कहते हैं कि पतंगबाजी का इतिहास करीब 2 हजार साल पुराना है। चीन में इसकी शुरुआत हुई और उस समय पतंग को संदेश भेजने के लिए उपयोग में लाया जाता था। भारत में पतंग चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेन त्सांग लेकर आए थे। इसके बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने यमुना किनारे खुले मैदान में पतंगबाजी की प्रतियोगिता कराई कि कौन आसमान में सबसे ऊंची पतंग उड़ा सकता है। इसमें हजारों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। कहते हैं कि तभी से यहां हर साल पतंग उड़ाने का चलन बन गया, मानो लोगों खुशी का इजहार करने का एक बहाना मिल गया हो। धीरे-धीरे नए खेल के रूप में पतंगबाजी लोगों के घरों में पहचान बनाने लग गई और उसके बाद पुरानी दिल्ली में पतंगबाजी हर उत्सव का हिस्सा बन गई।
कभी इश्क की कहानी तो कभी युद्ध के मैदान में संदेश वाहक कैसे बनी ये पतंग
इतिहासकार अमित राय जैन कहते हैं कि वक्त के साथ चीजें नए दौर जरूर पहुंच गई है, पर पहले युद्ध के मैदान में एक-दूसरे को संदेश देने की प्रथा में पतंग का इस्तमाल होता था। असल में आमने-सामने की लड़ाई में इस नियम को माना जाता था कि इसमें एक तो संदेशवाहक की जान का खतरा नहीं होता था, वहीं दूसरा दुश्मन तक अपनी बात पहुंचाने का ये आसन तरीका था।
2 हजार साल में कैसी बदली पतंग
चीन के लेखों में इस बात का जिक्र किया गया है कि 549 ईसवी में कागज की पतंगों को उड़ाया जाने लगा था। असल में उस समय कागज से बनी पतंग को बचाव अभियान के लिए, संदेश भेजने के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। फिर मध्ययुगीन चीनी स्रोतों में लिखा मिलता है कि पतंगों को पैमाइश, हवा के परीक्षण, सिग्नल भेजने और सैन्य अभियानों के संचार के लिए इस्तेमाल किया जाता था। माना जाता है कि सबसे पहली चीनी पतंग चपटी और आयातकार हुआ करती थी। बाद में पतंगों में बदलाव समय के साथ साथ आते रहे।