Vaibhav Gehlot Jalore: लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने मंगलवार को अपने उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट अनाउंस की। इस लिस्ट में राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को एक बार फिर टिकट दिया गया है। हालांकि इस बार उनकी सीट बदल दी गई है। उन्हें कांग्रेस ने जालोर से उम्मीदवार बनाया है। वैभव गहलोत को पिछले लोकसभा चुनाव में जोधपुर से करारी हार का सामना करना पड़ा था।
जहां बीजेपी के धाकड़ नेता गजेंद्र सिंह शेखावत ने उन्हें 2.74 लाख वोटों से हरा दिया था। ऐसे में सवाल ये कि क्या वैभव गहलोत जालोर से मैदान जीत सकते हैं। आइए जानते हैं इस सीट पर क्या हैं सियासी समीकरण...
एससी-एसटी वोटरों पर नजर
वैभव गहलोत का मुकाबला जालोर सीट पर बीजेपी उम्मीदवार लुंबाराम से होगा। पिछली बार यहां से बीजेपी उम्मीदवार देवजी पटेल ने बाजी मारी थी। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी रतन देवासी को हराया था। हालांकि दो बार लगातार सांसद रहे देवजी पटेल का इस बार टिकट काट दिया गया है। जालोर में 20 लाख से ज्यादा वोटर हैं। कांग्रेस इसे कुछ हद तक अपनी सेफ सीट मानती है। जालोर सीट अनुसूचित जाति-जनजाति बाहुल्य इलाके में आती है। यहां एससी-एसटी मतदाताओं की संख्या करीब 7 लाख है। बता दें कि अशोक गहलोत की एससी-एसटी वोटरों पर अच्छी पकड़ है।
8 विधानसभा क्षेत्रों में से 4 पर कांग्रेस का कब्जा
जालोर में 8 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। खास बात यह है कि जालोर-सिरोही की आठ विधानसभा में से 4 पर कांग्रेस का कब्जा है। भीनमाल, सांचोर, रानीवाड़ा और रेओदर में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की थी। कहीं न कहीं ये वजह रहीं कि कांग्रेस ने इस बार वैभव को जालोर से मैदान में उतारा है। हालांकि वैभव गहलोत और लुंबाराम का मुकाबला कांटे का होगा, इसमें कोई दोराय नहीं है।
जमीनी नेता हैं लुंबाराम
लुंबाराम चौधरी सिरोही के वाडेली गांव के रहने वाले हैं। ऐसे में उन्हें स्थानीय प्रत्याशी होने का फायदा मिल सकता है। सिरोही से बीजेपी के जिलाध्यक्ष रहे लुंबाराम की छवि काफी बेहतर और जमीन से जुड़े नेता वाली मानी जाती है। जिस दिन उनके नाम का ऐलान हुआ, उस दिन उनका एक फोटो भी वायरल हुआ था, जिसमें वे बाइक पर बैठकर बीजेपी कार्यालय जाते नजर आ रहे थे।
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वैभव गहलोत को भीतरघात का खतरा
वैभव गहलोत के लिए जालोर से लड़ना आसान नहीं होगा। उन्हें यहां भीतरघात का भी डर हो सकता है। पिछले दिनों जालोर जिला कांग्रेस उपाध्यक्ष लाल सिंह राठौड़ ने किसी बाहरी प्रत्याशी का विरोध किया था। लाल सिंह तो निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि गहलोत के लाल के लिए ये चुनाव भी आसान नहीं होगा। देखना दिलचस्प होगा कि वे इस बार 'दिल्ली' तक का सफर तय कर पाते हैं या नहीं।