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जन सुराज के प्रशांत किशोर ने छोड़ी उम्मीदवारी, राघोपुर से चंचल सिंह को बनाया प्रत्याशी

बिहार चुनाव में क्रांति का दावा करने वाले प्रशांत किशोर ने राघोपुर सीट से भी प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है। इस सीट से खुद प्रशांत किशोर के चुनाव लड़ने की चर्चा थी। अब लगभग तय माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर बिहार चुनाव में चुनाव नहीं लड़ेंगे। पढ़िए पूरी रिपोर्ट। जन सुराज के प्रशांत किशोर ने छोड़ी उम्मीदवारी, राघोपुर से चंचल सिंह को बनाया प्रत्याशी

जनसुराज ने राघोपुर से चंचल को बनाया प्रत्याशी

Bihar Election 2025: बिहार में 6 नवबंर को पहले चरण का विधानसभा चुनाव होना है। चुनाव नजदीक आते ही हर दिन कई अनोखे फैसले देखने को मिल रहे हैं। पहली बार बिहार के चुनावी दंगल में ताल ठोकने वाले प्रशांत किशोर काफी दिनों से चर्चा में चल रहे हैं। उन्होंने अकेले दम पर सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। प्रत्याशियों की दो सूची भी जारी कर दी है।

बिहार की राजनीति में एक अहम मोड़ तब आया जब जनसुराज पार्टी ने राघोपुर विधानसभा सीट से अपने उम्मीदवार का ऐलान कर दिया। इस सीट से पार्टी ने चंचल सिंह को मैदान में उतारा है। खास बात यह है कि लंबे समय से यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि प्रशांत किशोर खुद राघोपुर या करगहर सीट से चुनाव लड़ सकते हैं।

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करगहर सीट से प्रशांत किशोर पहले ही किसी को उम्मीदवार बना चुके हैं। अब जनसुराज पार्टी द्वारा इन दोनों सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद यह लगभग तय माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे।

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क्यों खास है राघोपुर सीट?

राघोपुर सीट राज्य की सबसे चर्चित सीटों में से एक मानी जाती है, जहां से वर्तमान में तेजस्वी यादव विधायक हैं। जनसुराज पार्टी का यह फैसला निश्चित रूप से इस सीट पर मुकाबले को दिलचस्प बना देगा।

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कैसा रहेगा प्रशांत किशोर का चुनाव नहीं लड़ना?

प्रशांत किशोर अभी तक कई चुनावों में रणनीतिकार की भूमिका निभा चुका है। साल 2014 में मोदी सरकार, दिल्ली में केजरीवाल सरकार और बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बनाने का श्रेय प्रशांत को मिलता रहा है। बिहार चुनाव में सभी सीटों पर खुद की पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने के ऐलान ने प्रशांत किशोर को कई सवालों में घेर दिया था।

चर्चा थी कि प्रशांत किशोर अच्छे रणनीतिकार हैं, नेता नहीं। वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रशांत किशोर का चुनाव मैदान से बाहर रहना उनकी रणनीतिक भूमिका को और मजबूत बना सकता है। वे संभवतः पार्टी के संगठन विस्तार और राज्यव्यापी प्रचार अभियान पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

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