Gujarat Professor Made 1,000 Liters Fuel With 3 Tons Plastic Waste: आज के जमाने में भारत के अंदर वेस्ट मैनेजमेंट एक बड़ी परेशानी है। हालांकि, कुछ राज्य और शहर ऐसे हैं जो एक अच्छे इको-सिस्टम के साथ अपने यहां का कचरा मैनेज कर लेते हैं। इसमें इंदौर से लेकर भोपाल और सूरत तक के नाम शामिल हैं। इसके अलावा, व्यक्तिगत स्तर पर भी लोग वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर प्रयास कर रहे हैं। इन्हीं लोगों में वडोदरा गति शक्ति विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शामिल हैं, जिन्होंने 3 टन प्लास्टिक कचरे से 1,000 लीटर ईंधन बनाया है। इसके लिए उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विजिटर पुरस्कार से सम्मानित किया है।
सिंगल यूज प्लास्टिक पर किया काम
राष्ट्रपति से सम्मान पाने वाले इन प्रोफेसरों ने सिंगल यूज प्लास्टिक से जुड़े कई मुद्दों पर काम किया है। प्रोफेसर ने वडोदरा में लैंडफिल के 3 टन प्लास्टिक कचरे को 3 साल में 1000 लीटर ईंधन के रूप में परिवर्तित कर दिया। इसका उपयोग रिसर्च और डेवलपमेंट वर्क में किया गया। इस काम के साथ, उन्होंने प्लास्टिक कचरे को पेट्रोलियम जैसे ईंधन में परिवर्तित करके मल्टी-लेयर प्लास्टिक और नगरपालिका लैंडफिल प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट के ग्लोबल मुद्दे को हल करने के लिए महत्वपूर्ण काम किया है।
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प्लास्टिक फ्री भविष्य की पहल
वडोदरा के इसने प्लास्टिक फ्री भविष्य की ओर बढ़ने की पहल के रूप में ये काम किया है। उनके इस प्रयोग को नई दिल्ली के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थन दिया गया है। यह प्रयोग प्लास्टिक के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। प्लास्टिक कचरे से बना ईंधन पेट्रोलियम एक बाय-प्रोडक्ट है। इसे बनाने से इसकी दक्षता का पता चलता है। इसका उपयोग सीधे तौर पर बाजार में खपत के लिए नहीं किया जाता है। इसका अनुसंधान, विकास और परीक्षण जीएसवी में किया जाता है।