं है कि इस कार्य के दौरान मछुवारे की जान को खतरा नहीं था, क्योंकि उस पर हमला भी हो सकता था।

क्या यह सफल होगा?

मदद का निर्णय लेने के बावजूद मछुवारे के मन में संदेह था। यह विश्वास था कि उसका प्लान काम करेगा, लेकिन इस दौरान हमले का भी खतरा बना हुआ था। इसलिए उसने भालू नाव में मुंह से काटने दिया। बावजूद इसके बच्चा नाव पर नहीं आ पाया। प्लान के तहत मछुवारे ने आखिरकार भालू के बच्चे को हाथ से पकड़कर बाहर निकालने का निर्णय लिया।

खुद की जान डाली खतरे में

बेशक इस दौरान मछुवारे ने अपनी जान खतरे में डाला दी, क्योंकि स्वाभाविक तौर पर यह जंगली जानवर उस पर हमला कर सकता था। वह मदद का काट भी सकता था। मछुवारा भालू के बच्चे की मदद के लिए बहुत आगे झुक जाता तो पानी में गिर भी सकता था। नजदीक में मौजूद अन्य दो भालू उस पर हमला करते तो उसकी जान जानी तय थी। बावजूद इसके व्यक्ति ने अपनी उम्मीद नहीं खोई और उसका प्लान काम करने लगा। यदि यह काम नहीं करता तो उसका बचना मुश्किल था।

हैरान करना वाला था लम्हा

इंसान हो या फिर जानवर एहसास दोनों के भीतर होता है। यह नजारा यहां पर भी दिखाई दिया। दरअसल, कुछ ही देर में भालू का बच्चा भी समझ गया कि यह शख्स उसकी मदद करना चाह रहा था। ऐसा लग रहा था कि बिना कुछ कहे ही दोनों यह जान चुके थे कि वह क्या चाह रहे हैं। यह क्षण वाकई हैरान करने वाला था और दर्शनीय भी था। इस दौरान मछुवारा अपने हाथ बढ़ाकर ही उसकी मदद कर सकता था।

फिर आया अच्छा आइडिया

भालू के बच्चे को बचाने के क्रम में मछुवारे को एक बढ़िया आइडिया आया कि कैसे उसकी मदद कर उसकी जान बचाई जाए। उसने तत्काल फिशिंग नेट उठाया, क्योंकि इसके जरिये भालू के बच्चे को पानी से निकाला जा सकता था। इस बीच उसे यह भी याद आया कि उसका नेट तो अधिक वजन नहीं उठा सकता है, लेकिन इसके अलावा उसके पास कोई अन्य आइडिया भी नहीं था। बावजूद इसके उसे यह अच्छा आइडिया नहीं लगा। बावजूद इसके उसने अपना फिशिंग नेट पानी में फेंक दिया। यह भी तय किया कि वह इस पर हमला नहीं करे। भालू के बच्चे ने ऐसा ही किया।

सामान्य तौर पर एक भालू का वजन 600 किग्रा

क्या आप जानते हैं कि एक सामान्य भालू का वजन 590 किलोग्राम के आसपास होता है। ऐसी स्थिति में कोई भी मछुवारा कुछ भी करने की स्थिति में नहीं होता। ऐसी स्थिति में फिशिंग नेट भी किसी काम का नहीं रहता। इसके बावजूद उसने भालू के बच्चे को नाव पर लेने की कोशिश की। इस दौरान हालात विपरीत थे, क्योंकि मौसम भी साथ नहीं दे रहा था। उसने इस दौरान शारीरिक और मानसिक, दोनों तरह से अपनी लड़ाई लड़ी।

अभी और थी मदद की दरकार

मछुवारे में एक को बचाया तो दूसरे भालू को बचाने की दरकार थी, इसलिए उसके मन में अधिक खुशी और संतोष नहीं था। चिंता इस बात की थी कि समय लगातार बीत रहा था। दिक्कत यह थी कि एक बच्चा नाव पर था और ऐसे में यह बड़ी मुश्किल थी। हालांकि, पहले को बचाने के बाद दूसरे को बचाना काफी आसान भी लग रहा था। कुलमिलाकर आखिरकार वह दोनों भालू के बच्चों के बचाने में कामयाब रहा।  


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